
परनो निर्णय यथार्थ थई शके नहि. जे ज्ञान स्वभाव तरफ वळ्युं ते ज्ञान परनो पण यथार्थ विवेक करे छे.
निषेध करीने रागरहित स्वभाव तरफ ज ढळे. एवा ज्ञानमां ज रागने अने निमित्तने जेम छे तेम यथार्थ जाणवानी
ताकात छे. परंतु जे ज्ञान रागरहित स्वभाव तरफ ढळ्युं ज नथी अने रागमां ज अटकी गयुं छे ते ज्ञान स्व–परने
यथार्थ जाणवानुं कार्य करी शकशे नहि.
संयोगने जुए छे; परंतु सम्यग्दर्शन रूपे तो ते समयनी पर्याय पोते परथी निरपेक्ष स्वतंत्रपणे ज परिणमी छे–एम
स्वाधीनद्रष्टि उघडया वगर निमित्ताश्रितद्रष्टि टळे नहि.
करवो ते तो कर्ताना परिणाम उपर आधार राखे छे अर्थात् कर्ता पोते जेवा कार्यरूपे परिणमे ते अनुसार पर
वस्तुमां आरोप करीने तेने निमित्त कहेवाय छे. ते पर वस्तुमां पण ते प्रकारनी (निमित्तपणानी) स्वतंत्र लायकात
छे. कोईने प्रश्न ऊठे के–कोई पर वस्तु तो कार्यमां कांई करती नथी, तो पछी ते वस्तुओमांथी एकने निमित्त कहेवुं
अने बीजीने न कहेवुं तेनुं शुं कारण? तेनो उत्तर ए छे के–जेम उपादान वस्तुमां स्वयं कार्यरूपे परिणमवानी
योग्यता छे तेम ते पर वस्तुमां पण एवी ज निमित्तपणानी योग्यता छे के जेथी तेने ज निमित्त कहेवाय. उपादान
अने निमित्त बंनेनी स्वतंत्र लायकात छे.
यथार्थ विवेक वगर परमां क्यांय पार पडे तेम नथी. जेने पोताना स्वभावनी स्वतंत्रद्रष्टि खीली छे तेनुं ज्ञान चौद
ब्रह्मांडना भावोनो विवेक करी लेशे.
जीव पोते अनारोप–निरपेक्ष स्वभावने समज्या पछी विकल्पथी आरोप करे छे के ‘भगवान मने निमित्त हता.’
पूर्वे पोतानुं लक्ष भगवान उपर हतुं एम ज्ञान करीने वर्तमान विकल्प वडे भगवानमां निमित्तपणानो आरोप
करे छे.
द्रव्य मारी अपेक्षा राखीने परिणमतुं होय–एम अज्ञानी माने छे. खरेखर तो जे जीव स्वयं सत् समज्यो छे ते जीव
पोताने विकल्प ऊठतां निमित्तने जाणीने एम आरोप करे छे के ‘आ मने निमित्त हतुं.’ आ रीते, स्वतंत्र कार्य थाय
त्यां परमां निमित्तनो आरोप करवामां आवे छे परंतु कोई जीव परना कार्यमां निमित्त थवा मागे तो तेनी द्रष्टि
पराश्रित छे.