Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
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३०८
जीवननो कस–वीतरागरस
गुरुदेवना अंतरमां वीतरागरसनो प्रवाह निरंतर वर्ती
रह्यो छे. प्रवचन वखते तो वीतरागरसनी ए पावनगंगाना
प्रवाहमां अनेक जिज्ञासुओ पावन थाय छे; ते उपरांत तीर्थयात्रा
जेवा विशेष प्रसंगो वखते, भूत–भाविनां कोई मंगल
स्मरणोनी यादी वखते, साधर्मी–धर्मात्माओ साथेना विशेष
प्रसंगो वखते, विशिष्ट शास्त्रोना स्वाध्याय के चिंतन करतां
करतां जागेली ऊर्मिओ वखते, –एम अनेक प्रसंगे ए
वीतरागरसनी मस्ती अने चैतन्यनी धून जोवा मळे छे; त्यारे
एम थाय छे के वाह! गुरुदेवनुं खरुं जीवन आ ज छे, आ ज
एमना जीवननो क्रम छे, ए वीतरागी–चैतन्यरसथी भरपूर
जीवननी ओळखाण ते गुरुनी साची सेवा छे.
आत्माने साधवा माटे गुरुदेवनी वाणी मुमुक्षुने
शूरातन चडावे छे. गुरुमुखे निजनिधान सांभळतां मुमुक्षु राजी–
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र हरिलाल जैन
वीर सं. २४९प जेठ (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष : २६ : अंक ८