Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

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श्री महावीर जिन भजन
( मुजे छोड.....)
भक्तों के प्राण पुकार रहे जय हो जय त्रिशला नंदनकी,
श्वासों के स्वरमें लहर उठी जय हो जय त्रिशला नंदनकी.
झगझग हुई यह दुनियां थी जब तुम दुनियामें आये थे,
घंट नाद बजेथे स्वर्गमें इन्द्रों के आसन डोले थे.
ओ त्रिशलानंदन चरणों में ले लो मेरा वंदन ले लो,
ये भावकी प्याली भरी हुई लाया हू केसर चंदनकी.
अमृत की धारा छलक पडी विपुलाचल गिरवरसे छलकी!
बारह सभा सुनके बोल ऊठी जय महावीर दुःखभंजनकी.
वो राह बतादो हमको भी बन जाउं शिवपुरका राही,
जिस मार्ग पै ही चलकर अंजन को पदवी मिली निरंजनकी.
तेरी करुणा की किरणों से जिस जिसने थी करुणा पाई,
सब पथिक मोक्ष के हुए काट डोरी कर्मों के बंधनकी.
श्री सीमंधार प्रभु की धाून
जय सीमंधर जय सीमंधर जय सीमंधर देवा....
माता तोरी सत्यवती ने पिता श्रेयांस राया,
पुंडरगिरिमें जन्म लिया प्रभु साक्षात् अरहंत देवा....जय

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आप विदेह के हो तीर्थंकर दिव्यध्वनि के दाता,
भरतक्षेत्रमें धर्मवृद्धि प्रभु! तारा नंदन द्वारा....जय
भरतक्षेत्रना भक्तो तारी करे हृदयसे सेवा,
भव भव होजो भक्ति तुमारी ओ...देवनके देवा....जय
सुवर्णपुरीमें नाथ पधार्या.....दरशन दासने देवा,
भव भवमें प्रभु प्रीत तुमारी चाहुं चरणमें रहेवा....जय
श्री पासर प्रभुकी धाून
जय पारस जय पारस जय पारस देवा....
माता तोरी वामा देवी पिता अश्वसेना,
काशीजीमें जन्म लिया प्रभु हो देवन के देवा....जय
आप तेईसवें हो तीर्थंकर भक्तो को सुखमेवा,
पांचो पाप मिटाकर हमरे शरण देए जिन देवा....जय
दूजो और कोई ना दीखे पार लगाओ खेवा,
आनंद मंगल वृद्धि होवे जो करे आपकी सेवा....जय
नागिननाग बचाकर तुमने भवसे किया पारा,
वैरागी हो मुनिपद धारे वंदन आज अमारा....जय

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श्री जिनराजभजन
भक्ति जिनराज है मुक्ति की ये नाव है...
आजा महावीर प्रभु तेरा ही आधार है...
तुमको अंखिया ढूंढ रही हैं,
दरशन तो दिखलाजा,
आवगमन मिटाकर भगवन्!
जगसे पार लगाजा...भक्ति.
भाई-बंधु कुटुंब कबीला सब जिनवरको माना,
प्रतिसमय जो जिनको ध्यावे,
मिटे तो आना जाना....भक्ति.
जिसने ध्यान लगाया तुमसे बेडा पार लगाया,
सारी जगको भूलकर भगवान,
तुमसे ध्यान लगाया....भक्ति.
श्री सीमंधार प्रभुकी स्तुति
आओ करें सभी नर नारी, भक्ति सीमंधर प्रभुकी.
शुद्ध भावसे जय जय बोलें,
रत्नदीप ले थाल संजो ले,
ज्ञानज्योति रस घट घट धोवें....कर भक्ति प्रभुकी. १

