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अर्थः — ए प्रमाणे पूर्वोक्त प्रकारथी अशरणता प्रत्यक्ष देखवा छतां पण मूढ मनुष्य, तीव्र मिथ्यात्वभावथी सूयारदि ग्रह, भूत, व्यंतर, पिशाच, जोगणी, चंडिकदिक अने मणिभद्रदिक यक्षोनुं शरण माने छे.
भावार्थः — आ प्राणी प्रत्यक्ष जाणे छे के मरणथी कोई पण रक्षण करवावाळुं नथी छतां ए, ग्रहदिकमां शरणपणुं कल्पे छे; ए बधुं तीव्र मिथ्यात्वना उदयनुं माहात्म्य छे.
हवे, मरण थाय छे ते आयुना क्षयथी ज थाय छे एम कहे छेः —
अर्थः — आयुकर्मना क्षयथी मरण थाय छे. वळी ए आयुकर्म कोईने कोई पण आपवा समर्थ नथी, माटे देवोनो इन्द्र पण मरणथी बचावी शकतो नथी.
भावार्थः — आयु पूर्ण थवाथी मरण थाय छे अने ए आयु कोई पण कोईने पण आपवा समर्थ नथी; तो पछी रक्षण करवावाळो कोण छे? ते विचारो.
हवे ए ज अर्थने द्रढ करे छेः —
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अर्थः — देवोनो इन्द्र पण पोताने चवतो (मरतो) थको राखवाने समर्थ होत तो सर्वोत्तम भोगो सहित जे स्वर्गनो वास तेने ते शा माटे छोडत?
भावार्थः — सर्व भोगोनुं स्थळ पोताना वश चालतुं होय तो तेने कोण छोडे?
हवे परमार्थ (साचुं) शरण दर्शावे छेः —
अर्थः — हे भव्य! तुं परम श्रद्धापूर्वक दर्शनज्ञानचरित्रस्वरूप (आत्माना) शरणने सेवन कर. आ संसारमां परिभ्रमण करता जीवोने अन्य कोई पण शरण नथी.
भावार्थः — सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित्र पोतानुं स्वरूप छे अने ए ज परमार्थरूप (वास्तविक – साचुं) शरण छे, अन्य सर्व अशरण छे. निश्चय श्रद्धापूर्वक ए ज शरणने पकडो – एम अहीं उपदेश छे.
हवे ए ज वातने द्रढ करे छेः —
अर्थः — उत्तम क्षमदि स्वभावे परिणत आत्मा ज खरेखर शरण छे; पण जे तीव्रकषाययुक्त थाय छे ते पोता वडे पोताने ज हणे छे.
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भावार्थः — परमार्थथी विचारवामां आवे तो पोताने पोते ज रक्षवावाळो छे अने पोते ज घातवावाळो छे. क्रोधदिरूप भाव करे छे त्यारे शुद्ध चैतन्यनो घात थाय छे तथा क्षमदिरूप भाव करे छे त्यारे पोतानी रक्षा थाय छे; अने ए ज (क्षमदि) भावोथी, जन्ममरण रहित थईने, अविनाशी पद प्राप्त थाय छे.
व्यवहारे पंच परमगुरु, अवर सकल संताप.
अहीं प्रथम बे गाथाओ वडे संसारनुं सामान्य स्वरूप कहे छेः —
अर्थः — मिथ्यात्व अर्थात् वस्तुनुं सर्वथा एकांतरूप श्रद्धान करवुं अने कषाय एटले क्रोध-मान-माया-लोभ — ए सहित आ जीवने अनेक
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देहोमां जे संसरण अर्थात् भ्रमण थाय छे तेने ‘संसार’ कहीए छीए. ते केवी रीते? ए ज कहीए छीएः – एक शरीरने छोडी अन्यने ग्रहण करे; वळी पाछो नवुं शरीर ग्रहण करी, पाछो तेने पण छोडी, अन्यने ग्रहण करे; ए प्रमाणे घणी वार ( शरीरने) ग्रहण कर्या ज करे ते ज संसार छे.
भावार्थः — एक शरीरथी अन्य शरीरनी प्रप्ति थया करे ते ज संसार छे.
