“सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः”
वर्ष अगियारमुं : सम्पादक : चैत्र
अंक छठ्ठो रामजी माणेकचंद दोशी सं. २०१०
सम्यग्दशन अफर उपय
जाुओ, आ समकीतनो पुरुषार्थ! आवो पुरुषार्थ पूर्वे
कदी जीवे कर्यो नथी. कोई कहे के अमे पुरुषार्थ तो घणो
करीए छीए पण समकीत थतुं नथी, तो ज्ञानी कहे छे के अरे
भाई! तारी वात जाूठी छे; यथार्थ कारण आपे अने कार्य न
आवे एम बने नहि. जो कार्य नथी प्रगटतुं तो समज के
तारा प्रयत्नमां भूल छे. सम्यग्दर्शन थवानी जे रीत छे ते
रीते अंतरमां यथार्थ प्रयत्न करे अने सम्यग्दर्शन न थाय
एम बने ज नहि. खरेखर अपूर्व सम्यग्दर्शनो साचो
उपाय शुं छे ते जीवे जाण्युं ज नथी, ने बीजा विपरीत
उपायने साचो उपाय मानी लीधो छे. ज्यां उपाय ज खोटो
होय त्यां साचुं कार्य क्यांथी प्रगटे? माटे अहीं आचार्य
भगवाने सम्यग्दर्शनो साचो अने अफर उपाय बताव्यो
छे. जो आ उपाय समजे अने आ रीते शुद्धनयनुं अवलंबन
लईने अंतरना ज्ञानानंदस्वभावने पकडे तो सम्यग्दर्शनो
अपूर्व अनुभव अने भेदज्ञान जरूरी थई जाय.
वार्षिक लवाजम [१२६] छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
जैन स्वाध्याय मंदिर : सोनगढ (सौराष्ट्र)