Atmadharma magazine - Ank 319
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration). Entry point of HTML version.

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३१९
आराधकने दुःख नथी
अरे जीव! अनादि संसारमां परिभ्रमण
करतां घोरमां घोर दुःखोथी तुं सोंसरवट नीकळी
गयो–पण विराधकभावे.
एकवार जो आराधकभावे बधा दुःखोथी
सोंसरवट नीकळी जा, तो फरीने आ संसारनुं कोई
दुःख तने न आवे.
जे आराधक छे, पोताना आराधकभावमां
जे भंग नथी पडवा देतो, तेने माटे जगतमां कांई
प्रतिकूळ छे ज नहि. पोताना आराधकभावमां जेने
शिथिलता छे ते ज बीजी अनेक डखलगीरी ऊभी
करे छे. हे जीव! तुं तारी आराधनामां तत्पर
रहे...तने कोई विघ्न छे ज नहीं.
*
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. र४९६ वैशाख (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष र७ अंक ७