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मिथ्या मोह अरू भ्रम छोडें,
वस्तु स्वरूप धरम मन जोडें;
अविचल निधि पाने को दौडें....समवसरण प्रभुकी. २
प्रभु वाणी सुण ज्ञान जगायें,
निज आतम अनुभवमें लायें;
सिद्धासन फिर हम सब पावें...पथ पर चल प्रभुकी. ३
मुश्किल विदेह क्षेत्रका जाना,
ठाठ सोनगढ यहीं सुहाना;
कहानगुरु का जगां ठिकाना...समवसरण प्रभुकी. ४
प्रभुदर्शन सौभाग्य सु पाकर,
जीवन सफल हुओ यहां आकर;
करें सेवना सद्गुण गाकर....सीमंधर प्रभुकी. ५
श्री जिनेन्द्र पूजन भावना
कब ऐसा अवसर पाउं, भला कब पूजा रचाउं....
रतन जडित सुवर्ण की झारी, गंगाजल भरवाउं,
केसर अगर कपूर घिसाउं, तंदुल धवल धुवाऊं.
माल पुष्पन की चढाउं....कब०
षट रस व्यंजन तुरत बना के, अष्टक थार भराउं,
दीपकज्योति उतारुं आरति, धूप की धूम्र ऊडाउं,
श्रीफळ भेट चढाउं....कब०

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पाठ पढूं और पूजा रचाउं, लेकर अर्घ बनाउं,
शांत छबी जिनराज रूप लख, हर्ष हर्ष गुण गाउं,
करम का योग मिटाउं...कब०
बाजत ताल मृदंग वांसुरी, लेकर बीन बजाउं,
नाचत चंद्र प्रभु पद आगे, बेर बेर शिर नाउं,
निछावर दर्शन पाउं...कब०
या विधि पूजन मंगल करके, हर्ष हर्ष गुण गाउं,
सेवक की प्रभु अरज यही है, चरणकमल शिर नाउं,
जिससे मैं तिर जाउं....कब०
श्री जिनराज - भजन
(गझल)
तिहारे ध्यानकी मूरत अजब छबिको दिखाती है,
विषयकी वासना तजकर निजातम लौ लगाती है. (टेक)
तेरे दर्शन से हे स्वामी, लखा है रूप मैं मेरा,
तजुं कब राग तन धन का ये सब मेरे विजाती है....१
जगत के देव सब देखें कोई रागी कोई द्वैषी,
किसी के हाथ आयुध है किसी को नार भाती है....२
जगत के देव हटग्राही कुनय के पक्षपाती हैं,
तूंही सुनय का है वैत्ता वचन तेरे अघाती हैं...३

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मुझे इच्छा नहीं जगकी, यही है चाह स्वामीजी,
जपुं तुज नामकी माला जु मेरे काम आती है...४
तुम्हारी छबि निरख स्वामी निजातम लौ लगी मेरे,
यही लौ पर कर देगी जो भक्तों को सुहाती है...५
श्री ´षभ जिनभजन
(म्हारा नेम पिया गिरनारी चाल्या....)
म्हारा ॠषभ जिनेश्वर नैया म्हारी, भवसे पार लगाजो.
खेवट बनकर शीघ्र खबर ल्यो, अब मत देर लगाजो. टेक
इस अपार भवसिंधु को तिरना चाहुं और,
नैया म्हारी झरझरी, पवन चले झकझोर,
म्हारी नैया को इस फंदासूं प्रभु आकर थे ही छुडाजो...म्हा.१
क्रोध मान मद लोभ ये सबही को कर दूर,
भव सागर को तीरतें तुमही हो मम मित्र,
ओ हितकारी भगवन म्हारो धन चारित्र बचाजो...म्हा.
सब भक्तों की टेर सुन, राखी छो थे लाज,
आयो हूं अब शरणमें सारो म्हारो काज,
सकल तिमिर को दूर भगाकर ज्ञान को दीप जगाजो...म्हा.

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श्री जिनेन्द्रस्तवन
(गझल)
प्रभुजी आप बिन मेरे अंधेरा ही अंधेरा था,
मुसीबतमें न कोई था सहारा एक तेरा था...
उदय अब पुण्य का आया दरश मैं नाथका पाया,
प्रभु को देखकर हुआ प्रसन्न मन आज मेरा है...
इसी चक्कर में दुनियां के सहे दुःख लाख चौरासी,
नहीं क्षण एक भी मुझको मिला था सुख आतमका...
प्रभु अब दर्श दो साक्षात् मुझे नहीं चेन पडता है,
मिटा आवागमन मेरा तुझे मैं टेर करता हूं...
प्रभु जब आप हिरदेमें झूले मन मेरा आनंदमें,
सहारा तेरा है भारी प्रभुजी मेरे जीवनमें...
श्री जिनराजस्तुति
(भव भव के बंधन तोड प्रभु...)
आया हुं दुःखसे मैं हारा प्रभु,
अब आप बचाने वाले हैं...
दुःख पाउं यहां तुम चैन करो,
यह काम न होने वाले हैं....

