
सुख छे एम जेओ नथी मानता ते जीवो पोते मोक्षसुखनुं सुधापान पामवाना नथी, एटले के मोक्षथी सदाय
दूर वर्तता थका अभव्यो छे. तेमने आत्माना स्वाधीन सुखनी श्रद्धा नथी अने विषयोमांथी सुख मेळववा मागे
छे तेथी ते जीवो मृगतृष्णानी जेम आकुळताने ज अनुभवे छे. जेम मृगलां ज्यां पाणी नथी त्यां पाणीनी
कल्पना करीने दोडे छे ने आकुळव्याकुळ थई दुःखने ज अनुभवे छे, तेम अज्ञानीओ–अभव्यो श्रीभगवाननां
विषयोमां झंपलावे छे, तेओ सदाय आकुळतामय दुःखने ज भोगव्या करे छे. विषयोथी पार आत्माना अनाकुळ
सुखनो तेमने स्पर्श पण नथी. अने जे जीव भगवानना अतीन्द्रिय सुखनो तरत ज स्वीकार करे छे ते जीवने
विषयोमांथी सुखबुद्धि टळी जाय छे, ने तेनुं ज्ञान विषयोमांथी पाछुं फरीने पोताना अतीन्द्रिय स्वभावमां
परिणमे छे, तेओ आत्माना पारमार्थिक सुखने अंशे अनुभवे छे ने तेओ निकट भव्यो छे. स्वभावनी हा
पाडनार निकटभव्य अने स्वभावनी ना पाडनार अभव्य–एम श्री आचार्यदेवे बे भाग पाडी दीधा छे.
ज्ञान अने आनंद स्वभाववाळो छे, मारा आत्माने ज्ञान अने सुख माटे बीजा कोई पदार्थोनी अपेक्षा नथी.
छे, केवळी जेटलो ज मारो ज्ञानस्वभाव छे, जे पुण्य–पापना भावो थाय छे ते रूपे हुं परिणमतो नथी पण
ज्ञानस्वरूपे ज हुं परिणमुं छुं. आ रीते, केवळी भगवानना पारमार्थिक सुखनी प्रतीति करतां पोताना
आत्मस्वभावनी प्रतीति पण आवी ज जाय छे. माटे ते जीव वर्तमानमां ज मोक्ष लक्षमीनो भाजन थई गयो
छे. माटे आचार्यदेव कहे छे के, परिपूर्ण ज्ञानस्वभावे रहेनारा केवळी भगवंतोने परिपूर्ण सुख छे–आवुं वचन
सांभळीने जेओ पहेला धडाके हमणां ज तेनो स्वीकार करी ले छे तेओ मोक्ष–लक्ष्मीनां भाजन निकटभव्यो छे.
अने आ सांभळीने जे जीवो सीधो नकार करे छे तेओ अभव्यो छे. स्वभावना सुखनी वात सांभळतां
अंतरमां सीधे सीधी बेसी जाय छे ने उत्साहथी हा पाडे छे ते निकटभव्य छे.
मान्यता टळी. शरीरमां सुख नहि, संयोगमां सुख नहि, शुभ भावमां पण सुख नहि, ए बधायथी जुदा एकला
आत्मस्वभावमां ज सुख छे–एम आत्मस्वभावनो ज स्वीकार थई गयो, तेथी ते जीव निकट मोक्षगामी छे.
वचनोनो एटले के वचनोमां जे भाव कहेवानो आशय छे ते भाव समजीने तेनो–हमणां ज सत्कार करे छे ते
जीवो पण शीवश्रीनां (मोक्षलक्ष्मीनां) पात्र छे. अमे नजीक मोक्षगामी निमित्त तरीके छीए ने अमारा
निमित्तथी जे जीवे स्वभावनो सत्कार कर्यो ते जीवनुं उपादान पण अल्प–काळमां मोक्ष पामवानी तैयारीवाळुं छे.
एकता थई एटले के जेम निमित्तरूप–वाणी कहेनारा अल्पकाळमां मोक्ष जवाना छे तेम तेनो हकार करनार तुं
पण मोक्ष पामवा माटे ज चाल्यो आवे छे. अने–तने निकट मुक्तिगामी जीवनी वाणी निमित्तरूप मळी अने ए
परम सत्वाणीनो जो तुं नकार कर तो तुं निकट निगोदगामी छे. अमे जोरशोरथी कहीए छीए के केवळी
भगवानने पारमार्थिक सुख छे, तेमने जराय खेद के आकुळता नथी;–ते वातनी जो तने निःशंकता थई गई तो
तुं पण निकट मुक्तिगामी छो. पण जो तेमां जराय शंकापडी तो तुं दूर भव्य छो.