Atmadharma magazine - Ank 316
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : : महा : २४९६
(सर्वे जिज्ञासुओनो प्रिय विभाग)
आकाशमां बन्यो सुंदर महेल–
एकवार अभिनंदनस्वामी आकाश सामे जोता हता. त्यां आकाशमां एक
अतिसुंदर महेल देखाई रह्यो छे. वादळांनी ज एवी कोई अद्भुत रचना थई छे.
जोतजोतांमां वादळां तो वीखराई गया ने महेल अलोप थई गयो.
अभिनंदनस्वामी ए द्रश्य देखीने वैराग्य पाम्या. अने देहनी तथा संसारनी
क्षणभंगुरतानो विचार करवा लाग्या: अरे! आ शरीरने गमे तेवा उत्तम पदार्थोथी पुष्ट
करवामां आवे तो पण चोक्कसपणे ते नष्ट थई जशे. आ जगतमां जेने आयुष्य छे तेने
ज मरण थाय छे, जेने आयुष्य नथी तेने मरण पण नथी. माटे जेओ मरणथी डरीने
तेनाथी बचवा चाहता होय तेणे आयुथी डरवुं जोईए, अर्थात् एवी वीतरागता प्रगट
करवी जोईए के नवा भवनुं आयु ज न बंधाय, एटले मरण ज न थाय, ने आयु वगरनुं
अविनाशी सिद्धपद प्रगटे. आयुकर्मनो नाश थतां ज आठे कर्मरहित सिद्धपद प्रगटे छे.
लोको जीववा माटे आयुनी आशा राखे छे, परंतु ज्यां आयुनुं बंधन छे त्यां अवश्य
मरण छे. जीवनुं जीववापणुं आयुथी नहीं पण चेतनाथी ज छे. चेतनामां एवी ताकात छे के
आत्माने सदाय जीवंत राखे. जे चेतनस्वरूपे पोताने अनुभवे छे तेने कदी मरण नथी.
सोनगढना सरपंच लखे छे–जन्मदिन निमित्ते पुस्तिका भेट मळी ते माटे
आभार. अमने सोनगढमां पू. गुरुदेवनुं शरणुं मळ्‌युं छे ते अमारा परम अहोभाग्य
छे. आजे ज्यारे अन्य लोको हजारो रूपिया खर्ची पू. गुरुदेवनी अपूर्व वाणीनो लाभ
लेवा अने धर्म पामवा सोनगढ आवे छे त्यारे अमारा धनभाग्य छे के गुरुदेवे अमारी
आ जन्मभूमिने पावन करीने सोनगढने विदेहक्षेत्र जेवुं बनावी दीधुं छे. आ देखीने
अमने तो एटलो आनंद ने उत्साह थाय छे के गुरुदेव अमारा कल्याण माटे ज अहीं
पधार्या छे. –रमणीकलाल फूलचंद महेता.
प्रश्न:–‘मारे सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं छे’–एवी भावना ते राग कहेवाय के
नहीं? (भरत जैन, कलकत्ता; स. नं. १७९)
उत्तर:–”भावना” बे प्रकारनी: एक ईच्छारूप; बीजी परिणतिरूप. सम्यक्त्व–
भावरूप जे परिणमन ते सम्यक्त्वनी परमार्थभावना छे.–जेमके ‘सम्यग्द्रष्टि पोताना