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ओ....नाथ निरंजन जगतपति,
यों माना कि तुम वैरागी हो.
है नाम तुम्हारे नैया से
भव पार लागने वाले हैं....१
रस आपके वचनोंमें कहते हैं यह,
इक वार पीये जो होते अभय.
दो घूंट पिला दो ज्ञान सुधा
अभी वह दिन आने वाले हैं...२
अब आवागमनसे मुक्ति मिले,
भव भीड भगे शुभ ज्योति जगे,
‘सौभाग्य सफल कर जीवन का,
नहीं और बचाने वाले हैं....३
श्री पद्मप्रभु जिन स्तवन
भव भव के बंधन काट प्रभु, मैं शरण तिहारी आया हूं,
गतियों के दुःख से दुःखी हुआ और जन्मोंसे घबराया हूं.
जो जनम मरनके दुःख सहे नहीं हमसे बचनसे जाय कहे,
इस दुःखसे मेरा उद्धार करो अर्जीये लगाने आया हूं...भव.
जब तक मैं तेरे शरण रहूं, निश्चल निर्भय ही रहा करुं,
प्रभु दे दीजे अब रत्नत्रय मैं वहीं लेने को आया हूं...भव.

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संसार समन्दर के अंदर नैया है भंवर में फंसी हुई,
कर पार ईसे खेवट बनकर तेरी चरनशरनमें आया हूं...भव३
इन लाख चोराशी योनीमें बिन जाने तेरे भटक रहा,
अब आतमज्योति जगी उरमें तब भेद तिहारा पाया हूं...भव४
निर्भय व निडर बनकर ‘मन्ना’ है तेरी भक्तिमें लीन हुआ,
पाकर के तुमसा पद्मप्रभु मन फूला नहीं समाया हूं...भव
श्री सीमंधार जिन स्तवन
मेरे मनमें आ बसा (२) प्यारे तुं जिनेश बसा,
चरनन पलक पसार खडा अघहर पथ दरशाजा...
घनन घनन घन घुमड घुमाता, कुमति संग नचाय,
निजपर भेद समज नहि पाया, जीवन दियो बिताय...१
लाख चोराशी में अति भटका, विपद कही नहीं जाय,
पुण्य योग श्री जिनवर मिला, गुरु उत्तम शिव दाय...२
दर्शन का ‘सौभाग्य’ प्राप्त कर मन फूला न समाय,
निजानंद अनुभव रस पाउं आवागमन नसाय...३
यही सुपथ है भव तिरनेका रत्नत्रय उप लाय,
शीघ्र तज दे पर परिणतिको निजपरिणतिमें आय...४

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श्री जिनेन्द्रस्तवन
आये तेरी शरणमें लाये तेरी शरणमें,
फरियाद यह जरासी राखी तेरी शरणमें.....(टेक)
लाखों ही तेरे दर पर, दुःख दास्तां सुनाने,
आते हैं सर झुकाते भगवन तुझे रिझाने;
सुनकर यही सुयश बैठे तेरी शरणमें...१
हर दिलमें तू बसा है हर लबपै नाम तेरा,
छूटे मुसीबतों से चरणोंमें कर बसेरा,
‘सौभाग्य’से मिलेगी मुक्ति तेरी शरणमें...२
श्री सीमंधार जिन स्तवन
(आयेगा...आयेगा...)
आ गया आ गया आ गया शरण तुम्हारी....टेक
सुनकर बिरद तुम्हारा तेरी शरण में आया,
तुमसा तो देव मैंने कोई कहीं न पाया;
सर्वज्ञ वीतरागी सच्चे हितोपदेशक,
दर्शनसे नाथ तेरे कटते हैं पाप बेशक.
चारों गतिके दुःख जो मैंने भुगत लिये हैं,
तुमसे छिपे नहीं हैं जो जो करम किये हैं;

