Atmadharma magazine - Ank 060
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 17

background image
आसो : २४७४ : २२१:
मासिकना अंक ४९ थी ६०
सुधीमां आवेला लेखोनी
विषय अंक पानुं विषय अंक पानुं
अ च
अक्षय त्रीज ५५ १२० चित्रो (‘श्री मंडप’ नी दीवालेथी) ५३ ७९
अनेरी वाणी ४९ ७ चैत्र अने वैशाख मासना मांगळिक दिवसो ५४ ९४
अषाढ अने श्रावण मासना मांगळिक दिवसो ५७ १५६
अष्ट प्राभृत–प्रवचनो ५१–४१, ५३–६७, ५४ ८२ छ सामान्य गुणो (काव्य) ६० २१८
अष्टाहिनका महोत्सव ५० १९
अस्तिनास्तिस्वभाव ५५ ९८ जड–चेतननुं भेदज्ञान अने तेनुं फळ–वीतरागता ५६ १४९
जयंति उत्सव वखतना स्तवनो ५६ १४२
जिनवर पंथे (स्तवन) ४९
आचार्य भगवान जगतने भेट आपे छे ५० १९ जीवद्रव्य उत्तम छे ५४ ९४
आतम देव ५४ ९५ जीव धर्मकार्य क्यारे करे? ४९ ११
आत्मधर्मना ग्राहकोने भेट ५४ ८३ जेओ आत्मानी समजण करता नथी अने बहानां
आत्मभावना ४९–१, ४९.३, बतावे छे तेओ वेदिआ–मूर्ख छे,–समजण माटे
आत्मस्वभावनो महिमा अने जैनदर्शननुं प्रयोजन ५६ १४७ सदाय मांगळिक काळ ज छे ४९
आत्मा तरफ प्रेम क्यारे जागे? ५६ १५० जेने विकारनो प्रेम छे तेने स्वभावनो अनादर छे ५६ १५१
आत्मानी भावना के आत्मानुं ध्यान क्यारे थई शके? ५६ १५० जैनदर्शनना शास्त्रोना भाव समजवा माटे अवश्य
आत्माने शुं खपे ने शुं न खपे एनी कोने खबर पडे? ५६ १४८ लक्षमां राखवा योग्य नियमो
५६ १४८
आत्मानो ज्ञान स्वभाव ५९ २०३ जैनदर्शननो सार–भेदज्ञान ने वीतरागता ४९ ११
आत्मानो सुख स्वभाव ५५ १०५ जैनदर्शन शिक्षणवर्ग ५४–९०, ५७ १६१
आत्मा पोते चैतन्यस्वरूप होवा छतां तेनी भूल केम थई? ४९ १२ जैनदर्शन शिक्षणवर्ग (प्रौढ गृहस्थो माटे) ५७ १५६
आभार ५५–९८, ५६ १४४ जोईए छे ५७ १६५
wanted A Thesis on jainism ५७ १६८
उत्तम क्षमाधर्म (दश लक्षण धर्मनुं व्याख्यान) ५४ ९१ ज्ञा
उत्तम मार्दवधर्म ,, ५५ १२३ ज्ञान अने सुखरूपे आत्म पोते ज थाय छे, तेने
उत्तम आर्जवधर्म ,, ५५ १२६ इंद्रियोनी अपेक्षा नथी ५२ ५५
उत्तम सत्यधर्म ,, ५७ १५४ ज्ञान दुःखनुं कारण नथी पण मोह दुःखनुं कारण छे ५६ १५१
उत्तम शौचधर्म ,, ५७ १५७ ज्ञानीओ भेदज्ञान करावे छे ४९ १२
उत्तम संयमधर्म ,, ५७ १५८
उत्तम तपधर्म ,, ५८ १७९ तत्त्वनो कौतूहली था! ५० १७
उत्तम त्यागधर्म ,, ५८ १८० तीर्थंकरोना पंथे–(प्रव. गा. ८२) ५९ १८७
उत्तम आकिंचन्यधर्म ,, ५९ २०७ दि
उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म ,, ६० २१४ दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर: मुंबई ५७ १६६
उपयोगमां क्रम शा कारणे छे? ५५ १२८ दुनियानो भाण (स्तवन) ५६ १४५
देवपरी (स्तवन) ५६ १४५
ए भूल केम टळे? ४९ १२
धर्म ६० २१८
कर्तव्य ५० १८ धर्मात्मानी स्वरूप–जागृति ४९ १६
कार्तिक मासना मंगळ दिवसो ४९ १६ धर्मात्मानो समभाव ५५ ११३
कुंदकुंद आचार्य ५० ३१ धार्मिक दिवसो ५८ १८४
केटलाक खुलासा ५१ ४४ नि
खा निश्चय श्रद्धा–ज्ञान केम प्रगटे? ५१ ३८
खास विनंति ४९–३, ५० २० न्याय आपो! ५४ ९५