हवे ए प्रमाणे संसारमां संक्षेपथी चार गति छे तथा अनेक प्रकारनां दुःख छे. त्यां प्रथम ज नरकगतिनां दुःखोने छ गाथाओ द्वारा कहे छेः —
अर्थः — पापना उदयथी आ जीव नरकमां उत्पन्न थाय छे; त्यां पांच प्रकारनां विविध घणां दुःख सहन करे छे, जेमने तिर्यंचदि अन्य गतिओनां दुःखोनी उपमा आपी शकाती नथी.
भावार्थः — जे जीवोनी हिंसा करे छे, जूठ बोले छे, परधन हरण करे छे, परनारीने वांच्छे छे, घणा आरंभ करे छे, परिग्रहमां आसक्त छे, घणो क्रोधी, तीव्र मानी, अति कपटी, अति कठोरभाषी, पापी, चुगलीखोर, (अति) कृपण, देव-शास्त्र-गुरु निंदक, अधम, दुबुरद्धि, कृतघ्नी अने घणो ज शोक-दुःख करवानी ज जेनी प्रकृति छे एवो जीव मरीने नरकमां उत्पन्न थाय छे अने त्यां अनेक प्रकारनां दुःखने सहे छे.
हवे उपर कहेलां पांच प्रकारनां दुःख क्यां क्यां छे ते कहे छेः —
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अर्थः — असुरकुमारदेवोथी उपजावेलां दुःख, (पोताना) शरीरथी ज उत्पन्न थयेलां दुःख, मनथी अने अनेक प्रकारनां क्षेत्रथी उत्पन्न थयेलां दुःख तथा परस्पर करेलां दुःख — ए प्रमाणे पांच प्रकारनां दुःख छे.
भावार्थः — त्रीजा नरक सुधी तो असुरकुमारदेवो मात्र कुतूहलथी जाय छे अने नारकीओने जोई तेमने परस्पर लडावे छे – अनेक प्रकारथी दुःखी करे छे; वळी ए नारकीओनां शरीर ज पापना उदयथी स्वयमेव अनेक रोगयुक्त, बूरां, घृणाकारी अने दुःखमय होय छे, तेमनां चित्त ज महाक्रूर अने दुःखरूप ज होय छे; नरकनुं क्षेत्र महाशीत, उष्ण, दुर्गंधदि अनेक उपद्रव सहित छे; तथा परस्पर वेरना संस्कारथी (आपस-आपसमां) छेदन, भेदन, मारण, ताडन अने कुंभीपाक वगेरे करे छे; त्यांनां दुःख उपमारहित छे.
हवे ए ज दुःखने विशेष (भेद) कहे छेः —
अर्थः — ज्यां शरीरने तलतल प्रमाण छेदवामां आवे छे, तेना तलतल जेटला शकल अर्थात् खंडने पण भेदवामां आवे छे, वज्रग्निमां पकाववामां आवे छे तथा परुना कुंडमां नाखवामां आवे छे.
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अर्थः — ए प्रमाणे पूर्व गाथामां कह्यां तेने मांडीने जे दुःखो ते नरकमां एक काळमां जीव सहन करे छे तेनुं कथन करवाने, जेने हजार जीभ होय ते पण समर्थ थतो नथी.
भावार्थः — आ गाथामां नरकनां दुःखोनुं वचन अगोचरपणुं कह्युं छे.
हवे नरकनुं क्षेत्र तथा ए नारकीओना परिणाम दुःखमय ज छे ते कहे छेः —
अर्थः — नरकमां क्षेत्रस्वभावथी ज बधुंय दुःखदायक छे. अशुभ छे तथा नारकीजीव सदाकाळ परस्पर क्रुधित छे.
भावार्थः — क्षेत्र तो स्वभावथी दुःखरूप छे ज, परंतु नारकी (जीवो) परस्पर क्रोधी थता थका एकबीजाने मारे छे. ए प्रमाणे तेओ निरंतर दुःखी ज रहे छे.
अर्थः — पूर्वभवमां जे स्वजन – कुटुंबी हतो ते पण आ नरकमां क्रोधी बनीने घात करे छे. ए प्रमाणे तीव्र छे विपाक जेमनो एवां दुःखो घणा काळ सुधी नारकीजीवो सहन करे छे.
