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साथे जईने घोर दुःखो आपे छे तेने पण जो आपनी भक्ति दूर करी
शके छे तो बीजुं एवुं कष्टनुं कर्युं कारण छे के जेने ते भक्ति जीती न
शके? अर्थात् कोई पण नथी
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पापनुं फळ एवुं दुःख पण रही शके नहि. २.
स्तोत्र
चिरकाळथी रहेवाना अभ्यासी हता. ३.
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आवती रत्नो आदिनी वृष्टिथी आ भूमंडळ सुवर्णमय बन्युं हतुं. हवे
ज्यारे आप ध्यानरूपी द्वारवाळा मारा रुचिकर अंतःकरणमां प्रवेश पाम्या
छो तो हे देव! आप मारा आ (कोढना रोगथी घेरायेला) शरीरने
सुवर्णमय बनावी दो एमां कई आश्चर्यनी वात छे? कोई पण आश्चर्यनी
वात नथी. ४.
प्रतिपक्षी नथी एवी शक्ति छे, आप मारी भक्तिथी समृद्ध एवी
चित्तरूपी शय्यामां चिरकाळथी निवास करो छो तेथी मारामां उत्पन्न थता
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शकता नथी. ५.
दावानळनो आताप मने केम नहि छोडे? छोडशे ज, मारा उपर दुःखनो
कोई प्रभाव रही शकशे नहि. ६.
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आभासहित, सुगंधित अने श्रीलक्ष्मीनुं निवासस्थान थई जाय छे. (आम
वात छे त्यां) मारुं संपूर्ण मन जो ध्यानद्वारा आपनो सर्वांगे स्पर्श करे
छे तो पछी एवुं कयुं कल्याण छे के जे मने स्वयं प्रतिदिन प्राप्त न
थाय?
स्थान जे मुक्तिधाम छे तेमां प्रवेशी चुक्या छो, आपनुं आवुं रूप
जोनारने, आपना वचनामृत भक्तिरूप कटोरीथी पीनारने अने आपनी
कृपा
नहि. ८.
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मानरूपी रोगने दर्शनमात्रथी ज केवी रीते दूर करे छे, जो आपनी
समीपताना प्रभावथी ज तेमां ते शक्ति उत्पन्न न थती होय? अर्थात्
आपनी समीपताना प्रभावथी ज तेनामां तेवी शक्तिनो संचार थाय छे
के जे बीजा पाषाण तथा रत्नोमां होती नथी, माटे आपनो ज अपूर्व
महिमा छे. ९.
समूहने शीघ्र खंखेरी नाखे छे तो पछी ध्यान द्वारा बोलावायेल आप जेना
हृदयकमळमां प्रवेश करो छो ते मनुष्य द्वारा एवो कयो लोकोपकार छे के
जे आ लोकमां अशक्य होय? १०.
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प्राप्त थयुं छे के जेनुं स्मरण पण मने शस्त्र आघातनी जेम कष्ट आपे
छे ते बधुं आप जाणो छो, आप सर्व रीते समर्थ छो, दयाळु छो तेथी
ज हुं भक्तिभावपूर्वक आपना शरणमां आव्यो छुं. हवे आ वर्तमान
दुःख
दीधुं छे. ११.
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पछी कोई निर्मळ मणिनी माळाथी आपना नमस्कारचक्रनो भावपूर्वक जाप
करतो थको मरीने इन्द्रनी विभूतिनो स्वामी बने एमां शो संदेह छे?
अर्थात् एमां कोई संदेहनो अवसर नथी. १२.
के जे अमर्यादित
द्वारथी बंध छे? अर्थात् नहि खोली शके. १३.
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वाणीनो प्रकाश पाम्या विना कोई पण मनुष्य ते मुक्तिना मार्ग पर
सुखपूर्वक चालवामां समर्थ थई शके नहि. १४.
अनुभाग
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स्वरुचिथी डूबकी लगावीने जो पापरूप मेलने धोई नाखे तो एमां शुं कोई
संदेह करवा जेवी वात छे? जरा पण संदेह करवा योग्य वात नथी. १६.
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ते योग्य छे कारण के आपना प्रसादथी दोषी मनुष्य पण अभिमत फळनी
प्राप्ति करी ले छे. १७.
सुखी बनी रहे छे. १८.
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करे छे. भगवान्! आप तो सर्वांग सुंदर छो, बीजाओ द्वारा आप अजेय
छो; तो पछी (स्वभावथी ज सुंदर होवाने लीधे) वस्त्रो आभूषणो अने
पुष्पोनुं आपने शुं प्रयोजन होय? तथा शत्रुओथी अजेय होवाना कारणे
शस्त्रो
कारण बने छे; केम के ते तेना भवभ्रमणनो नाश करे छे.
वास्तवमां आप संसार-समुद्रथी पार करनार छो, सिद्धिकान्ताना स्वामी
छो अने त्रणे लोकना स्वामी छो आ जातनुं स्तोत्र आपनी प्रशंसानुं
द्योतक छे. २०.
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परंतु भले न पहोंचे छतां पण भक्तिरूप सुधारसथी पुष्ट थयेला आ
स्तुतिरूप उद्गार भव्यजीवोने माटे अभिष्ट फळ आपनार कल्पवृक्ष समान
बने छे. २१.
