Atmadharma magazine - Ank 072
(Year 6 - Vir Nirvana Samvat 2475, A.D. 1949)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 2 of 17

background image


आ सो सं पा द क वर्ष छठ्ठुं
रामजी माणेकचंद दोशी
२ ४ ७ ५ व की ल अंक बारमो
आत्मानी समजण
घणा जीवो एम मानता होय छे के आपणाथी आत्मानी समजण
न थई शके. ज्ञानी तेने कहे छे के भाई, दरेक जीव आत्मस्वभावने
समजी शके छे. जेनामां समजण–शक्ति छे तेणे ऊंधाईथी भूल करी
छे, ते भूल टाळीने ते पोते साची समजण करी शके छे. भूल
करनार जीव पोते छे, ने साची समजण करीने भूल टाळनार पण
पोते छे. जीव भूले ने जीव समजे. कांई जड समजतुं नथी; माटे,
मने न समजाय एवी बुद्धि काढी नांखवी. जेने आत्मानो प्रेम होय
तेने आत्मानी समजण मुश्केल न लागे.
(नियमसार–प्रवचन गाथा ३८)
छुटक नकल वार्षिक लवाजम
चार आना त्रण रूपिया
अनेकान्त मुद्रणालय : मोटाआंकडीया : काठियावाड