Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration). Entry point of HTML version.

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३३२
• जयपुर •
एक ज्ञायकभाव ते आत्मा छे. आवा
ज्ञायकस्वभावपणे जे पोते पोताने अनुभवे तेने
‘शुद्ध’ कहीए छीए. आवुं शुद्धतत्त्व ज बधा
तत्त्वोमां सर्वोपरी श्रेष्ठ साररूप छे. अने ते
शुद्धतत्त्व धर्मीना अंतरमां ध्येयपणे जयवंत
वर्ते छे.
‘जयति समयसारं सर्व तत्त्वैक सारं।’
सुखजलनिधि पूरः क्लेशवाराशि पारः।।
जुओ, जयपुरना मंगलमां आत्माना
जयनी अने सुखना पूरनी वात आवी. सर्वे
तत्त्वोमां उत्तम एवो एक आत्मा तेनो जय छे,
अने ते सुखजलनिधिनुं पूर छे. आवुं चैतन्यतत्त्व
ते सारमां सार छे, ते मंगळ छे.