: मागशर : २४९३ आत्मधर्म : २७ :
गतांकना प्रश्नोना जवाब
(१) करनेवाला कोईका नहीं,
देखनेवाला सबका.
देहमें रहता, देह नहीं.
दरिया है आनंदका...
अढी अक्षरका नाम है,
पण अनंतगुणका धाम है.
(आत्मा)
(२) एक भगवान एवा,
के भारे जोवा जेवा!
चार अक्षरनुं नाम छे.
यात्रानुं ए धाम छे.
एनो पहेलो अक्षर आपणने बहु गमे;
छेल्ला त्रण अक्षरमां एक मोटुं शहेर वसे.
(बाहुबली)
(३) ‘अनंत’ मां जे वसे छे,
अनंतगुणनो पिंड छे,
अयोध्यामां जन्म्या छे,
पालेजमां बिराजे छे,
पांच अक्षरनुं नाम छे,
ने चौद नंबरना देव छे.
(अनंतनाथ)
(४) आ वर्षे फागण सुद चौदशे गुरुदेव
क्यां विचरता हशे?
(सम्मेदशिखर तीर्थधाममां)
नवा प्रश्नो
प्रः१ जीव अने शरीर ए बेमां शुं फेर?
प्रः२ शरीरनी क्रिया ते जीव छे के
अजीव?
प्रः३ जीवनो धर्म जीवनी क्रिया वडे
थाय, के अजीवनी क्रिया वडे?
आ त्रण प्रश्नो छे तो साव
सहेला, पण जीव अने अजीवनुं
भेदज्ञान करवा माटे ते खास
उपयोगी छे, माटे बराबर
समजजो.
प्रः४ एक मोटा पंडित जयपुरमां थया
तेमनी स्मृतिमां एक सभामंडप
(होल) त्यां बन्यो छे, ने तेना
उद्घाटन–प्रसंगे गुरुदेव जयपुर
पधारवाना छे. –तो जयपुरना ए
मोटा पंडित कोण? अने तेमणे
बनावेलुं एक धर्मशास्त्र खूब
प्रसिद्ध छे–ते कयुं?
जवाब पांचमी तारीख सुधीमां, जेम बने
तेम वेलासर लखशो.
आत्मधर्म बालविभाग