Atmadharma magazine - Ank 293
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : फागण : २४९४ :
वन्द्यो विभुर्भ्भुवि न कैरिह कौण्डकुंदः
कुन्द–प्रभा–प्रणयि–कीर्ति विभूषिताशः।
यश्चारुचारणकराम्बुज चंचरीकः
चक्रे श्रुतस्य भरते प्रयतः प्रतिष्ठाम्।।
चंद्रगिरि परनो आ शिलालेख कहे छे के–कुन्दपुष्पनी प्रभा धरनारी जेमनी कीर्ति
वडे दिशाओ विभूषित छे, जेओ चारणऋद्धिधारक महामुनिओना सुंदर हस्तकमळना
भ्रमर समान हता, अने जे पवित्र आत्माए भरतक्षेत्रमां श्रुतनी प्रतिष्ठा करी छे, ते
कुंदकुंदविभु आ पृथ्वी पर कोनाथी वंद्य नथी? –अर्थात् पृथ्वी पर वंद्य छे.
विंध्यगिरि उपरना बीजा अस्पष्ट लेखनो आशय एवो छे के–यतीश्वर श्री
कुंदकुंदस्वामी रजःस्थानने (पृथ्वीने) छोडीने चार आंगळ ऊंचे आकाशमां चालता
हता, ते द्वारा हुं एम समजुं छुं के, तेओश्री अंदरमां तेमज बहारमां रजथी पोतानुं
अत्यंत अस्पर्शीपणुं (निर्लेपपणुं) व्यक्त करता हता.
ए शिलालेखोनी भाषा द्वारा आ पर्वत आजेय भक्तिथी वीतरागी मुनिवरोनां
गुणगान गाई रह्यो छे. ईन्द्रगिरि–चंद्रगिरि जेवा पुनित पर्वतोनो ए प्रताप छे के तेना
उपर कोतरायेलां आवा शिलालेखो
द्वारा आजे सेंकडो–हजारो वर्ष
पहेलांनी आवी उत्तम ऐतिहासिक
वातो आपणे जाणी शकीए छीए. आ
उपरांत पर्वत उपर अतिप्राचिन
वैभवसंपन्न जिनालयो, बाहुबलीप्रभु
जेवा विशाळ जिनबिंबो वगेरेनुं दर्शन
अभण मानवीने पण जैनशासननो
अपार महिमा लक्षगत करावे छे.–
नमस्कार हो ते बोलता पर्वतोने...
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