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भावार्थः — एवां दुःखो सागरोपम (काळ) सुधी सहन करे छे तो पण आयुष्य पूर्ण कर्या विना त्यांथी नीकळवुं बनतुं नथी.
हवे तिर्यंचगतिनां दुःखोने साडाचार गाथाओ द्वारा कहे छेः —
अर्थः — ए नरकमांथी नीकळीने अनेक प्रकारना भेदोवाळी जे तिर्यंचगति तेमां (जीव) उत्पन्न थाय छे; त्यां पण गर्भमां ते दुःख पामे छे. ‘अपि’ शब्दथी सम्मूर्छन थई छेदनदिकनां दुःख पामे छे.
अर्थः — ए तिर्यंचगतिमां जीव, सिंह – वाघ अदि वडे भक्षण थतो तथा दुष्ट मनुष्य (म्लेच्छ, पारधी, माछीमार अदि) वडे मार्यो जतो थको सर्व ठेकाणे त्रासयुक्त बनी रौद्र – भयानक दुःखोने अतिशय सहन करे छे.
अर्थः — ए तिर्यंचगतिमां जीव परस्पर भक्षण थता थका उत्कृष्ट
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दुःख पामे छे, ते आने खाय अने आ तेने खाय. ज्यां जेना गर्भमां उत्पन्न थयो छे एवी माता पण पुत्रने भक्षण करी जाय, तो पछी अन्य कोण रक्षण करे?
अर्थः — ए तिर्यंचगतिमां जीव तीव्र तरसथी तृषातुर तथा तीव्र भूखथी क्षुधातुर थयो थको तेम ज उदरग्निथी बळतो थको (घणां) तीव्र दुःख पामे छे.
हवे ए कथनने संकोचे छेः —
अर्थः — ए प्रमाणे पूर्वोक्त प्रकारथी तिर्यंचयोनिमां जीव अनेक प्रकारथी दुःख पामे छे अने तेने सहे छे. ए तिर्यंचगतिमांथी नीकळीने (कदचित्) मनुष्य थाय तो केवो थाय? लब्धिअपर्याप्त के ज्यां पयारप्ति ज पूरी न थाय.
हवे मनुष्यगतिनां जे दुःखो छे तेने बार गाथाओ द्वारा कहे छे. त्यां प्रथम ज गर्भमां ऊपजे ते अवस्था कहे छेः —
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अर्थः — अथवा गर्भमां ऊपजे तो त्यां पण हस्त-पाददि अंग अने आंगळां अदि प्रत्यंग ए बधा एकठा संकुचित रह्या थका (जीव) दुःख सहे छे अने त्यांथी योनिद्वारे नीकळतां ते तीव्र दुःखने सहन करे छे.
वळी ते केवो थाय, ते कहे छेः —
अर्थः — गर्भमांथी नीकळ्या पछी बाळ अवस्थामां ज मात- पिता मरी जाय तो दुःखी थतो थको पारकी उच्छिष्ट वडे जीवननिर्वाह करतो तथा मागवानो ज छे स्वभाव जेनो एवो ते, महादुःखे काळ निर्गमन करे छे.
वळी कहे छे के ए बधुं पापनुं फळ छेः —
अर्थः — आ लोकना बधा मनुष्यो पापना उदयथी अशातावेदनीय, नीचगोत्र अने अशुभनाम – आयु अदि दुष्कर्मना वशे एवां दुःखो सहन करे छे तोपण पाछा पाप ज करे छे, पण पूजा, दान, व्रत, तप अने ध्यानदि छे लक्षण जेनुं एवां पुण्यने उपजावता नथी ए मोटुं अज्ञान छे.
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अर्थः — सम्यग्द्रष्टि अर्थात् यथार्थ श्रद्धावान, मुनि-श्रावकनां व्रतो सहित, उपशमभाव अर्थात् मंदकषाय परिणामी, निंदन अर्थात् पोताना दोषोने पोते याद करी पश्चाताप करनार, अने गर्हण अर्थात् पोताना दोषने गुरुजन पासे विनयथी कहेनार; ए प्रमाणे निंदा-गर्हासंयुक्त जीव पुण्यप्रकृतिओेने उपजावे छे. पण एवा विरला ज होय छे.
