Atmadharma magazine - Ank 112
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २००९ : आत्मधर्म–११२ : ७९ :
जेनाथी जन्म–मरणनो नाश थाय एवी–
भगवाननी भक्ति
सर्वज्ञ वीतराग परमात्मानी स्तुति क्यारे थई कहेवाय? एकला
शुभराग वडे वीतराग भगवाननी खरी स्तुति थती नथी. भगवान जेवा
श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र पोतामां जेटला अंशे प्रगट करे तेटला अंशे भगवाननी
साची स्तुति थाय छे. जड देह अने भगवानआत्मा जुदा छे, एटले शरीरनी
स्तुतिथी भगवानआत्मानी स्तुति परमार्थे थती नथी, भगवानना आत्मानी
स्तुतिथी ज परमार्थस्तुति थाय छे; अने परमार्थमां तो जेवो भगवाननो
आत्मा छे तेवो ज पोतानो आत्मा छे, तेथी पोताना शुद्ध ज्ञायक आत्मानी
श्रद्धा–ज्ञान ने स्थिरता ते ज भगवाननी परमार्थस्तुति छे, ते धर्म छे; अने
तेना लक्षे वच्चे भगवान तरफनो विकल्प ऊठे ते व्यवहारस्तुति छे, तेनाथी
पुण्यबंधन छे. जे हजी सर्वज्ञभगवाननी शुं दशा छे तेने ओळखे नहि तेमज
सर्वज्ञभगवान जेवो पोताना आत्मानो स्वभाव छे तेने पण ओळखे नहि–
एवा जीवने साची स्तुति होती नथी; ते जीव भगवान प्रत्येनो शुभराग करे
तेने अहीं देहनी स्तुति कहेवामां आवी छे. केमके जेने राग साथे एकत्वबुद्धि
छे तेने देह साथे एकत्वबुद्धि पण ऊभी ज छे तेथी ते देहनी ज स्तुति करे छे.
देह अने रागथी भिन्न चैतन्यमूर्ति आत्माने तो ते ओळखतो नथी तो तेने
वीतरागभगवाननी साची स्तुति क्यांथी होय? भगवाननो आत्मा देह अने
रागथी रहित चैतन्यमूर्ति छे, तेवो ज मारो आत्मस्वभाव छे–एवुं भान
करीने जेणे सम्यग्दर्शन प्रगट कर्युं तेणे भगवाननी साची स्तुति करी, ते
भगवाननो भक्त थयो.
जे अल्पज्ञ प्राणी छे ने वीतरागतानी प्रीती छे ते जीवने
वीतरागभगवान प्रत्ये भक्तिनो राग आव्या विना रहेशे नहि. त्यां
भगवानना भक्तने भान छे के जेवो वीतराग केवळी भगवाननो आत्मा छे
तेवो ज मारो आत्मा छे, भक्ति करतां जे राग थाय छे ते पुण्यबंधनुं कारण
छे, ते राग मारो स्वभाव नथी. –आवुं भान करवुं ते ज भगवाननी प्रथम
परमार्थस्तुति छे. पण, भगवान पांचसो धनुष ऊंचा, भगवान
कंचनवरणा–एवा वर्णनद्वारा भगवानआत्मानी परमार्थस्तुति थती नथी,
केमके ते तो देहनुं वर्णन छे. जो ते वखते देहथी जुदा आत्माना स्वभावनुं
लक्ष होय तो ते स्तुतिने भगवाननी व्यवहारस्तुति कहेवाय. ते
व्यवहारस्तुतिथी पुण्य छे ने आत्मस्वभावनी ओळखाणरूप जे
परमार्थभक्ति छे ते धर्म छे, ते भक्तिथी जन्म–मरणनो नाश थाय छे. जो
आत्माना परमार्थस्वभावने न ओळखे तो भगवाननी भक्तिथी जन्म–
मरण टळता नथी, तेणे खरेखर भगवाननी भक्ति करी नथी पण रागनी
भक्ति करी छे.
साधक धर्मात्माने भगवाननी बंने प्रकारनी स्तुति होय छे, पण तेमां
व्यवहारभक्तिनो जे शुभराग छे तेने ते आदरवा जेवो मानता नथी. रागने
जे राखवा जेवो माने ते जीव वीतरागनो भक्त नथी पण मिथ्याद्रष्टि छे.
वीतरागनो भक्त रागने केम आदरे?
(–प्रवचनमांथी: सोनगढ प्रतिष्ठा–महोत्सव सं. १९९७)