: २० : आत्मधर्म २००१ : मागशर :
जीम ते राते रे फूले रातडुं,
श्याम फूलथी रे श्याम;
पाप पुण्यथी रे तिम जगि जीवने,
रागद्वेष–परिणाम..... श्री. –८.
• • •
धर्म न कहिए रे निश्चे तेहने,
जेह विभाव वडव्याधि;
श्री सद्गुरुए रे एणी पेरे भाखियुं,
करमे होए उपाधि... श्री. –९.
• • •
जे जे अंशे रे निरुपाधिकपणुं
ते ते जाणो रे धर्म;
सम्यग्द्रष्टि रे गुणठाणा थकी,
जाव लहे शिवधर्म.... श्री. –१०.
• • •
एम जाणीने रे ज्ञानदशा भजी,
रहीए आप स्वरूप;
परपरिणतिथी रे धर्म न छांडीए,
नवि पडिए भवकूप... श्री. –११.
जेम ते स्फटिकमणी राता फूलना संयोगे रातो
ने काळाफूलना संयोगे काळो थाय छे तेम मिथ्याद्रष्टि
जीवने पुण्य–पापना भावथी अशुद्धता आवे छे, अने
ते रागद्वेष परिणाम छे. ८
साची द्रष्टिथी जोतां जे पुण्य–पापरूपी
९
जेटले अंशे उपाधि रहितपणुं एटले के
भावकर्मनो जेटले अंशे अभाव तेटलो धर्म जाणो! ते
धर्म आत्मानी साची ओळखाणथी (सम्यग्द्रष्टि
गुणस्थानथी) शरू थईने मोक्षसुधी होय छे–अर्थात्
आत्मस्वरूपनी ओळखाण वगर धर्मनी शरूआत
थती नथी. १०
ए प्रमाणे धर्मनुं स्वरूप जाणीने
सम्यग्ज्ञाननी स्थिरतामां टकी पोताना स्वरूपमां
रहेवुं; अने ए धर्मने छोडीने विकारमां जोडावुं नहीं–
अने भवरूपी कूवामां पडवुं नहीं. ११
• अनकन्तन नमस्कर •
शासनोपकारी सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनुं व्याख्यान
श्री समयसार गुजराती पानुं ४९५ ता. ११–७–४४ मंगळ
– : शार्दूलविक्रीडित: –
सर्वद्रव्यमयं प्रपद्य पुरुषं दुर्वासनावासितः
स्वद्रव्य भ्रमतः पशुः किलपरद्रव्येषु विश्राम्यति।
स्वाद्वादी तु समस्त वस्तुषु, परद्रव्यात्मना नास्तितां
जानन्निर्मल शुद्धबोधमहिमा स्वद्रव्यमेवाश्रयेत्।। २५३।।
दरेक चीज पोतापणे छे अने परपणे नथी ते अनेकान्त छे. आत्मा पर स्वरूपे नथी; पर, आत्माना
स्वरूपे नथी; बन्ने वस्तु अनादि अनंत जुदी छे. एक वस्तुने बीजी चीजनो आश्रय मानवो ते ज संसारनुं
कारण छे, तथा जुदी चीजने जुदी मानीने आत्मामां एकाग्र थवुं ते मोक्षनुं कारण छे. दरेक वस्तु अने तेना गुण
पर्याय पोतावडे छे अने परथी अभाव–स्वरूप छे. परनुं परपणे होवापणुं छे अने आत्मापणे अभावपणुं छे;
आ रीते आत्मा आत्मापणे छे, परपणे नथी. जेपणे पोते नथी तेपणे पोताने माने ते एकांतवादी छे–आचार्य
देवे आ कलशमां एकांतवादीने पशु अर्थात् ढोर कह्या छे, तेओ चोराशीमां रखडनारा छे.
आ अनेकान्तना चौद बोलमां तो जैनदर्शननुं रहस्य मूकी दीधुं छे. दरेक वस्तुनो अस्ति–नास्ति स्वतंत्र
स्वभाव छे; दरेक वस्तु पोताथी छे, परथी नास्तिरूप छे. एक वस्तुने बीजी वस्तुनी कांईपण मदद माने ते
एकांतवादी अर्थात् जैनदर्शननुं खून करनार छे.