Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration). Entry point of HTML version.

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३०८A
ज्ञानी कहे छे–तुं आनंदमां आव
जेम माता बाळकने वहालथी शिखामण आपे तेम
आचार्यदेव शिष्यने मीठासथी समजावे छे के भाई!
जडनी क्रियामां तारो धर्म गोतवो मुकी दे. आ चैतन्यमां
तारो धर्म छे; चैतन्यरूप तारो आत्मा कोई दिवस जड
थयो नथी. जड अने चैतन्य बंने द्रव्यना भागला पाडीने
हुं तने कहुं छुं के आ चैतन्य द्रव्य ज तारुं छे, पुद्गल द्रव्य
तारुं नथी, ए तो जडनुं छे. माटे हवे जडथी भिन्न तारा
चैतन्यधर्मने जाणीने तुं अत्यंत प्रसन्न था, सर्व प्रकारे
प्रसन्न था, तारुं चित्त उजवळ करीने सावधान था, ने
‘आ स्वद्रव्य ज मारुं छे, चैतन्य ज हुं छुं’ एम तुं
अनुभवमां ले. अहा, पुद्गलथी तद्न भिन्न आवुं तारुं
चैतन्यतत्त्व अमे तने देखाड्युं–हवे तुं आनंदमां आव,
प्रसन्न था. भेदज्ञानना उग्र अभ्यास वडे स्वानुभव कर.
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९प प्र. अषाड (लवाजम : चार रूपिया) वषर् २६ : अधिक अंक