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‘गुण’ कहेवानी टीकाकारनी शैलि चाली आवे छे. टीकाकार महासमर्थ वीतरागी संत छे, आत्माना अनुभवना
ऊंडाणमांथी आ टीकाना भावो काढ्या छे; टीकाकारना हृदयनो मूळ आशय शुं छे ते समजवुं जोईए.
स्वभावगतिक्रियारूपे के विभावगतिक्रियारूपे परिणत जीव–पुद्गलोने स्वभावगतिनुं के विभावगतिनुं
स्थितिनुं निमित्त ते अधर्मद्रव्य छे. पांच द्रव्योने अवकाश देवानुं जेनुं लक्षण छे ते आकाशद्रव्य छे. अने पांच
द्रव्योने वर्तनानुं निमित्त ते काळद्रव्य छे.
पर्याय निमित्तरूप छे; ने आ अर्थपर्यायो छे.
शुद्धपरिणति त्रिकाळ पारिणामिक भावे परिणमी रही छे तेने स्पष्टपणे ‘कारणशुद्धपर्याय’ तरीके आ
नियमसारमां वर्णवी छे. हवेनी १० थी १प गाथाओमां ए वात घणी स्पष्टपणे आवशे.
छ द्रव्यना समूहरूपी रत्न जिनेन्द्रदेवना मार्गरूपी समुद्रनी मध्यमां रहेलुं छे. जिनपतिना मार्गने अहीं दरियानी
उपमा आपी छे; जिनेन्द्रदेवनो मार्ग दरिया जेवो गंभीर ने ऊंडो छे, तेमां ज छ द्रव्यना गुण–पर्यायोनुं यथार्थ
वर्णन छे, बीजे क्यांय छ द्रव्योनुं यथार्थ वर्णन होतुं नथी. जे तीक्ष्णबुद्धिवाळो पुरुष आ रत्नने हृदयमां शोभा
माटे धारण करे छे ते जीव मुक्तिसुंदरीनो वल्लभ थाय छे. तीक्ष्ण बुद्धि वडे एटले के स्वभावना अतीन्द्रियज्ञान
वडे ज आ छ द्रव्योना गुणपर्यायो जणाय छे ने तेमां ज आत्मानी शोभा छे. आवी तीक्ष्णबुद्धि वडे जे जीव छ
द्रव्योना गुण–पर्यायने बराबर जाणे छे ते जीव पोताना त्रिकाळ शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायरूप कारण परमात्मामां
एकाग्र थईने मुक्ति पामे छे.