Atmadharma magazine - Ank 318
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
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३१८
स्वानुभवनो रंग अने तेनी भूमिका
मुमुक्षु जीवने शुद्धात्माना चिंतननो अभ्यास होय
छे. चैतन्यना स्वानुभवनो जेने रंग लागे तेने संसारनो
रंग ऊतरी जाय. भाई, तुं अशुभ ने शुभ बंनेथी ज्यारे
दूर थईश त्यारे शुद्धात्मानुं चिंतन थशे. जेने हजी तीव्र
पापकषायोथी पण निवृत्ति न होय, देव–गुरुनो आदर,
धर्मात्मानुं बहुमान, साधर्मीनो प्रेम वगेरे अत्यंत
मंदकषायनी भूमिकामां पण जे न आवे, ते अकषाय
चैतन्यनुं निर्विकल्पध्यान क््यांथी करशे? पहेलां अशुभ के
शुभ बधाय कषायनो रंग ऊडी जाय; ज्यां एनो रंग
ऊडी जाय त्यां तेनी अत्यंत मंदता तो थई ज जाय, ने
पछी चैतन्यनो रंग चडतां तेनी अनुभूति प्रगटे.
परिणामने एकदम शांत कर्या वगर एम ने एम
अनुभव करवा मांगे तो थाय नहीं, अहा, अनुभवी
जीवनी अंतरनी दशा कोई ओर होय छे!
वीर सं. २४९६ चैत्र (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २७ अंक: ६