सम्यक्त्व केवुं? ते व्रत–समिति पाळे तोपण स्वपरनुं
ज्ञान नहि होवाथी ते पापी ज छे. पोताने बंध नथी थतो
एम मानीने स्वच्छंदे प्रवर्ते ते वळी सम्यग्द्रष्टि केवो?
कह्यो? ” तेनुं समाधान:– सिद्धांतमां पाप मिथ्यात्वने ज
कह्युं छे; ज्यां सुधी मिथ्यात्व रहे त्यां सुधी शुभ–अशुभ
सर्व क्रियाने अध्यात्ममां परमार्थे पाप ज कहेवाय छे.
वळी व्यवहारनयनी प्रधानतामां व्यवहारी जीवोने
अशुभ छोडावी शुभमां लगाडवा शुभ क्रियाने कथंचित्
पुण्य पण कहेवाय छे. आम कहेवाथी स्याद्वाद मतमां
कांई विरोध नथी.