
वंदना” ए स्तवन पछी बीजुं एक स्तवन एवुं गवायुं के तेमां भक्त पोन्नूरगिरिने
प्रश्र पूछे छे के ‘हे पर्वत! मारा कुंदकुंद प्रभु केवा हता? एना सन्देशा तुं मने सुणाव....
’ अने पर्वत जाणे के एनो जवाब आपे छे! ईत्यादि अनेक रचनायुक्त भक्ति थई
हती. खूब जयजयकारथी वातावरण गाजी रह्युं हतुं. पर्वतनी शिलाओ ने वृक्षो पण
यात्रिकोथी उभराई रह्या हता.–आम गुरुदेव साथे घणा आनंदप्रमोदपूर्वक कुंदकुंद प्रभुना
पोन्नूरधामनी यात्रा करी.
पोन्नूर गाम छे, त्यांना बे जिनमंदिरोनां दर्शन कर्या. अहींना जिनमंदिरमां
कुंदकुंदस्वामी दर्शन करवा पधारता हता. ए मंदिरमां दर्शन करतां घणो आनंद थयो. ए
उपरांत बांदेवासनी बाजुमां ‘सप्तमंगलम्’ मां पण जिनमंदिरना दर्शन कर्या.
पोन्नूरनी सामे नजीकमां ज धवलगिरि नामनो पहाड छे, ––वीरसेनस्वामीए
धवलाटीकानी रचना ए धवलगिरि उपर करी होवानुं मनाय छे. गुरुदेवने ए
सांभळीने घणी प्रसन्नता थई हती. बपोरे प्रवचन हाईस्कूलना चोगानमां हतुं, तेमां
गुरुदेव हिन्दीमां बोलता ने वच्चे पा–पा कलाके तेनु तामील भाषांतर करवामां आयतुं
हतुं. प्रवचन वखते त्रण–चार हजार माणसोनी सभामां कुंदकुंदप्रभुनो घणो महिमा
गुरुदेवे कर्यो हतो: ‘अहा! तेमणे तो सीमंधरप्रभुना साक्षात् दर्शन करीने आ
भरतक्षेत्रमां–आ स्थानेथी–श्रतनी नवीन प्रतिष्ठा करी छे. ’ प्रवचन बाद, बीजा दिवसे
पोन्नूर पर कुंदकुंदप्रभुना चरणोना अभिषेकनो कार्यक्रम जाहेर थयो ने ते माटेनी
उछामणीमां लगभग त्रीस हजार रूा. थया हता.
जता होईए–एवो आजे यात्रिकोनो उमंग हतो. दर्शनादि बाद अभिषेकविधिनो प्रारंभ
करतां गुरुदेवे कह्युं: जुओ, सौ शांतिथी सांभळो....... आजे आ कुंदकुंदप्रभुनो मोटो
अभिषेक थाय छे. तेओ विदेहक्षेत्रे गया हता, ने सीमंधर भगवाननी वाणी सांभळी
अहीं आवीने शास्त्रो रच्या हता. आजे माह सुद १४ छे; आजनो अपूर्व दिवस छे.
अहींथी उपर गगनविहार करीने तेओ भगवान पासे गया हता. तेमनो आपणा उपर
घणो मोटो उपकार छे. तेमना अभिषेक–पूजा थाय छे. आम कहीने गुरुदेवे पोते
मांगळिकपूर्वक पूजन शरू कर्युं. आजना पूजननी ए विशेषता हती के गुरुदेव एकला
पूजन पाठ बोलता हता ने सौ यात्रिको भक्तिथी सांभळता हता. बेनश्रीबेन
स्वाहामंत्र बोले त्यारे हजार हजार