Atmadharma magazine - Ank 092
(Year 8 - Vir Nirvana Samvat 2477, A.D. 1951)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ: २४७७ आत्मधर्म : १६३ :
‘श्रुतदेवता जयवंत हो!’
[वीर सं. २४७५ ना जेठ सुद पांचमे श्रुतपंचमीना मंगळदिवसे लाठी शहेरमां पू. गुरुदेवश्रीनुं मांगळिक–प्रवचन]
मांगळिक
आजे अहींना जिनमंदिरमां भगवान श्री सीमंधर प्रभुनी प्रतिष्ठानो दिवस छे तेथी मांगळिक छे. अने
श्रुतपूजानो पवित्र दिवस (श्रुत पंचमी) होवाथी पण आजे मांगळिक छे. बे हजार वर्ष पहेलांं श्रुतज्ञाननी
प्रतिष्ठानो महा महोत्सव आजना दिवसे थयो हतो. अने आजे अहीं श्री जिनेन्द्र भगवाननी प्रतिष्ठा थाय
छे,–एटले आजे बमणो मांगळिक महोत्सव छे.
श्रुतपंचमीनो ईतिहास
आ सौराष्ट्र देशमां आजथी लगभग बे हजार वर्ष पहेलांं, गिरनार पर्वतनी चंद्रगुफामां श्री धरसेन
मुनि नामना महान दिगंबर संत आचार्य ध्यान करता हता. तेमने अंग–पूर्वना एकदेशनुं ज्ञान हतुं. तेओ
भारे विद्वान अने श्रुतवत्सल हता.
तेमने एवो भय थयो के ‘हवे मारी पाछळ अंगश्रुत विच्छेद थई जशे!’ तेथी, पोतानी पासेनुं
अंगश्रुतज्ञान कोई समर्थ मुनिओने भणाववानो विकल्प ऊठ्यो. ते माटे, दक्षिण देशमां धर्मोत्सव प्रसंगे भेगा
थयेला आचार्यो उपर समाचार मोकल्या. अने धरसेनाचार्यदेवना आशयने समजीने ते आचार्योए पुष्पदंत
अने भूतबलि नामना बे महासमर्थ अने विनयवंत मुनिओने तेमनी पासे मोकल्या.
श्री वीरप्रभुना श्रीमुखथी वहेती पवित्र ज्ञानगंगाना
प्रवाहने अच्छिन्नपणे वहेतो राखनारी श्रुतपंचमी उजवो....

ज्यारे ते बे मुनिओ आवी रह्या हता त्यारे अहीं धरसेनाचार्यदेवे एवुं मंगळस्वप्न जोयुं के बे उत्तम
सफेद बळदो त्रण प्रदक्षिणा दईने नम्रतापूर्वक पोताना चरणे नमी रह्या छे. ए स्वप्न जोतां उत्साहथी ‘श्रुतदेवता
जयवंत हो’ एवुं आशीर्वाद वचन आचार्यदेवना मुखमांथी नीकळ्‌युं. ए ज दिवसे श्री पुष्पदंत अन भूतबलि
मुनिराज आवी पहोंच्या. श्री आचार्यदेवे हीनाधिक अक्षरोवाळी विद्या साधवा आपीने तेमनी परीक्षा करी. पछी
सर्वज्ञपरंपराथी चाल्या आवता श्रुतज्ञाननो अंश (षट्खंडागम) तेमने भणाव्यो. त्यार पछी ते पुष्पदंत अने
भूतबलि आचार्यभगवंतोए षट्खंडागमनी रचना करी. अने जेठ सुद ५ ना रोज अंकलेश्वरमां महा महोत्सव
करीने चतुर्विध संघसहित ए पवित्र श्रुतज्ञाननी पूजा करी; त्यारथी आजनो दिवस ‘श्रुतपंचमी’ तरीके प्रसिद्ध
छे अने ते दर वर्षे ऊजवाय छे.
ए रीते आजे श्रुतनी प्रतिष्ठानो महा मांगळिक दिवस छे. अने अहीं पण श्री सीमंधरभगवाननी
प्रतिष्ठानो महोत्सव छे, ए रीते मांगळिकमां मांगळिकनो मेळ थई गयो छे.
क.ल्य.ण
जेटलो काळ परने माटे गाळे छे तेटलो काळ
जो स्वने माटे गाळे तो कल्याण थया विना रहे नहि.
भाई रे! अनंत काळे महा दुर्लभ मनुष्यपणुं मळ्‌युं,
तेमां कल्याण न कर्युं तो क्यारे करीश?
–समयसार–प्रवचन भाग १ पृ. ९०
आत्मा डोली ऊठे छे
आ समयसारमां महामंत्रो छे. जेम मोरलीना
नादथी सर्प डोली ऊठे, तेम ‘समयसार’ एटले शुद्ध
आत्मानो महिमा कहेनार शास्त्र; तेना श्रवण वडे ‘हुं
शुद्ध छुं’ एम जिज्ञासुनो आत्मा डोली ऊठे छे.
–समयसार–प्रवचन भाग १ पृ. २७