अशाड : २४८८ : १९ :
मोक्षगामी
चक्रवर्ती वज्रनाभि
(आदिपुराण उपरथी)
(गतांक २२४थी चालु)
(भरतक्षेत्रमां थई गयेला श्री रूषभदेवतीर्थंकरना
पूर्वभवनी आ कथा छे. तेओश्री चक्रवर्ती वज्रनाभिना
भवमां निर्ग्रंथमुनिपद धारण करी आयुना अंतभागमां
उपशांतमोह नामे ११ मा गुणस्थाने प्राण त्याग करी
सर्वार्थसिद्धिविमान नामे देवलोकमां ऊपज्या त्यां
सम्यक्भेद विज्ञानना बळ वडे तत्त्वज्ञान पूर्वक
वैराग्यभावनानुं चिन्तन पण करता हता तेमां
आचार्यदेव कहे छे के, संसारमां लोको जेने सुख माने छे
ते सुख नथी कारण के जेना चित्त अनेक प्रकारनी
आकुळताथी व्याकुळ थई रह्या छे.)
जेवी रीते मनमां मोह उत्पन्न करवाथी तृष्णा वधारवाथी सुख नथी जेम शरीरमां शिथिलता लावनार
दाहज्वर (ताव) सुखरूप थतो नथी एवी रीते चित्तमां मोह, शरीरमां शिथिलता, विषयोमां रति लालसा
अने संताप वधारवानुं कारण होवाथी स्त्री संभोग पण सुखरूप थई शकतो नथी. जेवी रीते कोई रोगी
पुरूष कडवी दवानुं पण सेवन करे छे एवी रीते काम ज्वरथी दुःखी थयेलो जीव पण एने दूर करवानी
ईच्छाथी स्त्रीरूपी औषधनुं सेवन करे छे. ज्यारे मनोहर विषयोनुं सेवन केवळ तृष्णा माटे ज छे, संतोष
माटे नहीं, त्यारे तृष्णा रूपी ज्वाळा वडे तपेलो आ जीव सुखी केवी रीते थई शके? जेम जे दवा रोग दूर न
करी शके ते दवा नथी, जे पाणी तरस दूर न करी शके ते पाणी नथी अने जे धन संकट हरी शके नहीं ते धन
नथी.
ए रीते जे विषयथी जन्मेलुं सुख तृष्णानो नाश न करी शके विषयोथी उत्पन्न सुख छे नहि, स्त्री
आदिना संयोगमां रती मानवाथी उत्पन्न सुख केवळ कामेच्छारूपी रोगोने दूर करवानुं साधन छे. शुं! एवो
मनुष्य औषधिनुं सेवन करे छे के जे निरोग अने स्वास्थ्यने प्राप्त छे?
भावार्थ:– जेवी रीते रोगरहित स्वस्थ मनुष्य औषधिनुं सेवन न करवा छतां पण सुखी रहे छे एवी
रीते कामेच्छा रहित संतोषी अहमिन्द्र स्त्री संभोग न करतां थकां पण सुखी रहे छे. विषयोमां अनुराग
करवा–