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अब तो जनम मरन की काटो हमारी फांसी,
सीमंधर नाथ! जलदी मुक्ति करादो खासी.
अंजन से चोरको भी तुमने किया निरंजन,
श्रीपाल कुष्टिकी भी काया बनाई कंचन,
मेंढकसा जीव भी जब तुम नामसे तिरा है,
‘पंकज’ यह सोच तेरे चरणोंमें आ गिरा है.
श्री महावीर जिन स्तवन
ओ....त्रिशलानंदन, भूल हमें मत जाना...ओ
जब तक जीउं तुमको ध्याउं, जनम जनममें तुमको पाउं,
मेरी लाज निभाना....ओ....१
संकट मोचन नाम तुम्हारा, शरणागत को तारणहारा,
हमने अब पहिचाना....ओ...२
विपदाओं के बादल छाये, नैया मेरी गोते खाये,
‘पंकज’ इसको कौन बचाये, तुमही पार लगाना...ओ....३
श्री जिनेन्द्रस्तवन
जीवन ज्योति जगाउं, तिहारे गुण गाउं, ए वीर! दे दो दरश..वा.
नैनां बीच समाई, जिया नहीं लागे कहीं, अब दे दो दरश वा.

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चरणोंका चाकर हूं, प्रभुजी मैं करलूं.....(२)
भक्ति भावसे तेरी पूजा करी भवसागर तर लूं....१
तेरे निर्मल दर्शन को यह नैन पसारी झोली....(२)
आवागमन छुडा दो प्रभुजी होनीथी सो होली....२
दीनानाथ दयाके सागर मुझ दुःखियाकी सुनलो करुण कहानी,
फैला दे सौभाग्य जिनका धर्म यही है ठानी....३
श्री महावीर जिन स्तवन
प्रभु तुम ही हमारे हो जीवन के सहारे...
सिद्धार्थ के हो नंद तुम्ही त्रिशला दुलारे...
तूंहीने बचाया है मुझे भव से तिराया,
दुनियां के मोह जाल से तैने ही छुडाया,
अब तुम्हीं लगादो यह मेरी नैया किनारे...प्रभु० १
इकवार जरा नाथ मुझे दर्श दिखा दो,
तेरा भक्त रहा भरत प्रभु आके संभालो,
सेवक है अकेला प्रभु तुम मुक्ति सिधारे...प्रभु० २

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रंग मच्यो जिनद्वार
(राग....होरी....)
रंग मच्यो जिनद्वार चलो सखी खेलन होरी....
सुमत सखी सब मिलकर आवो, कुमितिने देवो नीकार,
केशर चंदन ओर अर्गजा, समता भाव घुलाव....चलो.
दया मिठाई तप बहु मेवा सित ताम्बुल चवाय,
आठ करम की डोरी रची है, ध्यान अग्नि सु जलाय...चलो.
गुरुके वचन मृदंग बजत है ज्ञान क्षमा डफ ताल,
कहत ‘बनारसी’ या होरी खेलो, मुक्ति पुरीको राव....चलो.
श्री नेमिनाथ स्तवन
(राग...होरी....)
सखी...मन धीर न धारे...बिना पिय नेम पियारे....सखी.
अबलो अंश लगा मन राखे निशदिन वाट निहारे,
जब दिन मधुर मिलना का आया,
तज गीरनार सिधारे...सखी मन.
पशुवनसें प्रभु प्रीत बढाई मुझसे नेह विसारे,
तौरन से रथ फेर गये वो,
नहीं चित चिंता धारे...सखी मन.

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भोग भूजंग भयंकर भव भव भंजन योग चितारे,
स्हेसावन जा कर कचलोचन,
भूषन वसन उतारे...सखी मन.
पल पल पलकें पिय प्यारे पर नैनां पलक पसारे,
यह सौभाग्य सफल हो जबही नित ऊठ नेम नीहारे. सखी.
भजन
(राग...होरी)
मेरा मन ऐसी खेलत होरी...मेरा मन....
मन मिरदंग साज करी व्यारी, तनको तंबूर बनोरी,
सुमतिमुरंग सारंगी बजाइ, ताल दोउ कर जोरी,
राग पाचो पद कों....री....
समकितरूप नीर भर झारी, करुणा केशर घोरी,
ज्ञानमयी लेकर पीचकारी, दोउ करमांही सम्होरी,
इन्द्रि पाचों सखी वोरी...
चतुर दान को है गुलाब सो भरी भरी मूठी चलोरी,
तपमें वांकी भरी निज झोरी, यशको अबील ऊडोरी,
रंग जिनधाम मचोरी...
‘दौल’ बाल खेले अब होरी, भव भव दुःख टलोरी,
शरना ले एक श्री जिन कोरी, जगमें लाज हो तारी,
मिले फगुआ शिवगौरी...

