Atmadharma magazine - Ank 142
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: २३६: आत्मधर्म: १४२
स्वाभाविक कारणशुद्धपरिणतिना आधारभूत एम समजवुं. आ रीते स्वभावमां के विभावमां अर्थपर्यायने
‘गुण’ कहेवानी टीकाकारनी शैलि चाली आवे छे. टीकाकार महासमर्थ वीतरागी संत छे, आत्माना अनुभवना
ऊंडाणमांथी आ टीकाना भावो काढ्या छे; टीकाकारना हृदयनो मूळ आशय शुं छे ते समजवुं जोईए.
जीव अने पुद्गलना गुणपर्यायोनी वात करी; हवे बाकीनां चार द्रव्योनी वात करे छे,
स्वभावगतिक्रियारूपे के विभावगतिक्रियारूपे परिणत जीव–पुद्गलोने स्वभावगतिनुं के विभावगतिनुं
निमित्त ते धर्मद्रव्य छे, ए ज प्रमाणे स्वभावस्थिति क्रियारूपे के विभावस्थिति क्रियारूपे परिणत जीव–पुद्गलोने
स्थितिनुं निमित्त ते अधर्मद्रव्य छे. पांच द्रव्योने अवकाश देवानुं जेनुं लक्षण छे ते आकाशद्रव्य छे. अने पांच
द्रव्योने वर्तनानुं निमित्त ते काळद्रव्य छे.
अहीं धर्मद्रव्य वगेरेना वर्णनमां जे निमित्तपणुं बताव्यु तेमां पण पर्यायनी वात छे, केमके निमित्तपणुं
पर्यायमां वर्ते छे. गति वगेरे क्रियामां धर्मास्तिकाय वगेरे त्रिकाळीद्रव्य निमित्त नथी पण तेनी ते ते समयनी
पर्याय निमित्तरूप छे; ने आ अर्थपर्यायो छे.
आ चारे अमूर्तद्रव्योना गुणो शुद्ध छे, ने तेनी पर्यायो पण शुद्ध छे; अहीं पर्याय कहेतां व्यंजनपर्याय
समजवी.
आ रीते टीकाकारनी शैलि जोतां, जीवने ‘सहजज्ञानादि परमस्वभावगुणोनो आधार’ कहेवामां
कारणशुद्धपर्यायनो ज ध्वनि ऊठे छे. कारणशुद्धजीवमां, धर्मास्तिकाय वगेरे चार द्रव्योनी माफक, सहज
शुद्धपरिणति त्रिकाळ पारिणामिक भावे परिणमी रही छे तेने स्पष्टपणे ‘कारणशुद्धपर्याय’ तरीके आ
नियमसारमां वर्णवी छे. हवेनी १० थी १प गाथाओमां ए वात घणी स्पष्टपणे आवशे.
जीवादि छ द्रव्यना गुण–पर्यायोनुं वर्णन करीने तेना उपर कलश चडावतां टीकाकार कहे छे के: आ छ
द्रव्यना समूहरूपी रत्न छे, ते किरणोवाळां छे एटले के पोत पोतानी पर्यायोवडे छए द्रव्यो शोभी रह्यां छे. आ
छ द्रव्यना समूहरूपी रत्न जिनेन्द्रदेवना मार्गरूपी समुद्रनी मध्यमां रहेलुं छे. जिनपतिना मार्गने अहीं दरियानी
उपमा आपी छे; जिनेन्द्रदेवनो मार्ग दरिया जेवो गंभीर ने ऊंडो छे, तेमां ज छ द्रव्यना गुण–पर्यायोनुं यथार्थ
वर्णन छे, बीजे क्यांय छ द्रव्योनुं यथार्थ वर्णन होतुं नथी. जे तीक्ष्णबुद्धिवाळो पुरुष आ रत्नने हृदयमां शोभा
माटे धारण करे छे ते जीव मुक्तिसुंदरीनो वल्लभ थाय छे. तीक्ष्ण बुद्धि वडे एटले के स्वभावना अतीन्द्रियज्ञान
वडे ज आ छ द्रव्योना गुणपर्यायो जणाय छे ने तेमां ज आत्मानी शोभा छे. आवी तीक्ष्णबुद्धि वडे जे जीव छ
द्रव्योना गुण–पर्यायने बराबर जाणे छे ते जीव पोताना त्रिकाळ शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायरूप कारण परमात्मामां
एकाग्र थईने मुक्ति पामे छे.
आ प्रमाणे सर्वज्ञदेवे छ द्रव्यो कह्यां छे–तेनी वात करी, अने तेने जाणवानुं फळ बताव्युं. आ जीव
अधिकार छे तेथी हवेनी गाथाओमां जीवना उपयोग वगेरेनुं अद्भुत–अलौकिक वर्णन करशे.
छ द्रव्योना गुण – पर्यायोना प्रत्यक्ष ज्ञायक एवा अतीन्द्रियज्ञानधारी
ज्ञानीओने नमस्कार