Atmadharma magazine - Ank 113
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 2 of 21

background image
वर्ष दसमुं, अंक पांचमो, वीर सं. २४७९ फागण (वार्षिक लवाजम ३ – ० – ०)
१३
भगवानां दर्शन
लोको कहे छे के देवदर्शन करवा जवुं छे; त्यां जाणे के भगवान
पासेथी धर्म लेवा जता होय अमे माने छे. पण धर्म तो अंतरना चैतन्यभगवान
पासे पड्यो छे तेनुं तेमने भान नथी. ज्ञानी पण हंमेशां देवदर्शन करवा जाय, पण
तेने अंतरमां भान छे के हुं तो मारा भाव सुधारवा माटे जाउं छुं, मारो धर्म तो
स्वभावमां छे, आ भगवान तेनुं प्रतिबिंब छे, तेमना दर्शने स्वभावनी भावना
करीने मारी वीतरागतामां जेटली वृद्धि करुं तेटलो मने लाभ छे, अने जे राग रही
जाय ते मारो स्वभाव नथी. भगवाननी अने मारी सत्ता जुदी, आत्मा जुदा, पण
स्वरूप तो सरखुं छे; मारुं स्वरूप भगवानथी जराय ओछुं के अधूरुं नथी –आम जे
यथार्थ ओळखे छे ते ज भगवाननो खरो भक्त छे, तेणे परमार्थे भगवाननां दर्शन
कर्यो छे. प्रतिष्ठा–महोत्सवनां प्रवचनमांथी. सं. १९९७