तेथी ज जगतमां रखडवुं थयुं छे. आत्माने नहि समजनाराओ ज्ञानी सामे पोकार
कर्या करे छे पण ज्ञानी तो जगत समक्ष सत्य जाहेर करी, पोतानुं एकलानुं
कल्याण करी चाल्या गया. ज्ञानीनो विरोध अज्ञानी न करे तो कोण करे? अज्ञानी
कहे छे के ‘अमारी मानेली बधी वात उथापो छो ते द्वेष न कहेवाय?’ ज्ञानी कहे
छे के भाई! सत्यनुं स्थापन करवामां असत्यनो निषेध सहेजे थाय छे. तेमां द्वेष
पण बधा स्वभावे प्रभु छे. ते पोते ज्यारे सवळा थईने समजशे त्यारे बधी
अवळाईने क्षणमां टाळवाने सामर्थ्यवाळा छे. ज्ञानी कोई व्यक्तिनो निषेध नथी
करता पण खोटी मान्यतानो निषेध करे छे, तेमां जगतना बधा प्राणीओ उपर
करुणा छे. तेओ जाणे छे के जेनी द्रष्टि मिथ्याग्रहमां छे ते जाते समजे तो ज सुधरे.
माटे ते आ कहे छे के ‘तेरी शुद्धता तो बडी, लेकिन तेरी अशुद्धता भी बडी.’
साक्षात् तीर्थंकर भगवान पण तने न समजावी शके. तारी पात्रता विना तने
कोई सुधारी शके नहि.