Shri Jinendra Bhajan Mala-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Combined PDF/HTML Page 2 of 11

 

Page 11 of 208
PDF/HTML Page 21 of 218
single page version

background image
तब विलंब नहीं कियो साप किय कुसुम सुमाला,
तब विलंब नहीं कियो उर्मिला सुरथ निकाला;
तब विलंब नहीं कियो शील बल फाटक खूल्ले,
तब विलंब नहीं कियो अंजना वन मन फूले...इम चूरि०
तब विलंब नहीं कियो शेठ सिंहासन दीन्हों,
तब विलंब नहीं कियो सिंधु श्रीपाल कढीन्हों;
तब विलंब नहीं कियो प्रतिज्ञा वज्रकर्ण पल,
तब विलंब नहीं कियो सुधन्ना काढि वापिथल...इम चूरि०
तब विलंब नहीं कियो कंस भय त्रिजुग उगारे,
तब विलंब नहीं कियो कृष्ण सुत शिला उधारे;
तब विलंब नहीं कियो खड्ग मुनिराज बचायो,
तब विलंब नहीं कियो नीर मातंग उचायो...इम चूरि०
तब विलंब नहीं कियो शेठ सुत निरविष कीन्हों,
तब विलंब नहीं कियो मानतुंग बंध हरीन्हों;
तब विलंब नहीं कियो वादिमुनि कोढ मिटायो,
तब विलंब नहीं कियो कुमुद निजपास कटायो....इम चूरि०
तब विलंब नहीं कियो अंजना चोर उगार्यो,
तब विलंब नहीं कियो पूरवा भील सुधार्यो;
तब विलंब नहीं कियो गृद्धपक्षी सुंदर तन,
तब विलंब नहीं कियो भेद दिय सुर अद्भुतधन..इम चूरि०
इह विधि दुःख निरवार सार सुख प्राप्ति कीन्हों,
अपनो दास निहारि भक्त वत्सल गुण चीन्हों;

Page 12 of 208
PDF/HTML Page 22 of 218
single page version

background image
अब विलंब किहीं हेत कृपा कर इहां लगाई,
कहा सुनो अरदास नांही त्रिभुवन के राई...
इम चूरि भूरि दुःख भक्त के, सुख पूरे शिवतिय वरन;
प्रभु मोही दुःख नाशन विषे, अब विलंब कारन कवन.
जन वृंद सु मनवचतन अबे, ग्रही नाथ तुम पद शरन;
सुधि ले दयाल मम हाल पै, कर मंगल मंगलकरम. १०
श्री जिनेन्द्र स्तवन
[पुकार स्तुति]
(दोहा)
जे या भव संसार में भुगतें दुःख अपार;
तिन पुकार प्रभुजी में करुं कवित इक ढार.
[चेतनरूप अनूप अमूरत, सिद्धसमान सदा...ए रागः तेवीसा छंद]
श्री जिनराज गरीब निवाज
सुधारन काज सबे सुखदाई,
दीन दयाल बडे प्रतिपाल
दया गुणमाल सदा शिर नाई;
दुर्गति टारन पाप निवारन
हो भवि तारन को भव ताई,
बारहिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई....

Page 13 of 208
PDF/HTML Page 23 of 218
single page version

background image
जन्म जरा मरणो त्रण दोष
लगे हमको प्रभु काल अनाई,
तासु नसावन को तुम नाम
सुन्यो हम वैद्य महा सुखदाई,
सो त्रय दोष निवारनको
तुमरे पद सेवतु हों चित्त ल्याइ,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई....
देखी दुःखी पर होत दयाल
सु है इक ग्रामपति शिरनाई,
हो तुम नाथ त्रिलोक पति
तुमसे हम अर्ज करे शिरनाई;
मो दुःख दूर करो भवके तसु
कर्मनतें प्रभु लेहु छुटाई,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई....
मोह बडे रिपु है हमरे
हमरी बहु हीन दशा कर पाई,
दुःख अनंत दिये हमको
हर भांतिन भांतिन दोष लगाई;
मैं इन वैरिन के वश ह्वै
करिके भटक्यो सु कह्यो नहीं जाई,

