Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०० आत्मधर्म : ३ :
साक्षात् भावरूप पंचकल्याणक नजरे जोईशुं. धन्य हशे ए अवसर!
(‘जयवंत हो तीर्थंकरोनो अचिंत्य प्रभाव!’)
७. दरियामां रत्नो भर्या होय ते मेळववा तेमां ऊंडे ऊतरवुं पडे छे; तेम चैतन्य–
दरियो अनंतगुणनां रत्नोथी भरेलो, तेनुं वेदन करवा पुण्य–पापथी पार थईने
तेमां ऊंडा ऊतरवुं जोईए. शुभाशुभवडे तेनी प्राप्ति न थाय.
८. आत्मा शेनो बनेलो हशे? तो संतो कहे छे के अहो, आत्मा तो आनंदनो
बनेलो छे, सुखनो बनेलो छे, शांतिनो बनेलो छे. ‘बनेलो छे’ एटले कांई
नवो नथी बन्यो पण पोते एवा स्वरूपे ज छे. तेमां अंदर ऊतरतां आनंदनां
मोती हाथमां आवे छे,–अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थाय छे.
९. रागनां मेल उपर चैतन्यनो रंग नहीं चडे. अंतर्मुख थयेल, रागवगरना
शुद्धउपयोगरूपी स्वच्छ भूमिका, तेमां चैतन्यनो रंग चडे, ने चैतन्यनो रंग
चडतां तेमां अनंतगुणना आनंदनो अपूर्व स्वाद वेदाय छे. बापु! तुं रागना
रंगे रंगाई गयो, तेथी तारा चैतन्यनो मधुर स्वाद तने न आव्यो.
१०. ज्ञानी धर्मात्मा बीजा ज्ञानी–गुरुनी दशाने पण ओळखी ल्ये छे, एना अंतरमां
आनंदनी केवी दशा छे, एनुं ज्ञान केवुं छे? एनी शांति केवी छे? तेने धर्मात्मा
ओळखी ल्ये छे.
११. श्रीगुरुना उपदेशथी जेवा अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव मने थयो छे तेवा
अतीन्द्रिय आनंदने विशेषपणे देव–गुरुओ अनुभवी रह्या छे–एम स्वसंवेदन–
प्रत्यक्षपूर्वक धर्मीजीव देव–गुरुने ओळखी ल्ये छे.–भले ते देव–गुरु क्षेत्रथी दूर
हो, के घणां वर्षो पहेलांं थई गया होय, तोपण वर्तमान पोताना स्वसंवेदनना
बळे देव–गुरुनी अंतरंगदशाने धर्मीजीव ओळखी ल्ये छे.
१२. नियमसारनी ७७–७८–७९–८०–८१ ए पांच गाथाने मुनिराजे पंचरत्नो कह्या
छे,–जे रत्नो वडे मोक्ष मळे एवा आ मूल्यवान रत्नो छो; आ पांच गाथामां
जेवो शुद्धात्मा बताव्यो छे तेवो ओळखतां जरूर आत्मानो महान आनंद अने
सिद्धपद पमाय छे.
१३. अहो, आ पांच गाथा द्वारा तो आचार्यदेवे आत्माना अनुभवनी वीणा वगाडी