Atmadharma magazine - Ank 043
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(English transliteration).

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vaishAkha 2473 143
ApaNane prApta thayun chhe. param upakArak jinashAsanane unnattinA shikhar taraph laI jaIne jagatabharamAn teno vijay
Danko vagADanAr Aje koI hoy to te ek mAtra shAsan uddhArak shrI kAnajI svAmI ja chhe. teoshrInI param kRupAe
ja Aje mokShamArganAn dvAr dekhAyAn chhe...ane dev–guru–dharmanI mahA prabhAvanAnun sadbhAgya ApaNane maL‌yun chhe. dev–
guru–dharmane mATe ApaNe je kAI karIe te ochhun chhe.
ApaNA param upakArI, dharma–udyotakAr, dharmadhUrandhar satpuruSh shrI kahAnagurudevano jay ho–vijay ho..
* * * * * *
सुवर्णकी कसोटी
पं. दामोदरदासजी जैन सागर
विद्वत्परिषद् को इस वर्ष काठियावाड का आमंत्रण मिलनेसे व परिषद् का लाइफ मेम्बर होने के
कारण मुझे भी परिषद् के जल्से में पहुंचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
सोनगढकी स्टेशनपरसे ही श्रीकुंदकुंद प्रवचन मंडप के ऊपर लगी हुई पताका के दर्शन हुए जो
मानों पवन से प्रेरित होकर लहराती हुई सबको वहां अपने कल्याण का मार्ग जानने के लिये बुला रही है।
सोनगढ या सुवर्णपुरी अथवा यों कहना चाहिये कि श्रमणगढ
(साधु सन्तो के निवास का स्थान) पहुंचते ही
वहांके कार्यकुशल कार्यकर्ताओंकी जिस कार्यप्रणालिका अनुभव हुआ वह अन्य के लिये अनुकरणीय है,
पुरुष, स्त्री व दम्पतिके ठहरनेके लिये अलग २ व्यवस्था रखी गई है।
अन्न वस्त्रके आजके संकटके जमाने में भी वहां की अतिथि भोजनशाला चालु है जिसमें कोई फीस
नहीं मांगी जाती, भोजन सब वहांकी पद्धतिके अनुसार अच्छा (घर जैसा) बनाया जाता है, सबेरे घंटी
बजी कि चाय दूध पीनेके लिये एक साथ उपस्थित हो जाते हैं, इसी प्रकार दो पहर व शामको भोजन के
लिये घंटी बजाकर ही बुलवा दिया जाता है, यह कोई जरूरत नहीं कि एक एकको उनके निवास स्थान से
बुलाया जाय। भोजनशाला का खर्च करीब ४०००० वार्षिक है जो यहांके दानियों द्वारा बराबर पूरा होता
रहता है। यहां ३०० रजाई गदें का इंतजाम है।
श्री १००८ सीमंधरस्वामीका मंदिर व समवसरण मंदिर देखने योग्य चीज है। मंदिरमें पूजन करनेकी
इच्छा रखनेवालों के लिये काफी धोती, दुप्ट्टोंका प्रबंध है जो पीले रंगे गये हैं। समवशरण मंडपमें रखे हुए
चार्ट
(हिन्दी और गुजराती) आपको वहांका सब वर्णन बता देते हैं।
स्वाध्याय मंदिरमें स्थानकी कुछ संकीर्णता होनेसे अब जो नया श्री कुंदकुंद प्रवचन मंडप करीब सवा
लाख रुपियाकी लागत से बनाया गया है उसमें बीचमें कोई भी खंभे वगैरहका आवरण न रखकर व पक्का
मंडप प० फुट चौडा व इससे दुगना १०० फुट लंबा बडा ही सुंदर बनाया गया है, जैसा अभी दूसरी जगह
देखनेमें नहीं आया।
इस मंडपमें ही आज कल पूज्य स्वामीजीका शास्त्र प्रवचन सबेरे शाम होता है इसी मंडपमें
विद्वत्परिषदका अधिवेशन हुआ जिसकी दो दिनकी कारवाई प्रगट हो चुकी है। तीसरे दिन सवेरे शास्त्र
प्रवचनके बाद करीब ९।। बजे परिषदकी अंतिम बैठक हुई जिसमें परिषदके सभापति श्री
. पं० कैलासचंदजी
शास्त्री का जो अंतिम भाषण हुआ इसमें बडे अच्छे सुंदर ढंग से वहां की व्यवस्था तथा पूज्य कहानजी स्वामी
के प्रति भक्ति प्रदर्शित करते हुए मंडप में लगे हुए श्री १०८ कुंदकुंदाचार्य व उन्हींके बांई तरफलगे हुए श्री
कानजी स्वामी के चित्र का प्रदर्शन करते हुए सभापतिने यह भावना भाई थी कि वह दिन हम लोग देखना
चाहते हैं कि जिस दिन कानजी स्वामी भगवानकुंदकुंदाचार्य के रूप होंगे। प्रवचन मंडप के सभी चित्र व
शास्त्रों के उद्धरण बडे ही आकर्षक है, सभापति अपने भाषणमें यह भी प्रगट करनेसे नही चूके कि यहां
आकर हम लोगोंने असली अर्थ जान पाया है।
इसके बाद यहां के कुशल कार्य कर्ताओने भी अपनी सब व्यवस्था उपस्थित जनतामें विखेर दी और
समजाया कि यहांकी कई बालिकाओंने आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत लिया है। यहांके कई बच्चों बालकोंने आजन्म
ब्रह्मचर्य व्रत लिया है। यहां आकर कई लक्षाधिपति, करोडपति जैनी
(जो पहले श्वेताम्बर थe
)
आज दि०
जैन धर्म के पक्के श्रद्धालु बन गये हैं। और अनेक दम्पतियोंने आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत लिया है। और भी अनेक
सज्जनोंका परिचय दिया जिन्होंने यहां आकर हजारों रुपिया बिखेर कर इस बगीचेमें इन सुंदर पुष्पोंको
पैदा किया है।
श्री कहानजीस्वामी बालब्रह्मचारी हैं। आपने भगत हीराचंदजीसे दीक्षा ली थी, और कितना अभ्यास व