Atmadharma magazine - Ank 345
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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* मातानी एक शरत *
एक माता अने तेना पुत्र वच्चे चर्चा चाली रही छे.
बन्ने धर्मना संस्कारी छे. पुत्र नानी वयमां दीक्षा लेवा माटे माता पासे रजा मागी
मातानुं दिल मानतुं नथी. नानी वयमां दीक्षा न लेवा घणी दलील करे छे.
पण जेनुं मन संसारमांथी ऊठी गयुं छे एवो पुत्र, मातानी बधी दलीलना सुंदर
पुत्रनो आवो वैराग्य अने आवी उत्तम धर्मबुद्धि देखीने माता तो आर्श्चय पामी गई......
हृदयमां गौरव थयुं. ऊंडे ऊंडे तो पोतानो पुत्र मुनि थईने आत्माने साधे–तेमां ते प्रसन्न हती,
पण पुत्रनी कसोटी करवा तेणे एक छेल्ली दलील अजमावी.
माताए कह्युं–बेटा, तारी भावना उत्तम छे, तारा जेवा धर्मी पुत्रनी माता थईने हुं धन्य
बनी; तारा वैराग्यमां हुं विघ्न करवा मांगती नथी; हुं तने खुशीथी दीक्षा लेवानी रजा आपुं,–
पण एक शरते?
पुत्रने थयुं–मा कोण जाणे केवी आकरी शरत मुकशे? पण द्रढभावनाथी पुत्रे कह्युं–मा,
पुत्रनी द्रढताथी माता राजी थई; अने कह्युं–बेटा सांभळ! तारा जेवो महान पुत्र
संसारमां कोईक ज माताने मळे छे; तने पामीने हुं धन्य बनी. तुं खुशीथी साधुदीक्षा ले. मारी
शरत एटली ज छे के साधु थईने तुं एवी आत्मसाधना कर के जेथी तारे फरीने बीजी माता
करवी न पडे.... ने आ संसारमां हुं तारी छेल्ली ज माता होउं. बस, आ शरत पूरी करवा तैयार
हो तो तुं खुशीथी दीक्षा ले....तने मारा आशीष छे.
पुत्रे अत्यंत प्रसन्नताथी कह्युं–वाह माता! तें उत्तम शरत मुकी. तारी आ शरत हुं जरूर
पूरी करीश. अहा, मोक्षना आवा आशीर्वाद आपनारी माता मने मळी, हवे बीजी माता हुं नहि
करुं......माता! कोलकरार छे के अप्रतिहतपणे आज भवमां केवळज्ञान अने मोक्षने साधीश......
हे वीरजननी! पुत्र तारो जाय छे सिद्धधाममां
नहि मात बीजी धारशे, धारो न शंका लेश त्यां.
[धन्य ते पुत्र! धन्य ते माता!]