कारतक: २४९८ आत्मधर्म : १९ :
अहा! अनंत अतीन्द्रिय आनंद, ने अनंत अतीन्द्रियज्ञान, एवा अनंत भावो
जेमां भरेला छे एवा पोताना आत्मानी सन्मुख थईने जे वीतरागी श्रद्धावगेरे
परिणाम प्रगट्या ते ज आराधनारूप भक्ति छे. आमां द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे
आवी गया, ने मोक्षमार्ग पण आवी गयो.
शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्याय एवा त्रणभावोमां आत्मा छे, आत्मानुं आवुं अद्भुत
अलौकिक स्वरूप, भगवान जिनेन्द्रदेवना मार्गमां ज प्रकाश्युं छे. प्रभु! तुं पोते
भगवान छो! तुं तारा आत्मानुं ज भजन कर. तने भजतां तारी मुक्ति थशे.
परनुं शरण आत्माने नथी; परना भजननो शुभविकल्प ते पण आत्माने शरण
नथी; शरण तो पोताना आत्माना आश्रये जे निर्विकल्पदशा प्रगटी ते ज छे.
आत्मानी निर्विकल्प अनुभूतिमां जे शुद्धपरिणाम थया तेनुं भजन, एटले
वारंवार तेनुं सेवन ते आराधना छे, ते भक्ति छे, ते मुक्तिनी दातार छे. श्री
जिनवर भगवाने मोक्षने माटे श्रावकोने तेमज श्रमणोने आवी वीतरागी
भक्तिनो उपदेश दीधो छे. श्रावकोने पण शुद्ध परमात्मतत्त्वनी सन्मुखतावडे शुद्ध
परिणतिरूपी आराधना–भक्ति निरंतर वर्ते छे, तेथी ते भक्त छे–भक्त छे, एटले
के ते पण मोक्षना आराधक छे.
भाई, तारे तारी दशा फेरववी होय तो तारी रुचिनी–ज्ञाननी दिशा पलटाववी
पडशे; परसन्मुखता छोडीने तारा बधाय परिणामोने स्वसन्मुख करवा पडशे.
अहो! हुं ज परमात्मतत्त्व अचिंत्य अनंत भावोनो भंडार छुं–एम परम महिमा
लावीने स्ववस्तुमां परिणामने जोड, तेमां ज शुद्ध रत्नत्रयनी आराधना थशे. आ
सिवाय बहारमां देव–गुरु–शास्त्रवगेरेनी भक्तिमां उपयोग जोडीने ते शुभरागथी
मुक्ति थवानुं कोई माने तो भगवान कहे छे के ते साचो भक्त नथी, ते मुक्तिनो
आराधक नथी.
शुभरागरूप भक्ति ते कांई भवछेदक भक्ति नथी; सम्यक्त्वादि शुद्धभावरूप
वीतरागी भक्ति ते ज खरेखर भवछेदक–भक्ति छे. एवी भक्तिवडे अंदरमां
भगवानना साक्षात् भेटा थाय छे. जेमां भगवानना भेटा न थाय ने भवदुःखना
भेटा थाय एने ते भक्ति कोण कहे? सम्यक्त्वादिना भजनमां तो अंदर पोताना
परमात्मतत्त्वनी अनुभूति छे, अनंत शांतिनुं वेदन छे, चैतन्यभगवाननो
साक्षात्कार छे.
अहा, स्वानुभूतिरूप आ मार्ग, ए तो अनंत आनंदने आपनारो मार्ग छे. अनंत