।। dharmanun mUL samyagdarshan chhaे ।।
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vakIlra473
भक्ति
shrImant sheTh sar hukamIchandajInA suputrI shrI chandraprabhAbene phAgaN sud 3 nI rAtre
shrI jain svAdhyAy mandir sonagaDhamAn gAyelun stavan
यहा धरा पर आत्म रवी का उदय सदा जयवंत रहो,
ज्ञानपूंज उस आत्मज्योतिको बारबार सब नमन कहो।
धन्य धन्य तुम गुरुवर मेरे आत्म ज्योतिको जगा दिया,
कोटि जन्म के अंध ज्ञानका पल भरमें ही नाश किया।
भेद् ज्ञान जगा अन्तर में निज–पर का है भेद लिया,
मैं ही स्व हूं ये सब पर है समयसार का मनन किया।
नहि करता मैं पर वस्तु का जो नहीं मेरी अपनी चीज,
गुरु वचनामृतकी धारा से तू ज्ञान वेल अब अपनी सींच।
केवल मैं करता हूं अपना अपना ज्ञान जगाऊंगा,
नय प्रमाण की चक्की में निज का तत्त्व छूडाऊंगा।
भिन्न भिन्न जो तत्त्व कहे हैं निज कर्मों के करता है,
अपने अपने गुण के कारण ये अपने अपने भरता हैं।
ये कयों विघ्न रूप हो मूझको मैं आतम तत्त्व निराला हूं,
नित्य निरंजन ज्ञान स्वरूपी ज्ञान धर्म ऊजियाला हूं।
परका राग घटे तत्क्षण जिस क्षण यह विश्वास जगे,
नित्य सुखी होने में मूझको नहि कभी आयास लगे।
चूर चूर अभिमान गलेगा मैं त्यागी हूं त्याग किया,
प्रथक आप पर हो जायेंगे गुरु वाणी से ज्ञान लिया।
कुंदकुंद मुनिराज चरण में चंद्रप्रभा का कोटि प्रणाम,
और कानजी सद्गुरु में भी अर्पीत करती भक्तिललाम।
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aDhI rUpiyAshAshvat sukhano mArga darshAvatun mAsik patrachAr AnA
* Atmadharma kAryAlay–moTA AnkaDiyA kAThiyAvAD *