जेवा विशेष प्रसंगो वखते, भूत–भाविनां कोई मंगल
प्रसंगो वखते, विशिष्ट शास्त्रोना स्वाध्याय के चिंतन करतां
वीतरागरसनी मस्ती अने चैतन्यनी धून जोवा मळे छे; त्यारे
एम थाय छे के वाह! गुरुदेवनुं खरुं जीवन आ ज छे, आ ज
जीवननी ओळखाण ते गुरुनी साची सेवा छे.
Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration). Entry point of HTML version.
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