हवे कहे छे के पुण्ययुक्तने पण इष्ट-वियोगदि जोवामां आवे छे.
अर्थः — पुण्योदययुक्त पुरुषने पण इष्टवियोग अने अनिष्ट संयोग थतो जोवामां आवे छे. जुओ, अभिमानयुक्त भरत चक्रवर्ती पण पोताना नाना भाई बाहुबलीथी हार पाम्या.
भावार्थः — कोई जाणे के ‘जेने महान पुण्यनो उदय छे तेने तो सुख छे’, पण संसारमां तो सुख कोईने पण होतुं नथी. भरत चक्रवर्ती जेवा पण अपमानदिकथी दुःखी थया तो बीजाओनी वात ज शी कहेवी?
हवे ए ज अर्थने द्रढ करे छेः —
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अर्थः — आ संसारमां समस्त पदार्थोनो, जे विषय अर्थात् भोग्य वस्तु छे ते सर्वनो, योग मोटा पुण्यवानने पण सर्वांगपणे मळतो नथी. कोईने एवुं पुण्य ज नथी के जे वडे बधाय मनोवांच्छित (पदार्थो) मळे.
भावार्थः — मोटा पुण्यवानने पण वांच्छित वस्तुमां कांई ने कांई ओछप रहे छे, सर्व मनोरथ तो कोईना पण पूर्ण थता नथी; तो पछी (कोई जीव) संसारमां सर्वांग सुखी केवी रीते थाय?
अर्थः — कोई मनुष्यने तो स्त्री नथी, कोईने जो स्त्री होय तो पुत्रनी प्रप्ति नथी तथा कोईने पुत्रनी प्रप्ति छे तो शरीर रोगयुक्त छे.
अर्थः — जो कोई नीरोग देह होय तो धन-धान्यनी प्रप्ति होती नथी अने जो धन-धान्यनी प्रप्ति थई जाय छे तो (कदचित्) मरण पण थई जाय छे.
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अर्थः — आ मनुष्यभवमां कोईने स्त्री दुराचरणी छे, कोईने पुत्र जुगार अदि दुर्व्यसनोमां लवलीन छे, कोईने शत्रु समान कलहकारी भाई छे तो कोईने पुत्री दुराचरणी छे.
अर्थः — कोईने तो सारो पुत्र होय ते मरी जाय छे, कोईने इष्ट स्त्री होय ते मरी जाय छे तो कोईने घर-कुटुंब सघळुं अग्नि वडे बळी जाय छे.
अर्थः — उपर प्रमाणे मनुष्यगतिमां नाना प्रकारनां दुःखोने सहवा छतां पण आ जीव सद्धर्ममां बुद्धि करतो नथी अने पापारंभने छोडतो नथी.
अर्थः — धनवान होय ते निर्धन थई जाय छे, ए ज प्रमाणे निर्धन होय ते इश्वर थई जाय छे. वळी राजा होय ते किंकर थई
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जाय छे. अने किंकर होय ते राजा थई जाय छे.
अर्थः — कर्मोदयवशे वैरी होय ते तो मित्र थई जाय छे तथा मित्र होय ते वैरी थई जाय छे. एवो ज संसारनो स्वभाव छे.
भावार्थः — पुण्यकर्मना उदयथी वैरी पण मित्र थई जाय छे तथा पापकर्मना उदयथी मित्र पण शत्रु थई जाय छे.
हवे चार गाथामां देवगतिनां दुःखोनुं स्वरूप कहे छेः —
अर्थः — अथवा (कदचित्) महान कष्टथी देवपर्याय पण पामे त्यां तेने पण महान ॠद्धिधारक देवोनी ॠद्धिसंपदा जोईने मानसिक दुःख उत्पन्न थाय छे.
अर्थः — महर्द्धिकदेवोने पण इष्ट ॠद्धि अने देवांगनदिनो वियोग थतां दुःख थाय छे. जेमने विषयाधीन सुख छे तेमने तृप्ति क्यांथी थाय? तृष्णा वधती ज रहे छे.
