Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
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श्रोताने आत्मानो उल्लास
आत्मामां सिद्धपणुं स्थापीने आचार्यदेव
शुद्धात्मानुं स्वरूप संभळावे छे. सांभळतावेंत पहेले
घडाके विकल्पथी पार थईने शुद्धात्मा तरफना
उत्साहथी हा पाडे एटली ताकात तो श्रोतामां छे ज;
ने एवा श्रोता आत्माना उल्लासथी तरत ज
आत्मानो अनुभव प्रगट करे. एवा श्रोताने अमे
आ समयसार संभळावीए छीए. जेम रणे चडेला
रजपूतनुं शूरातन छूपुं न रहे तेम चैतन्यने साधवा
माटे जे मुमुक्षु जाग्यो तेनो आत्मानो उत्साह छानो
न रहे...आत्माना उल्लासथी ते आनंदने साधे ज.
(विशेष माटे अंदरना पहेला पानां पर ‘आत्माना आनंदनी भेट’ वांचो.)
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९६ फागण (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २७: अंक प