Atmadharma magazine - Ank 309
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
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३०९
सुख–दुःख पूर्वविपाक अरे! मत कंपे जीया,
कठिन कठिनसे मित्र! जन्म मानुषका लिया.
ताहि वृथा मत खोय, जोय आपा–पर भाई,
गये न मिलती फेर समुद्रमें डुबी राई.
***
संसारमां सुख के दुःख ते तो पूर्वकर्मना विपाक
अनुसार थाय छे, माटे अरे जीव! तेमां तुं डर मा. घणी
कठिनताथी आ मनुष्यजन्म प्राप्त थयो छे – तो हे मित्र!
तेने तुं नकामो न गुमावीश; हे भाई! नरभवमां तुं स्व–
परनी ओळखाण कर; केमके जेम समुद्रमां डुबेलो राईनो
दाणो फरी मळवो मुश्केल छे तेम आ मनुष्यजन्म वीती
गया पछी फरी मळवो मुश्केल छे.
– बुधजन पंडित
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९५ द्वि. अषाड (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २६: अंक ९