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हवे शारीरिक दुःखथी मानसिक दुःख मोटुं छे — एम कहे छेः —
अर्थः — कोई समजे के शरीरसंबंधी दुःख मोटुं छे अने मानसिक दुःख अल्प छे. तेने अहीं कहे छे के शारीरिक दुःखथी मानसिक दुःख घणुं तीव्र छे – मोटुं छे; जुओ, मानसिक दुःख सहित पुरुषने अन्य घणा विषयो होय तोपण तेओ दुःखदायक भासे छे.
भावार्थः — मनमां चिंता थाय त्यारे सर्व सामग्री दुःखरूप ज भासे छे.
अर्थः — देवोने मनोहर विषयोथी जो सुख छे एम विचारवामां आवे तो ते प्रगटपणे सुख नथी. जे विषयोने आधीन सुख छे ते दुःखनुं ज कारण छे (दुःख ज छे).
भावार्थः — अन्य निमित्तथी सुख मानवामां आवे ते भ्रम छे, कारण के जे वस्तु सुखना कारणरूप मानवामां आवे छे ते ज वस्तु काळान्तरमां दुःखना ज कारणरूप थाय छे.
ए प्रमाणे विचार करतां संसारमां कोई ठेकाणे पण सुख नथी एम कहे छेः —
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अर्थः — ए प्रमाणे सर्व प्रकारे असार एवा आ दुःखसागररूप भयानक संसारमां निश्चयथी विचार करवामां आवे तो शुं कोई ठेकाणे किंचित् पण सुख छे? अपितु नथी ज.
भावार्थः — चारगतिरूप संसार छे. अने चारे गतिओ दुःखरूप ज छे, तो तेमां सुख क्यां समजवुं?
हवे कहे छे के आ जीव पर्यायबुद्धिवाळो छे. तेथी ते जे योनिमां ऊपजे छे त्यां ज सुख मानी ले छेः —
अर्थः — हे प्राणी! तमे जुओ तो खरा आ मोहनुं माहात्म्य! के पापवश मोटो राजा पण मरीने विष्टाना कीडामां जई उत्पन्न थाय छे अने त्यां ज ते रति माने छे – क्रीडा करे छे.
हवे कहे छे के — आ प्राणीनो एक ज भवमां अनेक संबंध थाय छे.
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अर्थः — एक जीवने एक भवमां आटला संबंध थाय छे तो पछी धर्मरहित जीवोने अन्य भवोना संबंधमां तो शुं कहेवुं? ते संबंध क्या क्या छे? ते कहीए छीएः — पुत्र तो भाई थयो अने भाई हतो ते दियर थयो, माता हती ते शोक थई अने पिता हतो ते भरथार थयो. एटला संबंध वसंततिलका वेश्या, धनदेव, कमळा अने वरुणने (परस्पर) थया. तेमनी कथा अन्य ग्रंथोथी अहीं लखीए छीएः —
मालवदेशनी उज्जयनी नगरीमां राजा विश्वसेन हतो. त्यां सुदत्त नामनो शेठ रहेतो हतो. ते सोळ करोड द्रव्यनो स्वामी हतो. ते शेठ एक वसंततिलका नामनी वेश्यामां आसक्त थयो अने तेने पोताना घरमां राखी. ते गर्भवती थई त्यारे रोग सहित देह थवाथी तेने पोताना घरमांथी काढी मूकी. ते वसंततिलकाए पोताना घरमां ज पुत्र-पुत्रीना जोडकाने जन्म आप्यो. ते वेश्या खेदखिन्न थईने ए बन्ने बाळकोने जुदा जुदा रत्नकांबळमां लपेटी पुत्रीने तो दक्षिण दरवाजे नाखी आवी
