Atmadharma magazine - Ank 061
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA With the permision of the Baroda Govt. Regd No. B. 4787
Order No. 30 - 24 date 31 - 10 - 4
अनुसंधान पान १५ थी चालु
सुधापान करी रह्या छे, तेवुं भगवाननुं स्वरूप जेओ नथी मानता एटले के आत्माने पोताना स्वभावथी ज
सुख छे एम जेओ नथी मानता ते जीवो पोते मोक्षसुखनुं सुधापान पामवाना नथी, एटले के मोक्षथी सदाय
दूर वर्तता थका अभव्यो छे. तेमने आत्माना स्वाधीन सुखनी श्रद्धा नथी अने विषयोमांथी सुख मेळववा मागे
छे तेथी ते जीवो मृगतृष्णानी जेम आकुळताने ज अनुभवे छे. जेम मृगलां ज्यां पाणी नथी त्यां पाणीनी
कल्पना करीने दोडे छे ने आकुळव्याकुळ थई दुःखने ज अनुभवे छे, तेम अज्ञानीओ–अभव्यो श्रीभगवाननां
पारमार्थिक अतींद्रिय सुखनो स्वीकार करता नथी, अने पर विषयोमांथी आत्माने सुख मळे एम मानीने
विषयोमां झंपलावे छे, तेओ सदाय आकुळतामय दुःखने ज भोगव्या करे छे. विषयोथी पार आत्माना अनाकुळ
सुखनो तेमने स्पर्श पण नथी. अने जे जीव भगवानना अतीन्द्रिय सुखनो तरत ज स्वीकार करे छे ते जीवने
विषयोमांथी सुखबुद्धि टळी जाय छे, ने तेनुं ज्ञान विषयोमांथी पाछुं फरीने पोताना अतीन्द्रिय स्वभावमां
परिणमे छे, तेओ आत्माना पारमार्थिक सुखने अंशे अनुभवे छे ने तेओ निकट भव्यो छे. स्वभावनी हा
पाडनार निकटभव्य अने स्वभावनी ना पाडनार अभव्य–एम श्री आचार्यदेवे बे भाग पाडी दीधा छे.
अहो, केवळ ज्ञानदशामां कोई पण बीजा पदार्थोनी अपेक्षा वगर आत्मा पोते ज पूर्ण सुखी छे, त्यां
जरा पण आकुळतानो सद्भाव नथी, पूर्ण ज्ञान अने आनंद स्वरूपे आत्मा ज थई गयो छे. मारो आत्मा पण
ज्ञान अने आनंद स्वभाववाळो छे, मारा आत्माने ज्ञान अने सुख माटे बीजा कोई पदार्थोनी अपेक्षा नथी.
जेम केवळी भगवान एकला ज्ञानपणे ज परिणमे छे, रागपणे परिणमता नथी तेम मारो स्वभाव पण तेवो ज
छे, केवळी जेटलो ज मारो ज्ञानस्वभाव छे, जे पुण्य–पापना भावो थाय छे ते रूपे हुं परिणमतो नथी पण
ज्ञानस्वरूपे ज हुं परिणमुं छुं. आ रीते, केवळी भगवानना पारमार्थिक सुखनी प्रतीति करतां पोताना
आत्मस्वभावनी प्रतीति पण आवी ज जाय छे. माटे ते जीव वर्तमानमां ज मोक्ष लक्षमीनो भाजन थई गयो
छे. माटे आचार्यदेव कहे छे के, परिपूर्ण ज्ञानस्वभावे रहेनारा केवळी भगवंतोने परिपूर्ण सुख छे–आवुं वचन
सांभळीने जेओ पहेला धडाके हमणां ज तेनो स्वीकार करी ले छे तेओ मोक्ष–लक्ष्मीनां भाजन निकटभव्यो छे.
अने आ सांभळीने जे जीवो सीधो नकार करे छे तेओ अभव्यो छे. स्वभावना सुखनी वात सांभळतां
अंतरमां सीधे सीधी बेसी जाय छे ने उत्साहथी हा पाडे छे ते निकटभव्य छे.
हा पाडनारने अंतरमां केटली जवाबदारी छे? ‘आत्मानी केवळ ज्ञानदशामां ज पारमार्थिक सुख छे’
आटलो यथार्थ स्वीकार कर्यो ते जीवने स्वभाव सुखनो आदर थयो अने पांच ईन्द्रियोना विषयोमां सुखनी
मान्यता टळी. शरीरमां सुख नहि, संयोगमां सुख नहि, शुभ भावमां पण सुख नहि, ए बधायथी जुदा एकला
आत्मस्वभावमां ज सुख छे–एम आत्मस्वभावनो ज स्वीकार थई गयो, तेथी ते जीव निकट मोक्षगामी छे.
‘जेओ आ वचननो हमणां ज स्वीकार करे छे तेओ निकटभव्यो छे’ एम कहीने अहीं उपादान–
निमित्तनी संधि बतावी छे. आचार्य भगवान कहे छे के अमे पोते नजीकमां मोक्ष जनारा छीए, जेओ अमारां
वचनोनो एटले के वचनोमां जे भाव कहेवानो आशय छे ते भाव समजीने तेनो–हमणां ज सत्कार करे छे ते
जीवो पण शीवश्रीनां (मोक्षलक्ष्मीनां) पात्र छे. अमे नजीक मोक्षगामी निमित्त तरीके छीए ने अमारा
निमित्तथी जे जीवे स्वभावनो सत्कार कर्यो ते जीवनुं उपादान पण अल्प–काळमां मोक्ष पामवानी तैयारीवाळुं छे.
हे जीव! एक भवे मोक्ष पामनारा एवा धर्मात्मानी सतनो पडकार करती वाणीने निमित्त तरीके
सांभळीने जो तने पहेला ज धडाके उल्लासथी अंतरथी हकार आव्यो, तो निमित्त अने उपादानना भावमां
एकता थई एटले के जेम निमित्तरूप–वाणी कहेनारा अल्पकाळमां मोक्ष जवाना छे तेम तेनो हकार करनार तुं
पण मोक्ष पामवा माटे ज चाल्यो आवे छे. अने–तने निकट मुक्तिगामी जीवनी वाणी निमित्तरूप मळी अने ए
परम सत्वाणीनो जो तुं नकार कर तो तुं निकट निगोदगामी छे. अमे जोरशोरथी कहीए छीए के केवळी
भगवानने पारमार्थिक सुख छे, तेमने जराय खेद के आकुळता नथी;–ते वातनी जो तने निःशंकता थई गई तो
तुं पण निकट मुक्तिगामी छो. पण जो तेमां जराय शंकापडी तो तुं दूर भव्य छो.
श्री कुंदकुंदभगवान भव्य जीवोने मोक्ष माटे आमंत्रण आपे छे: अमारा घरे मोक्षदशानी रसोई तैयार थई
अनुसंधान टाईटल पान २ जुं
मुद्रक: – चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय, मोटा आंकडिया, सौराष्ट्र
प्रकाशक: – श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया ता. ३ – १ – ४८