Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 5 of 43

background image
: २ : आत्मधर्म जेठ : २४९९ :
सेवन वडे तो रागनुं ज कार्य प्रगटे, पण ज्ञान न प्रगटे. अंशीनी साथे एकता करीने
प्रगटेलो अंश ते ज साचो अंश छे. (पूर्णताना लक्षे शरूआत ते ज साची शरूआत छे.)
पूर्णतानुं लक्ष कहो के सम्यग्दर्शन कहो, तेनाथी ज मोक्षमार्गनी शरूआत छे. आत्मा
आखो आनंदस्वभाव छे, तेना अनुभवथी ज आनंद प्रगटे छे. रागना आश्रये
आनंदनो अनुभव कदी न थाय, केमके आनंद ते कांई रागनो अंश नथी. ए ज रीते
ज्ञान अने श्रद्धा पण रागना आश्रये थता नथी, केमके ते ज्ञानादि कांई रागना अंश
नथी. रागना आश्रये तो राग प्रगटे, कांई मोक्षमार्ग न प्रगटे.
जुओ, आ सत्यार्थ मोक्षमार्ग! साचो मोक्षमार्ग राग वगरनो छे. आत्माना
ज्ञान ने आनंद ते राग वगरना छे. ज्ञान ने आनंद ते आत्माना मुख्य गुणो
छे. ‘चिदानंदाय नम:’ वगेरे मंत्रो आत्माना स्वभावने सूचवे छे, तेमां श्रद्धा–वीर्य
वगेरे अनंत गुणो समाई जाय छे. जे गुणथी जुओ ते गुणस्वरूप आखो आत्मा
देखाय छे. आनंदनी मुख्यताथी जुओ तो आखो आत्मा आनंदस्वरूप छे, ज्ञाननी
मुख्यताथी जुओ तो आत्मा ज्ञानस्वरूप छे; ए ज रीते श्रद्धा वगेरे अनंत गुणस्वरूप
आखो आत्मा छे; तेना लक्षथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–आनंद प्रगटे छे. आत्माना लक्षे
राग प्रगटतो नथी, तेनो तो अभाव थई जाय छे. राग ते आत्मगुण नथी एटले
रागना आश्रये आत्माना कोई गुण (सम्यग्दर्शनादि) प्रगटता नथी. बधाय गुणोनी
निर्मळ पर्याय आत्माना ज आश्रये परिणमे छे; पोताना ज्ञानादि गुणपर्यायोने धारण
करनार वस्तु आत्मा ज छे. जेनामां जे गुण ज नथी तेना आश्रये ते गुणनुं कार्य
प्रगटे नहीं; जेमां गुण होय तेना ज आश्रये तेनुं कार्य प्रगटे. जेनामां ज्ञान होय तेना
आश्रये केवळज्ञान थाय, जेनामां आनंद होय तेना आश्रये आनंद थाय. जेनामां ज्ञान
के आनंद छे ज नहीं तेना आश्रये ते क्यांथी प्रगटे? माटे हे जीव! तुं परनो आश्रय
छोड...ने स्वद्रव्यनी सामे जोईने तेनो ज आश्रय कर....आ काम त्वराथी कर एटले के
शीघ्र कर. आत्माना हितना आ कार्यमां तुं विलंब न कर.
अरे जीव! तारी अवस्थामां तने अनंतकाळथी दुःखनो अनुभव छे ते केम छूटे?
अने अनाकुळतारूप साचुं आत्मसुख केम अनुभवमां आवे?–तेनी रीत
वीतरागीसंतो तने बतावे छे, ते तारा हितने माटे लक्षमां ले, विचारमां ले. बहारना
बीजा तो विचार घणा करे छे, तो तारा आ हितनी वात पण जराक विचारमां ले.
बीजा संसारना विचार करीने दुःखी थई रह्यो छो, पण भाई! एकवार आत्माना