Atmadharma magazine - Ank 343
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
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बीज अने पूनम
वैशाख सुद बीजना दिवसे फत्तेपुरमां बीज अने
पूनमनी भव्य रचना वच्चे बेठेला गुरुदेवे अत्यंत धीर–
गंभीर ध्वनिथी मंगळ संभळावतां कह्युं के
वंदित्तु सव्वसिद्धे धुवमचलमणोवमं गइं पत्ते।
वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुयकेवलि भणियं।।
१।।
–आ अपूर्व मंगळ द्धारा सिद्ध भगवंतोने नमस्कार कर्यां छे.
अनंत सिद्ध भगवंतोने लक्षमां लईने तेमनुं सन्मान करतां, बहुमान
करतां, तेमने आत्मामां स्थापीने नमस्कार करतां, रागथी हटीने
पोताना शुद्ध आत्मा उपर लक्ष जाय छे, एटले स्वसन्मुखता थतां
भेदज्ञानरूपी बीज ऊगे छे, अने पछी तेमां एकाग्रता वडे
केवळज्ञाननी पूर्णिमा ऊगे छे. आ रीते बीज ऊगीने आत्मा पूर्णताने
पामे ते अपूर्व मंगळ छे.
[बीज पछी बीजे दिवसे जोयुं तो, बीज अने पूनम
वच्चेतनुं अंतर एकदम घटी गयुं हतुं, बने नजीक आवी गया
हता!
]
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक: ब्र हरिलाल जैन
वीर सं. २४९८ द्वितीय वैशाख (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २९: अंक ७