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बहुत लाभ हुआ है। हम सब के परिणाम में भेद हो गये हैं। परिषद् अपना अधिवेशन का कार्य तो किसी
भी स्थान पर कर सकती थी, किन्तु महाराजश्री का आध्यात्मिक उपदेश का लाभ लेने के मुख्य हेतु से इस
स्थान को पसंदगी दी गई।
भाइओं को एक साथ ऐसा लाभ मिले–यह हेतु से इस अवसर पर यहां आनेका प्रसंग मिला है। तीन दिन
महाराजश्री का आध्यात्मिक व्याख्यान सुनकर मुझे ऐसा आत्मवेदन हुआ है कि अभी मैनें आत्मा का कूछ
नहि किया, केवल शरीर का किया है। जब हम विद्यार्थीओं को शास्त्राभ्यास कराते थे तब प्रवचनसारादि में
चिदानंद शुद्ध आत्माकी जो अध्यात्म बात आती थी उसको तो छोड देते और उद्धर्वांश कल्पनादि बात हम
शीखाते थे। [आ बोलती वखते सभापतिजी घणा गळगळा थई गया हता।]
भी शास्त्रार्थ कर रहा हो कि–स्वतः प्रमाणः परतः प्रमाणः उस घर मंडनमिश्र का जानना’ उसी तरह यदि
कोई पूछे कि सोनगढ कहां है? तो हम भी उत्तर देते हैं कि–जिस स्थानमें घरघरमें भाई–बहिनों छोटे–बडे
सब के बिच दिनतरात अध्यात्म की चर्चा सुनाई पडती हो वही सोनगढ है। यहां के छोटे बच्चोंके पास भी
हमें अध्यात्म की चर्चा सुननेमें आती है। रास्ते में चलते चलते अजैन डाॉकटर भी हमारी साथ तत्त्वचर्चा
करने लगता हैं, इससे हमको ऐसा लगा कि जो शरीर का डाॉकटर था वे सोनगढ में आत्मा का भी
डाॉकटर बन गये। एक पोलीसपटल जो कि महाराज का उपदेश सुनने को आते हैं और जो मुस्लिम बंधु है
वे भी रास्ते में हमको पूछते थे कि आपको महाराज की वाणी कैसी लगती हैं। रात्रिको सोते समय पिछली
बारिमें से बहिनों में उपादान–निमित्त की चर्चा का आवाज सुननेमें आता था। यहां रहने वाले सब भाई–
बहिनों का आध्यात्मिक जीवन देखकर हमको अति आनंद होता है। यह सब प्रभाव महाराजश्री का उपदेश
का ही है और यहां के सब को एक दूसरे पर प्रेम है–छोटे को बडे पर, बडे को छोटे पर, यह देखकर भी
हम प्रसन्न हुए हैं।
पास में हम सब को नई द्रष्टि मिली है हमारी भावना यह है कि हम नित्य यहां पर ही ठहर जाय, और
महाराजश्री का उपदेश सुनकर अपना आत्मकल्याण करें। हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हम फिर
फिर इधर आयें।