स्त्रीने सोंपी. तेनुं (पुत्रीनुं) नाम कमळा राख्युं — तथा पुत्रने उत्तरदिशाना दरवाजे नाख्यो. त्यांथी साकेतपुरना एक सुभद्र नामना वणजाराए तेने (पुत्रने) उपाडी पोतानी स्त्री सुव्रताने सोंप्यो अने तेनुं धनदेव नाम राख्युं. हवे पूर्वोपर्जित कर्मवश ते धनदेवनो पेली कमळानी साथे विवाह थयो अने ए बंने (भाई-बहेन) पति-पत्नी थयां. पछी आ धनदेव व्यापार अर्थे उज्जयिनी नगरीमां गयो. त्यां ते पेली वसंततिलका वेश्यामां लुब्ध थयो अने तेना संयोगथी वसंततिलकाने एक पुत्र जन्म्यो. तेनुं नाम वरुण राख्युं. हवे एक दिवस कमळाए कोई मुनिने पोतानो संबंध पूछ्यो अने मुनिए तेनुं सर्व वृतांत कह्युं, ते नीचे प्रमाणे छेः
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आ उज्जयिनी नगरीमां एक सोमशर्मा नामनो ब्राह्मण हतो. तेने काश्यपी नामनी स्त्री हती. तेमने अग्निभूत अने सोमभूत नामना बे पुत्र थया. ए बंने क्यांकथी भणीने आवता हता. त्यां मार्गमां कोई जिनदत्त मुनिने तेमनी माता, जे जिनमती आर्या हती ते, क्षेमकुशळ पूछती देखी तथा त्यां बीजा कोई जिनभद्रमुनि हता तेमने सुभद्रा नामनी आर्या, के जे तेमना पुत्रनी वहु हती ते, क्षेमकुशळ पूछती देखी, ए द्रश्य आ बंने भाईओए दीठुं अने त्यां हास्य कर्युं के
तरुण स्त्री, अहो विधाताए खरी विपरीतता रची छे!’ उपर्जित कर्म अनुसार सोमशर्मा तो मरीने वसंततिलका वेश्या थयो तथा ए हास्यना पापथी अग्निभूत अने सोमभूत बंने भाई मरीने आ वसंततिलकाने पुत्र-पुत्रीरूप जोडकां थयां अने तेमनुं कमळा अने धनदेव नाम राख्युं. वळी पेली काश्यपी ब्राह्मणी हती ते (मरीने) वसंततिलका अने धनदेवना संयोगथी वरुण नामनो पुत्र थई. ए प्रमाणे आ सर्व संबंध सांभळीने कमळाने जतिस्मरणज्ञान थयुं, त्यारे ते उज्जयिनी नगरीमां वसंततिलकाने घरे गई. त्यां पेलो वसंततिलकानो पुत्र वरुण पारणामां झूलतो हतो. तेने ते कहेवा लागी के हे बाळक! तारी साथे मारा छ प्रकारना संबंध छे, ते तुं सांभळ.
१. मारो भरथार जे धनदेव तेना संयोगथी तुं जन्म्यो माटे मारो पण तुं (शोक) पुत्र छे.
२. धनदेव मारो सगो भाई छे तेनो तुं पुत्र छे, माटे तुं मारो भत्रीजो पण छे.
३. तारी माता वसंततिलका छे ते ज मारी पण माता छे, माटे तुं मारो भाई पण छे.
४. तुं मारा भरथार धनदेवनो नानो भाई छे, तेथी तुं मारो दियर पण छे.
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५. मारो भरथार धनदेव छे ते मारी माता वसंततिलकानो पण भरथार छे, तेथी धनदेव मारो पिता पण थयो अने तेनो तुं नानो भाई छे, माटे तुं मारो काको पण छे.
६. हुं वसंततिलकानी शोक्य थई, तेथी धनदेव मारो शोकपुत्र थयो अने तेनो तुं पुत्र छे माटे तुं पौत्र पण छे.
ए प्रमाणे वरुणने ते छ प्रकारना संबंध कहेती हती. त्यां पेली वसंततिलका आवी अने आ कमळाने कहेवा लागी के तुं कोण छे? के मारा पुत्रने आ प्रमाणे छ प्रकारथी तारो संबंध संभळावे छे? त्यारे कमळा बोली के तारी साथे मारे पण छ प्रकारथी संबंध छे. ते तुं पण सांभळ!
१. प्रथम तो तुं मारी माता छे, कारण के हुं धनदेवनी साथे तारा ज उदरथी युगलरूपे ऊपजी छुं.
२. धनदेव मारो भाई छे, तेनी तुं स्त्री छे, माटे तुं मारी भोजाई (भाभी) पण छे.