Page 14 of 208
PDF/HTML Page 24 of 218
single page version

background image
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई....
मैं इस ही भवकानन में
भटक्यो चिरकाल सुहाल गमाइ,
किंचित् ही तिलसे सुखको
बहु भांति उपाय करे ललचाई;
चार गतें चिर में भटक्यो
जहं मेरु समान महा दुःखदाई,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई....
जे दुःख मैं भुगते भव के
तिनके वरणे कहुं पार न पाई,
काल अनादि न आदि भयो
तहं में दुःखभाजन हो अघमांही;
मातपिता तुम हो जग के
तुम छांडि फिराद करुं कहं जाई,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई....
सो तुमसों सब दुःख कहों
प्रभु जानत हो तुम पीड हमारी,
मैं तुम को सतसंग कियो
दिन हू दिन आवत शरन तिहारी;

Page 15 of 208
PDF/HTML Page 25 of 218
single page version

background image
ज्ञान महानिधि मोहि दियो प्रभु!
रंक भयो इनको नहि पाई,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई....
यह विनति सुन सेवककी
निज मारगमें प्रभु लेहु लगाई
मैं तुम दास रह्यो तुमरे संग
लाज रह्यो शरणागति आई;
मैं तुव दास उदास भयो
तुमरी गुणमाला साद उर लाई,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई....
देर करो मत श्री करुणानिधि
जो पत राखनहार निकाई,
योग जुरे क्रमसों प्रभुजी यह
न्याय हजूर भयो तुम आई;
आन रह्यो शरणागति हों
तुमरा सुनके तिहुंलोक बडाई,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई....
मैं प्रभुजी तुम्हरी समहू
इन अंतर पार दियो दुसराई,

Page 16 of 208
PDF/HTML Page 26 of 218
single page version

background image
न्याय न अंत कर्ये हमरो,
न मिली हमको तुमसी ठकुराई;
संतन राखि करो अपने ढिग
दुष्टनि देहु निकास बहाई;
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई.... १०
दुष्टनकी जु कुसंगति में हमको
कछु जान परी न निकाई,
सेवक साहब को दुविधा न रह
प्रभुजी करिये जु भलाई,
फेर नमों जु करो अरजी जस
जाहिर जान परे जगताई,
बार हिं बार पुकारतु हों
जनकी विनति सुनिये जिनराई.... ११
यह विनति प्रभु के शरणागति
जे नर चित्त लगाय करेंगे,
जे जगमें अपराध करें अद्य
ते क्षणमात्र भरेमें हरेंगे;
जे गति नीच निवास सदा
अवतार सुधी स्वर लोक धरेंगे,
देवीदास कहे क्रमसों पुनि ते
भवसागर पार तरेंगे... १२

Page 17 of 208
PDF/HTML Page 27 of 218
single page version

background image
श्री अनंतनाथ स्तवन
(चालः त्रिभुवनगुरु स्वामीजी...सामायिकवालेजी)
जय अनंत जिनेश्वरजी, पुष्पोत्तर तैं स्वरजी
सिंघ सेन नरसुर के चय सुत भये जी;
‘सूर्यादे’ माताजी, जग पुण्य विख्याताजी,
तिन के जगत्राता गर्भविषें थये जी.
कार्तिक अंधियारीजी, परिवा अविकारी जी,
साकेत मंझारी कल्याक हरि कियोजी;
षटमास अगारेजी, मणि स्वर्ण घनेरेजी,
वरसे नृप केरे मंदिर धन जयोजी.
द्वादशी अंधियारीजी, जनमे हितकारी जी,
प्रभु जेठ मंझारी सुरापुर आयकें जी;
सुरगिरि लै आयै जी, भव मंगल गाये जी,
अभिषेक रचाये पूजें ध्यायके जी.
फिर पितु घर लाये जी, नचि तूर बजाये जी,
अंग नमाये मात पिता तबै जी;
तन हेम महा छबिजी, पंचास धनु रवि जी,
लखि तीस कहे कवि आयु भई सबै जी.
नृप पदवी धरीजी, लखि पणदह सारी जी,
सब अनित्य विचारी तपोवनकुं गये जी;

