सोनगढमां जे मानस्तंभ छे ते ६३ फूट ऊंचो छे; आ आखोय मानस्तंभ आरसनो बनेलो छे. तेमां
जैनधर्मना ऐतिहासिक चित्रो कोतरेला छे. आ मानस्तंभमां सीमंधर प्रभुजीनी प्रतिष्ठा परम पूज्य सद्गुरुदेव
श्री कानजी स्वामीना मंगलकारी हस्ते वीर सं. २४७९ ना चैत्र सुद १० ने बुधवारे थई छे.
मानस्तंभ ते कीर्तिस्तंभ नथी पण जैनधर्मनो स्तंभ छे. कीर्तिस्तंभ ते तो लौकिक वस्तु छे अने
जीवो तेनुं सन्मान करे छे तेथी तेने ‘इन्द्रध्वज’ पण कहेवाय छे.
ईशान स्वर्गना मानस्तंभमां ऐरावतक्षेत्रना तीर्थंकरोना आभरण रहे छे.
सनत्कुमार स्वर्गना मानस्तंभमां पूर्वविदेहक्षेत्रना तीर्थंकरोना आभरण रहे छे.
माहेन्द्रस्वर्गना मानस्तंभमां पश्चिमविदेहक्षेत्रना तीर्थंकरोना आभरण रहे छे.
आ मानस्तंभमां रहेला आभूषणो लईने ईंद्र तीर्थंकरने (गृहस्थदशामां) पहोंचाडे छे.
वळी आ पृथ्वीनी नीचे भवनपति अने व्यंतर देवोना निवासस्थान आवेला छे, त्यां पण शाश्वत
स्थळोए मानस्तंभो छे.
शकशे नहि. कोई जीव रागथी धर्म थशे एम माने, देहनी क्रियाथी धर्म माने, अने कहे के हुं केवळी भगवाननो
भक्त छुं,–तो खरेखर ते जीव केवळी भगवाननो भक्त नथी, ते केवळी भगवानने मानतो ज नथी, ते तो
व्यवहारमूढ छे; ते अज्ञानी जीव एकला विकारनी ने व्यवहारनी ज हयाती स्वीकारे छे पण परमार्थरूप
ज्ञायकभावनी हयातीने स्वीकारतो नथी एटले ते व्यवहारथी ज विमोहित चित्तवाळो मिथ्याद्रष्टि छे.
भूतार्थस्वभावनी सन्मुख थईने आत्माने शुद्धपणे जे अनुभवे छे ते ज सम्यग्द्रष्टि छे; जेणे पोताना
भूतार्थस्वभावनुं अवलंबन लईने ज्ञानस्वभावनो निर्णय कर्यो तेणे ज खरेखर केवळी भगवानने मान्या छे
अने ते ज भगवाननो खरो भक्त छे. भगवानना आवा भक्तने भवनी शंका रहेती नथी, अल्पकाळमां
भवनो नाश करीने ते पोते पण भगवान थई जाय छे.