Atmadharma magazine - Ank 322
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration). Entry point of HTML version.

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धर्मात्मानुं जीवन! ज्ञाननो कस!
सौथी मोटुं शास्त्र!
* आत्मअनुभवथी मोटुं कोई शास्त्र आ जगतमां नथी.
* शास्त्रभणतरना रहस्यमांथी जो रस अने फोतरांनुं (एटले
के ज्ञान अने रागनुं) पृथक्करण करवामां आवे तो मात्र
स्वानुभवरूपी कस ज बाकी रहे छे; एटले बधाय शास्त्रोनो
रस–कस स्वानुभवमां समाय छे.
* भगवाने स्वानुभूतिने समस्त जिनशासन कह्युं छे.
* धर्मनुं जीवन अने धर्मनो प्राण स्वानुभूति छे. तारे
धर्मात्मानुं अंतरनुं खरूं जीवन जाणवुं होय तो तेमनी
स्वानुभूतिने ओळख.
* स्वानुभूतिमां आनंदमय सर्वसुख पमाय छे, ते सर्वदुःख
मटे छे.
तंत्री पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९६ श्रावण (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २७ : अंक १०