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ते पोताथी नीचा माने छे.
छोड, ने पोताना आत्मानुं वात्सल्य कर. धर्मात्मा प्रत्ये, व्रती प्रत्ये, तेम ज स्वाध्यायमां
ने जिनपूजनमां वात्सल्य करो. सम्यक्चारित्ररूपी आभरणथी भूषित एवा साधुजनोनुं
जे स्तवन करे छे, महिमा करे छे तेने वात्सल्यगुण होय छे, ते सुगतिने पामे छे ने
दुर्गतिनो नाश करे छे.
श्रुतज्ञानावरण कर्मनो रस सुकाई जाय छे ने सकलविद्या सिद्ध थाय छे.
वात्सल्यगुणधारकने देव नमस्कार करे छे अने वात्सल्यवडे अनेक प्रकारनी ऋद्धिओ
प्रगटे छे. धर्मवात्सल्यवडे ज मंदबुद्धि जीवोने पण मतिज्ञान–श्रुतज्ञान खीले छे.
वात्सल्यना प्रभावथी पापनो प्रवेश थतो नथी. तप पण वात्सल्य वडे शोभे छे. तपमां
उत्साह वगर तप निरर्थक छे. आ रीते जिनेन्द्रदेवनो मार्ग वात्सल्यवडे ज शोभे छे.
वात्सल्यवडे शुभध्यान वृद्धि पामे छे, ने सम्यग्दर्शन निर्दोष थाय छे. वात्सल्यवडे ज
दीधेलुं दान कृतार्थ थाय छे; पात्रमां प्रीति वगर तथा देवामां प्रीति वगर दान निंदानुं
कारण छे. वळी जिनवाणीमां जेने वात्सल्य होय तेना वडे ज प्रशंसायोग्य साचा
अर्थनो उद्योत थाय; जिनवाणी प्रत्ये जेने वात्सल्य न होय, विनय न होय तेने साचो
अर्थ सूझे नहीं, ते विपरीत ग्रहण करशे. आ मनुष्यजन्मनी शोभा वात्सल्यथी ज छे.
वात्सल्य वगरनो जीव बहु मनोज्ञ आभरण–वस्त्रादि धारण करे तोपण पदे पदे ते
निंदाय छे. आ लोक संबंधी यशनुं, धर्मनुं ने धननुं उपार्जन वात्सल्यवडे ज थाय छे;
तथा परलोक–स्वर्गलोकमां महर्द्धिक देवपणुं पण वात्सल्यथी ज थाय छे. वात्सल्य वगर
आ लोकनुं समस्त कार्य बगडी जाय तथा परलोकमां देवादि गति पामे नहीं.
वैयावृत्य, जिनसिद्धांतनुं सेवन, साधर्मीनी वैयावृत्य अने धर्ममां अनुराग, दान