Atmadharma magazine - Ank 087
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
ग्राहकोने सूचना
‘आत्मधर्म’ दर महिनानी सुद बीजे मोटा आंकडियाथी
रवाना करी देवामां आवे छे, अने ग्राहकोने सुद पांचमनी
आसपास ते मळी जाय छे.
केटलाक ग्राहको तरफथी ‘आत्मधर्म’नो अंक न मळ्‌या
संबंधी फरियाद लांबा लांबा वखत पछी मळे छे, अने तेथी
कार्यालयनी व्यवस्थामां मुश्केली पडे छे. हवेथी, दरेक ग्राहकोने
सूचना करवामां आवे छे के–जे मासनो अंक न मळ्‌यो होय ते
मासनी अमास सुधीमां ज सोनगढ लखी जणाववुं; त्यार
पछीनी अंक नहि मळ्‌यानी फरियादो उपर लक्ष नहि अपाय.
आ उपरांत, गया वर्षना भेट पुस्तको नहि मळ्‌या
बाबत पण कोई कोई ग्राहकोनी फरियाद ठेठ अत्यारे मोडी
मोडी आवे छे. ग्राहकोने विनंति करवामां आवे छे के हवे ए
जूनी फरियादो मोकलवानुं बंध करे.
मुद्रक: चुनीलाल माणेकचंद रवाणी, शिष्ट साहित्य मुद्रणालय: मोटा आंकडिया (जि. अमरेली) ता. ६–१–५१
प्रकाशक:– श्री जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट सोनगढ वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, मोटा आंकडिया (जि. अमरेली)