Atmadharma magazine - Ank 112
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष दसमुं, अंक चोथो, सं. २००९, महा (वार्षिक लवाजम ३–०–०)
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वीतरागनो भक्त
‘भगवानने कारणे मने शुभराग थयो’ –एम ज्यांसुधी परद्रव्यने कारणे राग
थवानी बुद्धि छे त्यांसुधी वीतरागपणुं अंशमात्र पण थतुं नथी; तेमज ते शुभरागथी जे
धर्म माने तेने पण जराय वीतरागता थती नथी, एटले ते वीतरागनो भक्त नथी.
वीतरागनो भक्त तो तेने कहेवाय के जे पोतामां वीतरागतानो अंश प्रगट करे. ‘हुं तो
ज्ञानस्वरूप छुं, मारा स्वरूपमां राग नथी अने परद्रव्य मने राग करावतुं नथी’ –आम
प्रथम वीतरागीश्रद्धा करे त्यारे वीतरागनो भक्त कहेवाय. प्रथम श्रद्धामां पण
वीतरागता थया विना राग टळशे क्यांथी? आत्मा पोते ज पराश्रय भावे राग करे छे
ने स्वाश्रयभावे राग टाळीने वीतरागता पण पोते ज करे छे–एम ओळखे तो स्वाश्रय
तरफ वळीने वीतरागभाव प्रगट करे. –एनुं नाम वीतरागनो भक्त. –प्रवचनमांथी.