Atmadharma magazine - Ank 110
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष दसमुं, अंक बीजो, वीर सं. २४७९ मागशर (वार्षिक लवाजम ३–०–०)
११०
: संपादक :
वकील रामजी माणेकचंद दोशी
‘संतोए मार्ग सुगम करी दीधो’
अहो केटलो स्वतंत्र सहज ने सरळ मार्ग!.... के...ज्यां होउं त्यां हुं ज्ञान स्वभाव
छुं.... हुं मारामां एकाग्र थाउं ने मारी मुक्ति थाय...मारी मुक्तिनो मार्ग मारामां ज छे.
आवो सरस अने सहज मार्ग छे. मारो ने अनंता मुक्तिगामी जीवोनो–बधायनो आ
एकज मार्ग छे. ज्यां बेठो त्यां सदाय हुं ज छुं, हुं ज्ञानस्वभाव ज छुं, मारा स्वभावमां
अंर्तमुख थईने ठरुं ते ज मारी मुक्तिनो मार्ग छे. ए सिवाय क्यांय बहार जोवुं पडतुं
नथी. केवो स्वावलंबी सरळ अने सहज मुक्तिमार्ग!! ! –आवा सहज मुक्तिमार्गे स्वय
विचरनारा अने जगतने ते पावनमार्ग देखाडनारा, हे संतो! आपना पवित्र चरणोमां
परम उल्लासभावे नमस्कार हो.