Page 18 of 208
PDF/HTML Page 28 of 218
single page version

background image
वदि जेठ दुवादसीजी, तप देखी रवरा रिषिजी,
पद पूजि नये नसि पाप सबे गये जी.
षष्टम करी पूरो जी, भोजन हित सूरो जी,
पूर धर्म सनूरो आवत देखिकें जी;
नव भक्ति थकी पयजी, विशाख तहां दय जी,
मणिवृष्टि अखय करी सुरगण पेखिकें जी.
धरि ध्यान शुक्ल तबजी, चउ घाति हने जबजी,
सुर आय मिले सब ज्ञान कल्याण ही जी;
वदी चैत अमावसीजी, जखी भुक्ति तुहे वसिजी,
समवादी रच्यो तसु उपमा भी नहि जी.
समवादी जिते भवि जी, सुनि धर्म तीरे सबजी,
प्रभु आयु रही जब मास तणी तबे जी;
संमेद पधारे जी, सब जोग संघारे जी,
समभाव विथारी वरी शिवतिय जबे जी.
वसु गुण जुत भूषित जी, भव छारि वसे तित जी;
सुख मगन भये जित मावस चैतकी जी;
सुर सब मिलि आयेजी, शिव मंगल गायेजी,
बहु पुण्य उपाय चले तुम गुणतकी जी.
गुण वृन्द तुम्हारे जी, बुध कन उचारे जी,
गणदेव निहारे पै वच ना कहे जी;

Page 19 of 208
PDF/HTML Page 29 of 218
single page version

background image
‘चंदराम’ करे थुतिजी, वसु अंग थकी नुतिजी,
गुण पूरन द्यो मति मम तुं हे लहै जी. १०
प्रभु अरज हमारी जी, सुनिजो सुखकारी जी,
भवमें दुःखभारी निवारो हो घणी जी;
तुम शरन सहाई जी, जगके सुखदाई जी,
शिव दे पितु माई कहों कबलों घणी जी. ११
(घत्ता)
इति गुणगण सारं, अमल अपारं, जिय अनंत के हिय धरई;
हनि जर मरणावलि, नासि भवावलि, शिव सुंदरी ततछिन वरई.
महावीरस्वामी भजन
(हरिगीत)
जय महावीर जिनेन्द्र जय भगवन! जगत् रक्षा करो,
निज सेवकों के भवजनित संताप को कृपया हरो.
हैं तेज के रवि आप हम अज्ञान तममें लीन हैं,
है दया सागर आप हम अति दीन हैं बलहीन हैं.
दानी न होगा आपसा हमसा न अज्ञानी कहीं,
अवलंब केवल हैं हमारे आप ही दूजा नहीं.
भवसिंधु के भवभ्रमरमें हम डूबत हैं हे प्रभो,
अब सुन के पुकार मेरी आ बचाओ हे विभो.

Page 20 of 208
PDF/HTML Page 30 of 218
single page version

background image
मेरूपै अभिषेक कराया इन्द्रने तो क्या हुआ!
यदि ‘इन्द्र’के मदको मिटाया आपने तो क्या हुआ!
यदि कमल को गजने हिलाया तो प्रशंसा क्या हुई!
तेरी प्रशंसा ज्ञानसें प्रभु करुं हृदबिचमें लई!...
अपकारियोंके साथ भी उपकार करते आप थे,
मनमें न प्रत्युपकारकी कुछ चाह रखते आप थे;
वडवाग्नि वारिधि के हृदय को है जराता नित्य ही,
पर जलधि अपनाये उसे है क्रोध कुछ करता नहीं...
प्रभु! स्वावलम्बनका सुपथ सबको दिखाया आपने,
द्रढ आत्मबलका मर्म भी सबको सिखाया आपने;
समता सभी के साथ धर प्रभु राह मुक्तिकी दई,
इस हेतु सेवा आपकी निश्चय मही करती रही...
यद्यपि अहिंसा क्रम सभीने श्रेष्ठ मत माना सही,
पर वास्तविक उसके विधानों को कभी जाना नहीं;
किस भांति स्वरूप चाहिये सच्चे अहिंसा धर्मका,
अतिशय सरल करके दिखाया आपने इस मर्मका...
करके कृपा यदि अवतरित होते न भू पर आप तो,
तो कैसे पाते भक्त तेरे भव समुद्र के पार को;
जित काम हो निष्काम हो अरु शांति के सुखधाम हो,
योगेश भोगोंसे रहित गुण हीन हो गुणग्राम हो...