३. मारो भरथार धनदेव छे, तेनी तुं पण स्त्री छे, माटे तुं मारी शोक पण छे.
४. तुं मारी माता छे अने तारो भरथार धनदेव पण थयो एटले धनदेव मारो पिता थयो, तेनी तुं माता छे, माटे तुं मारी दादी पण छे.
५. धनदेव तारो पुत्र छे अने ते मारो पण शोकपुत्र छे, तेनी तुं स्त्री थई, माटे तुं मारी पुत्रवधू पण छे.
६. हुं धनदेवनी स्त्री छुं अने तुं धनदेवनी माता छे, माटे तुं मारी सासु पण छे
आ प्रमाणे वसंततिलका वेश्या पोताना छ प्रकारना संबंध सांभळीने चिंतामां विचारग्रस्त हती त्यां ज पेलो धनदेव आव्यो. तेने
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जोईने कमळा बोली के तारी साथे पण मारा छ प्रकारना संबंध छे. ते सांभळः —
१. प्रथम तो तुं अने हुं बन्ने आ ज वेश्याना उदरमांथी जोडकारूपे साथे जन्म्यां छीए, माटे तुं मारो भाई छे.
२. पछी तारो अने मारो विवाह थयो, तेथी तुं मारो पति पण छे.
३. वसंततिलका मारी माता छे अने तेनो तुं भरथार छे. माटे तुं मारो पिता पण छे.
४. वरुण तारो नानो भाई छे अने ते मारो काको थयो, तेनो तुं पिता छे, एटले काकानो पिता होवाथी तुं मारो दादो पण थयो.
५. हुं वसंततिलकानी शोक छुं अने तुं मारी शोकनो पुत्र छे, तेथी तुं मारो पुत्र पण छे.
६. तुं मारो भरथार छे अने तारी माता वसंततिलका मारी सासु थई, ए सासुनो तुं भरथार थयो, एटले तुं मारो ससरो पण थयो.
ए प्रमाणे एक ज भवमां एक ज जीवने अढार संबंध थया.❃ तेनुं अहीं उदाहरण कह्युं. एम आ संसारनी विचित्र विटंबणा छे, तेमां कांई आश्चर्य नथी. ❃. ए अढार नातानी कथा अन्य ग्रंथो उपरथी अहीं लखी छे. ते गाथाओः
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हवे पांच प्रकारना संसारनां नाम कहे छेः —
अर्थः — संसार अर्थात् परिभ्रमण छे ते पांच प्रकारनुं छे. (१) द्रव्य अर्थात् पुद्गलद्रव्यमां ग्रहण-त्यागरूप परिभ्रमण, (२) क्षेत्र अर्थात् आकाशप्रदेशोमां स्पर्शवारूप परिभ्रमण, (३) काळ अर्थात् काळना समयोमां ऊपजवा-विनशवारूप परिभ्रमण, (४) भव अर्थात् नरकदि भवोना ग्रहण-त्यागरूप परिभ्रमण अने (५) भाव अर्थात् पोताने कषाय-योगस्थानरूप भेदोना पलटवारूप परिभ्रमण; – ए प्रमाणे पांच प्रकाररूप संसार जाणवो.
हवे तेनुं स्वरूप कहे छे. त्यां प्रथम द्रव्यपरावर्तन कहे छेः —
अर्थः — आ जीव, आ लोकमां रहेलां जे अनेक प्रकारनां ज्ञानावरणदि कर्मपुद्गलो तथा औदरिकदि शरीररूप नोकर्म-पुद्गलोने मिथ्यात्व-कषायो वडे संयुक्त थतो थको समये समये बांधे छे अने छोडे छे.
भावार्थः — मिथ्यात्व-कषायवश ज्ञानावरणदि कर्मोना समय- प्रबद्धने अभव्यरशिथी अनंत गुणा तथा सिद्धरशिथी अनंतमा भागे पुद्गलपरमाणुओना स्कंधरूप कार्मण वर्गणाओने (आ संसारी जीव) समये समये ग्रहण करे छे तथा पूर्वे जे ग्रहण करी हती के जे सत्तामां