
ज्ञान ज छे, ज्ञान कांई राग नथी. ज्ञान ने आनंद ते मारो स्वाद छे. रागादि ते मारो
स्वाद नथी–आवी भिन्नतानुं भान भूलीने अज्ञानी ज्ञानने अने रागादि ज्ञेयोने
भेळसेळ अनुभवे छे. हाथीनी जेम;– हाथीने चूरमुं अने घास बंनेनी भिन्नतानो विवेक
नथी, बंनेने मिश्रपणे खाय छे; तेम अज्ञानी ज्ञान अने रागने मिश्रपणे अनुभवे छे,
एटले आनंदनो स्वाद तेने आवतो नथी.
अनुभवतो नथी, एटले भगवानना उपदेशने जाणतो नथी. शुद्ध आत्माने जाणतो
नथी ने आनंदने पामतो नथी.
तिरोभाव थई गयो छे ने विशेषनो आविर्भाव थयो छे. जो के विशेषना आविर्भाव
वखतेय ज्ञानी तो ज्ञानने ज्ञानपणे ज देखे छे, एटले ते विशेष वखतेय पोताने परथी
भिन्न ज्ञानपणे ज अनुभवे छे. आवो अनुभव ते जिनशासन छे.
चिदानंदस्वभावमां एकतारूपे परिणमी, तेमां शुद्ध आत्मानी अनुभूति थई, तेने
जिनशासन कह्युं छे. आ ज भगवाने उपदेशेला सर्व श्रुतनो सार छे.