Page 21 of 208
PDF/HTML Page 31 of 218
single page version

background image
जय जय महावीर प्रभो जगको जगाकर आपने,
मिथ्यात्व
जन्य अनंत दुःखों सें छुडाकर आपने,
इस लोकको सुरलोक से भी परम पावन कर दिया,
अज्ञान
आकर विश्वको प्रज्ञानसागर है किया...
श्री पद्मप्रभु स्तवन
(दोहा)
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करुं प्रणाम;
उपाध्याय आचार्यका, ले सुखकारी नाम,
सर्व साधु अरु सरस्वती, जिनमंदिर सुखकार;
छठ्ठे जिनवर पद्म को मन मंदिर में धार.
(चोपाई)
जय श्री पद्मप्रभु गुणधारी, भविजन के तुम हो हितकारी;
देवों के तुम देव कहाओ, पाप भक्त के दूर हटाओ.
तुम जगमें सर्वज्ञ कहाओ, छठ्ठे तीर्थंकर कहलाओ;
तीनकाल तिहुं जगकी जानो; सब बातें क्षणमें पहिचानो. २
वेष दिगंबर धारन हारे, तुमसे कर्म शत्रु भी हारे,
मूर्ति तुम्हारी कितनी सुंदर, द्रष्टि सुखद जमती नासा पर. ३
क्रोध मान मद लोभ भगाया, राग
द्वेष का लेश न पाया,
वीतराग तुम कहलाते हो, सब जग के मनको भाते हो. ४

Page 22 of 208
PDF/HTML Page 32 of 218
single page version

background image
कौशांबी नगरी कहलाये, राजा धारण जी बतलाये,
सुन्दर नार सुसीमा उनके, जिसके उरसे स्वामी जन्मे. ५
कितनी लंबी उमर कहाई, तीस लाख पूरव बतलाई,
इक दिन हाथी बंधा निरख कर, झट आया वैराग्य उमडकर.
कार्तिक सुदी त्रयोदश भारी, तुमने मुनिपद दीक्षा धारी,
सारे राजपाट को तज के, जभी मनोहर बनमें पहुंचे.
तप कर केवलज्ञान उपाया, चैत सुदी पंदरस कहलाया,
एक सो दस गणधर बतलाये, मुख्य वज्र चामर कहलाये.
लाखों मुनि अर्जिका लाखों, श्रावक और श्राविका लाखों,
असंख्यात तिर्यंच बताये, देवी देव गिनत नहि पाये.
फिर सम्मेद शिखर पर जाके, शिवरमणी को ली परनाके,
पंचम गति महा सुखदाई, वह तुमने महिमावंत पाई. १०
ध्यान तुमारा जो धरता है, इस भवसे वह नर तरता है,
उसको क्षण क्षण खुशीयां होवे, जिस पर कृपा तुमारी होवे. ११
मैं हूं स्वामी दास तुमारा, मेरी नैया कर दो पारा,
नैन चकोर को ‘चंद्र’ बनावें, पद्मप्रभु को शीश नमावें. १२

Page 23 of 208
PDF/HTML Page 33 of 218
single page version

background image
श्री चंद्रप्रभु स्तवन
(दोहा)
हे मृगांक अंकित चरण, तुम गुण अगम अपार,
गणधर से नहीं पार लहीं, तो को वरतन सार.
पै तुम भगति हिये मम, प्रेरै अति उमगाय,
तातैं गाउं सुगुन तुम, तुम ही होउ सहाय.
(छंद पद्धरि १५ मात्रा)
जय चंद्र जिनेन्द्र दया निधान,
भव कानन हानन दौं प्रमान;
जय गरभ जनम मंगल दिनंद,
भवि जीव विकाशन शर्मकंद.
दशलक्ष पूर्व की आयु पाय,
मन वांछित सुख भोगे जिनाय;
लखि कारण ह्वै जगतैं उदास,
चित्यो अनुप्रेक्षा सुखनिवास.
तित लौकांतिक बोध्यो नियोग,
हरि शिबिका सजी धरियो अभोग;
तापै तुम चढि जिनचंदराय,
ता छिनकी शोभा को कहाय.
जिन अंग सेत सित चमर ढार,
सित छत्र शीस गल गुलकहार.

