Atmadharma magazine - Ank 084
(Year 7 - Vir Nirvana Samvat 2476, A.D. 1950)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४७६ : २५१ :
जैन दिपावली पूजन
आखा भारतवर्षमां दिपावली पर्व उत्साह पूर्वक ऊजवाय छे; दिपावली ए जैनोनुं महान् धार्मिक
पर्व छे, परंतु घणा जैन भाईओ, दिपावली पर्व शुं छे? ते शा माटे ऊजवाय छे? अने ते कई रीते
ऊजववुं जोईए? –ते जाणता नथी, तेथी जैनधर्मना ए महान धार्मिक पर्वना दिवसे ज जैनधर्मथी
विरुद्ध एवा कुदेव पूजनादि कार्योमां तेओ जोडाय छे, अने गृहीत मिथ्यात्वना मोटा पापनुं पोषण
करीने, आ अमूल्य अवसरने गूमावी बेसे छे. एवा जीवो दिपावली पर्वनो खरो महिमा जाणीने
कुदेवपूजनादि पापकार्योथी बचे अने जैनधर्मनी प्रभावनाना पंथे वळे ते माटे दिपावली पर्व संबंधी
स्पष्टता करवानी जरूर छे.
आजथी २४७६ वर्ष पहेलांं, आपणा शासननायक श्री महावीर भगवान, आसो वद चौदसनी
पाछली रात्रे (–अमासना परोढीये) अपूर्व सिद्धदशाने पाम्या–निर्वाण पाम्या; अने देव–देवेन्द्रोए
आवीने दिव्य रत्नमणिना दिपको वडे सर्वत्र झगमगाट प्रसरावीने भगवाननी मुक्तिनो महोत्सव
ऊजव्यो. दिपकोना समूह वडे ऊजवायेल ए मुक्तिनो महोत्सव ते ज दिपावली पर्व तरीके प्रसिद्ध थयो.
ए रीते दिपावली पर्व एटले महावीर भगवाननी मुक्तिनो मांगलिक महोत्सव: मुक्तिनी भावनावाळा
भव्य जीवो ए पवित्र प्रसंगने स्मरणभूमिमां ताजो करीने ते पवित्र दशा प्रत्येनो उत्साह व्यक्त करे छे.
दिपावली पर्व ए फटाकडा फोडवानुं, जुगार रमवानुं के पैसानी पूजा करवानुं पर्व नथी पण ते तो मुक्त
थयेला आत्माने याद करीने आत्मानी मुक्तिनी भावना माटेनुं विशिष्ट पर्व छे. अने ते प्रसंगे भगवान
श्री महावीर प्रभुनुं निर्वाणपूजन करवुं जोईए.
–ए उपरांत, जे दिवसे श्री महावीर भगवान मुक्ति पाम्या ते ज दिवसे–अमासनी संध्या समये
श्री गौतम गणधर केवळज्ञानरूपी चैतन्यलक्ष्मी पाम्या अने देव–देवेन्द्रोए मोटो महोत्सव करीने ए
ज्ञानलक्ष्मीनुं पूजन कर्युं. त्यारथी दिपावलीपर्वमां ‘लक्ष्मीपूजन’ करवानी परंपरा चालु थई.
[वळी लोको श्री गणेशाय नमः एम लखे छे ने गणेशपूजन करे छे, ते गणेश बीजुं कोई नथी
पण गौतमगणधर ज छे. गणेश (गण+ईश) गण एटले मुनिओनो समूह, तेना ईश एटले स्वामी,
गणधरदेव ते मुनिओना समूहना स्वामी छे तेथी ते ज गणेश छे, ने ते श्री गौतमगणेश ज पूजनीक छे.
माटे
श्री गणेशाय नमः ने स्थाने श्री गौतमगणेशाय नमः अथवा तो श्री गौतमगणधराय नमः
प्रमाणे लखवुं.]
दिपावलीनो मंगळ उत्सव नजीक आवे छे. ते दिवसे लक्ष्मीपूजन करवानो रिवाज छे. परंतु
वर्तमानमां ते ‘लक्ष्मीपूजननुं घणुं विकृत स्वरूप थई गयुं छे. लोको केवळज्ञान लक्ष्मीने चूकीने
अज्ञानताथी चांदीना टुकडारूप जड लक्ष्मीनुं पूजन करे छे, ने ए रीते धर्मना मांगळिक प्रसंगे ऊल्टा
पापनी पुष्टि करे छे; तेथी ते संबंधी पण प्रकाशनी जरूर छे.
प्रथम तो लक्ष्मी खरेखर तेने कहेवाय के जेनो भोगवटो आत्मा करी शके, अने जेना भोगवटाथी
आत्माने सुख थाय. एवी जे कोई लक्ष्मी होय ते ज पूजनिक छे. पण पैसा–रूपिया वगेरे जड लक्ष्मीने
पूजवी योग्य नथी. तेने पुजवाथी महा पाप थाय छे. ते लक्ष्मीने आत्मा भोगवी शकतो नथी पण तेने
भोगववानी के मेळववानी भावनाथी पोते दुःखी ज थाय छे. माटे एटलुं अवश्य नक्की करवुं जोईए के
पूजवायोग्य जे लक्ष्मी छे ते आत्मामां ज छे. ए लक्ष्मी कई छे ते ओळखवुं जोईए. आत्मानी लक्ष्मी
आत्माथी जुदी न होय. अजीव लक्ष्मीनो स्वामी अजीव होय, अजीवनो स्वामी जीव न होय. जीव तो
चैतन्यस्वरूप छे ने केवळज्ञान ज तेनी अक्षय–पूर्ण लक्ष्मी छे. ज्ञान सिवाय बीजी कोई लक्ष्मीनो स्वामी
जीव नथी. पोताना पूर्ण