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श्री नेमिनाथ प्रभुनो प्रसंग
(लाल कैसे जावोगे, अशरन शरन कृपाल)
इक दिन सरस वसंत समय में, केशव की सब नारी...
प्रभु प्रदक्षणा रूप खडी है कहत नेमी पर वारी...१
कुंकुम लै मुख मलते रूकिमणी, रंग छिडकत गांधारी....
सत्यभामा प्रभु ओर जोर कर छौरत है पीचकारी...२
‘व्याह कबूल करो तो छूटो’ इतनी अरज हमारी...
‘ओंकार’ कह कर प्रभु मुलके छांड दियो जगतारी...३
पुलकित वदन मदन पित भामिनी निज निज सदन सिधारी..
‘दौलत’ जादव वंश व्योम शशी ज्यों जगत हितकारी...४
श्री सीमंधार जिन स्तवन
जय जय जय श्री जिनवर प्यारे....
जय जय जय भवसागर सों तारण हारे...!
जनम जनम यों भटक भटक दारूण दुःख मैंने पाये,
पाया तारण तरण तुम्हीं को, बैठा आश लगाये...
तुम बिन कौन उगारे....१
भव सागर की भंवरोंसे यह थकी हुई मोरी नैया,
शरण तुम्हारी आया हूं प्रभु पार लगे मोरी नैया....
पार लगादो तारणहारे....२
मुलके = हसे

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गंधकूटी पै नाथ सोहे है मन मोहक ये छबियां,
मन मंदिरमें बसी हुई प्रभु वीतराग मूरतियां...
सेवक तव गुण गाये....३
स्वर्णनगर में मानस्तंभ सोहे, समवसरनकी छाया,
गगनांगण मैं नाथ बिराजे प्रभु विदेह से आया...
सेवक पर कृपा वरसे...४
भारत भरमें डंका जिय का श्रीगुरु कहान बजाया,
परम शांति पाने के हेतु गुरुजी चरनमें आया....
जुगजुग जीवो कहान हमारा...५
वीरप्रभुना जन्मनी वधााइ
त्रिशला के अंगना....
आज बाजे बाजे है वधाई....त्रिशला के अंगना,
पूरजन हुए है मगनवा,
गूंजे जय जय गगना....
धन्य धन्य श्री वीरने लिया पुण्य अवतार. त्रिशला के अंगना...
अंधकार जगका मिटा,
छाया हर्ष अपार....
धन्य आज जयंति आई...आई...त्रिशला के अंगना...
आये इन्द्र शची मिल द्वारा,
लाये ऐरावत गज लार...

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गाते गाते सुयशगुणगान,
भीने भीने गाते ओ गाते हैं लयतान....त्रिशला के अंगना...
छिम...छिम...छिम...छिम...
नाचत है सुरनार सब मिल,
दे रहे हैं करताल
जय जय कलश करें, सौभाग्य त्रिशला के अंगना....
आज बाजे बाजे है बधाई...त्रिशला के अंगना....
त्रिशलानंदन का पारणा Iूलन
[१]
झूला त्रिशला का नंदन....अमर झूलना....
झूला पाप निकंदन.....अमर झूलना....
दोष रहित गुण गण सहित श्री अनेक पति वीर,
कुंडलपुर सिद्धार्थगृह जन्में श्री महावीर;
पुरमें जयजय का घोर, नाना बाजोंका शोर,
नाचै जनगण ज्यों मोर, हो को हर्षित झूलाया...अमर....
[२]
धर्मयुग के अंतमें भारतके मझधार,
आत्मश्रेय को साधने अंतिम था अवतार;
हुई धर्म वृद्धि, जडता दूर भागी;
जगकी निंद खुली, झूले वीर...प्रभुजी...अमर...