Page 24 of 208
PDF/HTML Page 34 of 218
single page version

background image
सित रतन जडित भूषण विचित्र,
सित चंद्र चरण चरचें पवित्र.
सित तनद्युति नाकाधीस आप,
सित शिबिका कांधे धरि सुचाप;
सित सुजस सुरेश नरेस सर्व,
सित चित्तमें चिंतत जात पर्व.
सित चंद्र नगरतैं निकसि नाथ,
सित वनमें पहुंचे सकल साथ;
सित शिला शिरोमणि स्वच्छ छांह,
सित तप तित धार्यो तुम जिनाह.
सित पयको पारण परम सार,
सित चंद्रदत्त दीनो उदार;
सित करमें सो पयधार देत,
मानों बांधत भवसिंधु सेत.
मानों सुपुण्य धारा प्रतक्ष,
तित अचरज पन सुर किय ततक्ष;
फिर जाय गहन सित तप करंत,
सित केवल ज्योति जग्यो अनंत. १०
लहि समवसरन रचना महान,
जाके देखत सब पाप हान;

Page 25 of 208
PDF/HTML Page 35 of 218
single page version

background image
जहां तरु अशोक शोभै उत्तंग,
सब शोक तेना चूरे प्रसंग. ११
सुर सुमनवृष्टि नभतें सुहंत,
मनु मन्मथ तज हथियार जात;
वानी जिनमुखसों खिरत सार,
मनु तत्त्व प्रकाशन मुकुर धार. १२
जहं चौसठ चमर अमर ढुरंत,
मन सुजस मेघ झरि लगिय तंत;
सिंहासन है जहां कमल जुक्त,
मनु शिव सरवरको कमल शुक्त. १३
दुंदुभि जित बाजत मधुर सार,
मनु करम जीत को है नगार;
शिरछत्र फिरै त्रय श्वेत वर्ण,
मनु रतन तीन त्रय ताप हर्ण. १४
तन प्रभातनों मंडल सुहात,
भवि देखत निज भव सात सात;
मनु दर्पणद्युति यह जगमगाय,
भविजन भवमुख देखत सु आय. १५
इत्यादि विभूति अनेक जान,
बाहिज दीसत महिमा महान;

Page 26 of 208
PDF/HTML Page 36 of 218
single page version

background image
ताको वरनत नहीं लहत पार,
तो अंतरंग को कहे सार. १६
अनअंत गुणनिजुत करी विहार,
धरमोपदेश दे भव्य तार;
फिर जोग निरोधि अघाति हान,
सम्मेद थकी लिय मुक्ति थान. १७
वृंदावन वंदत शीश नाय,
तु जानत हो मम उर जु भाय;
तातैं का कहूं सो बार बार,
मन वांछित कारज सार सार. १८
(छंद धत्तानंद)
जय चंद जिनंदा, आनंदकंदा, भवभय भंजन राजे हैं,
रागादिक द्वंदा, हरि सब फंदा, मुक्तिमांही तिथि साजे हैं.
नेमिनाथस्तुति
(चालः सामायिक वाले जी....)
त्रिभुवन गुरु स्वामीजी, करुणानिधि नामीजी,
सुनि अंतरजामी मेरी विनतीजी....१
मैं दास तिहाराजी, दुखिया बहु भाराजी,
दुःख मेटनहारा तुम जादोंपतीजी....२

