. तो अवतार एळे जाशे!
भृगु पुरोहितना बे छोकराओ कहे छे के, हे माता! अमारे हवे बीजो भव करवानो नथी.
अज्जेव धम्मं पडिवज्जयामो जहिं पवन्ना न पुणभ्भवामो।
अणागयं ने वय अत्थि किं चि सद्धाखमं नेविण इत्तूरागं।।
बे छोकराओ नानी उंमरना छे, तेने अवधिज्ञान नथी, पण जाति स्मरण ज्ञान थयुं छे, आत्मानुं ज्ञान
थयुं छे. ते बन्ने छोकराओ वैराग्य पामीने माबापने कहे छे के:–
“हे माता! हे जनेता! हे पिता! अमे आजे ज आत्मानी निर्मळ शक्तिने अंगीकार करीशुं. माता!
कोलकरार करीने कहीए छीए के फरीने भव करवानो नथी, फरीने शरीर लईने आववुं नथी. माता!
आत्मशक्तिना जोरथी कहीए छीए के, हवे अवतार करवो नथी; आत्माना शुद्ध चिदानंद स्वरूपनुं ज्यां भान
थयुं त्यां फरीने भव करवानो नथी. माता! कोलकरार करीने कहीए छीए के, हवे बीजो भव के बीजी माता
करवाना नथी. बीजी माताने हवे रोवडाववी नथी. माता! एक तने दुःख थशे, हवे बीजी माता नहीं
रोवडावीए, अमे अशरीरी सिद्ध थई जशुं. फरीने अमे आववाना नथी.” आ कोण कहे छे? छद्मस्थ कहे छे.
केवळज्ञान थयुं नथी पण सम्यग्दर्शनना जोरथी कहे छे.
माता कहे छे के:– दीकराओ! नाना छो माटे संसारना सुख भोगवी–भुक्तभोगी थई पछी जाजो, आपणे
साथे नीकळीशुं. माता कहे छे के बेटा! विषयो जोया नथी, तुष्णा रही जशे माटे भुक्तभोगी थई पछी नीकळो.
छोकराओ कहे छे–“जनेता! जगतमां अणपामेली एवी कई चीज रही गई छे? मात्र आत्म–स्वभाव
सिवाय अणपामेल एवुं किंचित् मात्र पण नथी रह्युं. अणपामेल एक आत्मा रही गयो छे. अहमेंद्रादि पद पण
मळ्या विना रह्यां नथी. हे माता! रजा आप, अमारा प्रत्येनो राग तोडीने श्रद्धा करवी ते तमारा आत्माने श्रेयनुं
कारण छे. अमारा प्रत्येनी रागनी लाळ छोडीने आत्मानी श्रद्धा करवी ते तमने क्षेमकुशळ थवानुं कारण छे, माता!
श्रद्धा करो! ” कोण बोले छे? छोकराओ जागीने बोले छे. आत्मानुं करवा ऊठया ते रोकाशे नहीं. रणे चडया
रजपूत छूपे नहीं; छोकराओ कहे छे के माता! माता! रजा आप, अमे आजे ज धर्मने अंगीकार करशुं.
जे पहेलेथी कहे छे के आत्मा शुं करे, कर्म नडे छे, कर्म मारग आपे त्यारे धर्म थाय, एम जे पोक मूके छे
ते मर्या ज पड्या छे, ते हार्या ज पड्या छे. पण अरे भाई! तुं चैतन्यमूर्ति, अनंत शक्तिनो धणी, तने कर्मनी
रांकाईनी वात शोभे नहीं, आचार्यदेव कहे छे के अमे जे आ समयसारमां भेदज्ञाननी वात कही छे–निर्भय अने
निःशंक थवानी वात कही छे ते त्रणकाळमां फरे नहीं एवी अप्रतिहतपणानी आ वात छे. ते सांभळीने अंतरथी
श्रद्धा बेसे तेने भवनी शंका रहे नहीं, तेनो पुरुषार्थ उपड्या विना रहे नहीं.
आ मनुष्य जीवनमां आत्मानुं करी ले. आ राती–पीळी पचरंगी दुनियामां मोह करतो फरे छे पण
भाई! शरीरनुं एक रजकण फरशे त्यारे तुं तेने अटकावी नहीं शके. तुं एम माने छे के हुं तेने अटकावी दउं छुं.
पण ते तारी मूढताने तुं सेवे छे. रजकणनी जे काळे जे अवस्था थवानी ते नहीं फरे. आने तो ज्यां हजार–
पांचसोनो पगार थाय त्यां ‘हुं पहोळो ने शेरी सांकडी’ एम रातो–पीळो थईने फरे, पण अरे प्रभु! धुमाडाना
बाचका न भराय, वेळुना गढ न थाय टाटना कोथळामां पवन न भराय तेम परने पोतानुं करी रातु–पीळु न
फराय; चैतन्य भगवान अनंत शक्तिनो पिंड तेने भूलीने परने पोतानुं करे छे तो अवतार जाशे एळे! आवो
समागम मळ्यो छे, माटे आत्मानुं करीने चाल्यो जा.
–मागशर– पूज्य कृपाळु गुरुदेव श्री कानजी स्वामीनी दीक्षाजयंती
सुद २ शुक्र ता. १७ नवे. (दीक्षा सां. १९७०)
,, प सोम २० ,, सुद ११ रवि २६ नवे
,, ८ गुरु २३ ,, ,, १४ मंगळ २८ ,,
,, ९ शुक्र २४ ,, ,, १५ बुध २९ ,,
श्री पार्श्वनाथ जन्मदिन वद २ शुक्र १ डिसे.
,, ११ सोम ११ डिसे. ,, ५ सोम ४ ,,
,, १४ गुरु १४ ,, ,, ८ शुक्र ८ ,,
,, ०)) शुक्र १५ ,, ,, १० रवि १० ,,