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[३]
बाल ब्रह्म हो काम को तरुण अवस्था जीत,
नग्न दिगंबर मुनि भये भोगनतें भयभीत;
लगा आतमका ध्यान, स्वपर वस्तुका ज्ञान,
दिया जगका महान, हो को चिद्रूप...झूलाया...अमर...
[४]
धन्यजीवन प्रभु वीर का धन्य धर्म गुणगान,
जाति विरोधीने किया एक साथ श्रुत-पान;
दिया आतमका ज्ञान, जैन धर्मका भान,
गाया गणधरने गान, हुआ जयजय....प्रभुका...अमर....
[५]
दूर्धर तप कर जिन दिये अष्ट कर्म को नष्ट,
तीन भवन पति धन वरी मुक्ति रमा उत्कृष्ट;
इन्द्र आदिक स्वमेव, नत मस्तक हो देव,
करी चरणों की सेव, गाते सौभाग जय जिन...अमर...
जिनेन्द्र जन्माभिषेक
(तालः कहरवा)
कहां सोवे महारानी लल्ला गोदी लेले रे...
गोदी लेले...गोदी लेले गोदी लेले रे....कहां सोवे०
नींद सफल भई मोरा देवी माई, भरवा लेरी गोद...लल्ला गोदी. १

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आये इन्द्र धरणेन्द्र नरेन्द्र सब, मच रहे है हल्ला. लल्ला गोदी. २
हमहू न्हवन कियो गिरि उपर, क्या है तेरी शल्ला. लल्ला गोदी. ३
द्रग सुख दास आश भई पूरन, हो गया ऊजल्ला. लल्ला गोदी ४
वधााइ
रंग वधाईयां सुन सखी ये शिवा सुत जाईयां
भला वे आज बाजे छे वधाईयां....(टेक)
सब सखीयन मिल मंगल गावेजी दे दे ताल सवाईयां
नरनारी मिल चौक पूरावे मन में हरष सवाईयां
ऐरावत हस्ती सजी कर के तापर प्रभु को पधराईयां
मेरु शिखर ले जाय प्रभु को मघवा कलश ढूराईयां
पूंछ शृंगार कियो सचियनने निरखत अंग नवाइयां
नेम नाम धरी सोंप नृपति को तांडव नृत्य कराईयां
जन्म कल्याणक उत्सव करी के इन्द्र स्वर्ग कुं जाईयां
अब ‘सेवक’ हितकर गुण गावे जामन मरन मिटाइयां
श्री पार्श्वनाथभजन
पार्श्वनाथ देवजी तुम से है यह प्रार्थना,
नाथ आज पूरिये मेरी मनोकामना (टेक)

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भूला हूं मुक्ति की स्वामी डगरियां,
आकर कृपा कर बतादो सांवरिया, जरा लीजो खबरिया,
चौराशीमें होय नहीं धक्के फेर खावना...१
नाग और नागन को जलते उगारा,
नवकार दे कर के जीवन सुधारा, उपकार भारा. २
हम पै भी आज स्वामी दया दिखलावना....
पापी हजारों हैं तुमने उभारे,
पशु और पक्षी अधम हैं उतारे, अंजन से तारे,
नाथ मेरी वार भी देर नहीं लावना....३
पारस पाषाण एक जगमें है नामी,
लोहे को सोना बनादे जो स्वामी, हे गुणके धामी,
नाम जपे तेरा ‘शिव’ पदका हो पावना....४
श्री जिनवर स्तुति
तुम बिन हमरो कौन सहाई श्री जिनवर उपकारी
शेठ सुदर्शन के संकटमें नाथ! तुम्हीं तो आये थे,
शूली तो सिंहासन कीना उनके प्राण बचाये थे,
सीताजी की अग्निपरीक्षा तुमने पार उतारी....तुम बिन.
भविष्यदत्त पर भीड पडी जब तुमको हृदय बिठाया था,
आफत मेटी सारी उसकी सानंद घर पहुंचाया था;
द्रौपदी के चीर हरण की तुमने विपदा टारी...तुम बिन.