Page 27 of 208
PDF/HTML Page 37 of 218
single page version

background image
भरम्यो संसाराजी, चिर विपत्ति भंडाराजी,
कहीं सार न सार चहुंगति डोलियाजी...३
दुःख मेरु समानाजी, सुख सरसोंदानाजी,
अब जान धरि ज्ञान तराजू तोलियाजी....४
यों दुःख भव केराजी, भुगते बहुतेराजी,
प्रभु! मेरे कहते पार न है कहींजी....५
मिथ्या मद माताजी, चाही नित साताजी,
सुखदाता जगत्राता तुम जाने नहींजी....६
प्रभु भागनि पाये जी, गुण श्रवण सुहायेजी,
तकी आया अब सेवककी विपदा हरोजी...७
भववास वसेराजी, फिर होय न फेराजी,
सुख पावें जन तेरा स्वामी सो करो जी...८
तुम शरन सहाई जी, तुम सज्जन भाईजी,
तुम माई तुम्हीं बाप दया मुझ लीजियेजी....९
भूधर कर जोरे जी, ठाढो प्रभु ओरे जी,
निजदास नीहारो निरभय कीजिये जी...१०

Page 28 of 208
PDF/HTML Page 38 of 218
single page version

background image
श्री जिनराज स्तवन
आज हम जिनराज तुम्हारे द्वारे आये,
हां जी हां.....हम आये आये....आज हम०
ओ हितकारी करुणा सागर,
सेवक तुम्हारे शिर झूकाये....१
देखें देव जगत के सारे,
एक नहीं मन भाये,
पुण्य उदयसे आज तुम्हारे,
दर्शन कर सुख पाये...२
जन्म-मरण नित करते करते,
काल अनेक गमाये,
अब तो स्वामी जन्ममरणका,
दुःखडा सहा नहीं जाये...३
भव सागरमें नाव हमारी,
कब से गोता खाये,
तुमही स्वामी हाथ बढाकर,
तारो तो तिर जाये....४
अनुकंपा हो जाय आपकी,
आकुलता मिट जाये,
पंकजकी प्रभु यही विनति,
चरण शरण मिल जाये...५

Page 29 of 208
PDF/HTML Page 39 of 218
single page version

background image
श्री सीमंधारजिन स्तवन
(आज हम जिनराज तुम्हारे द्वारे आये...)
नाथ हो लवलीन तुम्हारी महिमा गावें....
हां जी हां....हम गावें गावें....नाथ हो०
हे जगनायक सीमंधर स्वामी...
तारो तो तिर जायें....हां....हम गावें....
ज्ञान रविसे हृदय दीपायें
मिथ्या तिमिर भगायें,
रागद्वेष आवरण हठाकर,
केवल ज्योति जगायें...हां...हम...गावे....१
भक्तिरूप साबुनसे जीयके
दर्पन को चमकावें!
मोह पंक हटाकर उरसे
निर्मल मन को बनावे....हां...हम गावे....२
सरल मुक्ति पथ करो हमारी
सविनय शीश नमावें!
‘वृद्धि’ कहता बन अनुगामी
नितप्रति ध्यान लगावे....हां...हम गावें....३

Page 30 of 208
PDF/HTML Page 40 of 218
single page version

background image
श्री जिनेन्द्र स्तवन
(ओ नाग...! कहीं जा बसियो रे...)
ओ नाथ! अरज टुक सुनियो रे...
निज यश न विसरीयो रे....
दीन दुःखित हो मारा मारा रूला चैन नहीं पाया
लाख चोरासी जनम धारकर, शरणागत अब आया,
प्रभु नजर महरकी करियो रे...निज०
तुं अलिप्त मैं लिप्त रागमें हूं संसारका वासी
निज स्वरूपमें अविचल तिष्ठुं काट भ्रमनकी फांसी,
भव भार मेरा अब हरियो रे....निज०
जनम मरनका संकट छूटे मुक्ति महल को पाउं,
जीवनका ‘सौभाग्य’ उदित कर तुजसा मैं बन जाउं,
ये शक्ति सुधा घट भरियो रे...निज०
श्री ´षभजिन स्तवन
(ओ...नाथ! अरज टुक सुनियो रे....)
मैं नाम ॠषभ जिन ध्याउं रे...नित आनंद पाउं रे...
चारों वेद पुराण देख लो षट् दर्शन गुण गावे,
द्वादशांग वाणी शिवदानी शिवकी राह बतावे...
मैं उन संग प्रीत बढाउं रे...नित० १