Atmadharma magazine - Ank 320
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration). Entry point of HTML version.

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३२०
उ.....प.....का.....र
अंर्तस्वभावनी सन्मुखता करावे ने
परथी विमुखता–उपेक्षा करावे, एवो
हितोपदेश जे संतोए आप्यो, ते संतोना
उपकारने मुमुक्षु–सत्पुरुषो भूलता नथी.
“हे जीव! स्वभाव तरफ जवाथी ज
तने शांति थशे, बहारना लक्षे शांति नहि
थाय; परद्रव्य तने शांतिनुं दातार नथी,
स्वद्रव्य ज तने शांतिनुं दातार छे...माटे परथी
परांग्मुख थईने स्वमां अंतर्मुख था.”
–अहा! आवो उपदेश झीलीने जे
अंतर्मुख थयो, ते मुमुक्षु ते उपदेशना देनारा
संतोना उपकारने भूलतो नथी.
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९६ जेठ (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष: २७: अंक ८