
आवतो. ते ज्ञेयोथी तो ज्ञान जुदुं छे, ज्ञाननो प्रवाह आत्मामांथी आवे छे. आत्माना
अवलंबने प्रगटेली जे ज्ञानपर्याय ते स्वधर्म छे, ने ते स्वधर्मथी आत्माने अभिन्नपणुं
छे; आ रीते परद्रव्यना धर्मोथी भिन्नपणुं ने स्वधर्मोथी अभिन्नपणुं होवाथी आत्माने
एकपणुं छे.
मने आलंबन छे–एम धर्मी जाणे छे. ने जे आवुं निजस्वरूप छे तेने ज मोहनो क्षय
थाय छे.
छे, ते अनुभवमां लेवा योग्य छे. आत्माने जगतना कोई पदार्थोनो संयोग धु्रव रहेतो
नथी, पोतानो ज्ञानस्वरूप आत्मा ज धु्रव रहे छे, तेनो कदी वियोग नथी; माटे ते ज
एक आश्रय करवा जेवो छे. बीजा पदार्थोनो संबंध तो वृक्षनी छाया समान अस्थिर छे,
अधु्रव छे. जेम रस्ते चाल्या जता मुसाफरने मार्गमां अनेक वृक्षोनी छायानो संसर्ग
थाय छे, पण ते छाया कांई मुसाफरना भेगी नथी आवती, छाया नवी नवी बदले छे
ने मुसाफर तो एकनो एक रहे छे; मुसाफर ते छायानो ज आश्रय समजीने ऊभो रहे
तो ते धारेला स्थळे पहोंची न शके. मुसाफरने झाडनी छायानो आश्रय नथी. तेम
मोक्षनो प्रवासी एवो आ आत्मा, तेने वच्चे रस्तामां झाडनी छाया जेवा शरीरादिना
अनेक संयोगो आवे छे, पण धर्मी तेने उपलब्ध करतो नथी, तेने परद्रव्य जाणे छे,
तेनाथी भिन्न पोतानुं स्वरूप जाणीने तेनो ज आश्रय करे छे. धु्रव एवो शुद्धआत्मा
एक ज मोक्षार्थी जीवनुं शरण छे, बीजुं कोई शरण नथी.