Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
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३१०
तत्त्वज्ञाननो दशको
(१) आत्मानुं अमरपणुं जाणे तो मरणनो भय मटे.
(२) मरणने जाणनारो पोते कदी मरतो नथी.
(३) देह आव्यो ने गयो, आत्मा तो ए ज रह्यो.
(४) आत्माने आत्मानो वियोग कदी होय नहीं.
(प) शरीरना वियोगे कांई आत्मानो वियोग थतो नथी.
(६) सिद्धभगवंतो सदाकाळ शरीर वगर जीवी रह्या छे.
(७) देहगूफामां अंदर ऊंडेऊंडे आत्मा छे तेने लक्षमां ल्यो.
(८) सिद्धभगवानने शोधवा माटे अंतर्मुख थईने आत्मामां जो.
(९) देह आवे ने जाय पण आत्मा कदी देहरूप न थाय.
(१०) रागमां कदी सुख नहि ने वीतरागतामां दुःख नहीं.
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९प श्रावण (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २६ : अंक १०