नथी. वास्तवमां आपनुं चित्त जे कोईनी अपेक्षा राखतुं नथी ते सदा परम
उपेक्षाथी
बीजाने द्वेषभावथी जोतुं नथी. आवी जातनो प्रभाव आपनाथी भिन्न
कोपादियुक्त सराग देवोमां क्यां होय? क्यांय न होय २२.
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आपना खूब यशोगान कर्या छे. आपनी स्तुति करवा माटे जे उत्सुक अने
उद्यत थाय छे ते क्षेमरूप मोक्ष तरफ गमन करनार मनुष्योनो मार्ग कदी
पण कुटिल अने जटिल बनतो नथी अने ते तत्त्वग्रन्थोना स्मरणमां कदी
मोह पामता नथी
कल्याणानां भवति विषयः पञ्चधा पञ्चितानाम्
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करतो थको
पूर्ण करीने पांच प्रकारना विस्तृत कल्याणकोनो पात्र बने छे. २४.
स्वात्माधीन
करवामां समर्थ नथी; तो अमारा जेवा मन्दबुद्धिवाळाओनी तो वात ज
शी करवी? अमे तो स्तवनना बहाने आपना प्रत्ये मारा उच्च आदरनो
विस्तार कर्यो छे. आ स्तवनरूप उच्च आदर अमारा जेवा स्वात्माधीन
सुखना इच्छकोने माटे ‘कल्याण
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वादिराजना अनुवर्ती छे अने जे भव्यजीवोनी सहाय करनाराओनो
समुदाय छे, ते पण वादिराजनो अनुवर्ती छे
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दीर्घायु होवा छतां पण वृद्धावस्था रहित, एवा सर्वश्रेष्ठ पुराण पुरुष श्री
आदिनाथ जिनेन्द्रदेव भव्य जीवोने सांसारिक दुःखोथी छोडावीने मोक्षसुख
प्रदान करो. १.
हतो, आपनी स्तुति करवामां परम ॠद्धिसंपन्न योगीओ पण असमर्थ
छे. आज ते ज श्री ॠषभनाथ भगवाननी हुं स्तुति करी रह्यो छुं. ते
बराबर छे केमके ज्यां सूर्यनो प्रकाश नथी पहोंचतो त्यां शुं दीपक प्रकाश
नथी करतो? अर्थात् करे ज छे. २.
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नथी. जेम नानकडा वाबारामांथी डोकाईने तेना करता अनेकगणा मोटा
पदार्थोनुं वर्णन करवामां आवे छे तेवी ज रीते हुं (मारा) थोडाक ज्ञान
द्वारा घणा महान पदार्थनुं वर्णन करुं छुं. ३.
नथी. आप केवडा अने केवा छो ए कहेवाने कोई समर्थ नथी माटे आपनी
स्तुति न करी शकवारूप जे कथा छे ते ज आपनी स्तुति छे. ४.
निरोग करे छे तेवी ज रीते संसारी जीवो पोताना आत्मानी भ्रान्तिरूप
रोगथी अत्यंत दुःखी थई रह्या छे तेमने आपे मोक्षमार्गरूपी नीरोगतानी
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अज्ञानी जीवोना आप खरेखर बाळवैद्य छो. ५.
जीवोने आप क्षणवारमां मोक्षदशानी प्राप्ति करावी द्यो छो. परंतु सूर्य जेम
आज अने काल एम करतो दिशा देखाडीने दिवस वीतावी दे छे परंतु
देतो लेतो कांई नथी तेवी ज रीते आपना सिवाय बीजुं कोई पण आज
आपीश, काल आपीश, अने इच्छितपद आपवानी आशा देखाडीने समय
वीतावी दे छे केम के ते स्वतः असमर्थ छे. ६.
दुःख पामे छे. केवळज्ञान रूपी परमद्युतिने धारण करनार आप सदैव ते
बन्ने तरफ दर्पणनी जेम समता स्वभाव धारण करीने शोभायमान थाव
छो अर्थात् पुजारी उपर आप प्रसन्न थता नथी अने निन्दक उपर कोप
करता नथी छतां पण तेओ पोतपोताना परिणामो अनुसार सुख
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आकाश तथा पृथ्वीनी विशाळता पण तेमना सुधी ज सीमित छे परंतु
आपनी धीरज, उन्नत प्रकृति अने उदारता समस्त लोकालोकमां व्यापी
रही छे. ८.
आपे अनवस्था (परिवर्तनशीलता) बतावीने पुनरागमननो अभाव कह्यो
छे. आप प्रत्यक्ष फळ छोडीने अद्रष्ट फळ चाहो छो; आ प्रमाणे आप
विरुद्ध आचरण सहित होवा छतां पण विरुद्ध आचरण रहित छो, ए
महान् आश्चर्य छे. ९.
द्रव्यद्रष्टिथी नित्य अने पर्यायद्रष्टिथी अनित्य धर्मात्मक छे. संसारी जीवोनी
अपेक्षाए पुनरागमन छे परंतु मुक्त जीवोनी अपेक्षाए पुनरागमन नथी
केम के संसारी जीव राग द्वेष, मोहभावोने वश थवाना कारणे जुदी जुदी
योनिओमां परिभ्रमण कर्या करे छे परंतु मुक्त जीवोमां कर्मकलंकनो अभाव
थई गयो छे तेथी तेमने पुनरागमन थतुं नथी. द्रष्टफळ छोडीने अद्रष्टफळ