Atmadharma magazine - Ank 130
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष अगियारमुं, अंक दसमो, श्रावण, सं. २०१० (वार्षिक लवाजम–३–०–०)
१३०
सिद्ध अने संसारी
जेवो सिद्ध परमात्मानो स्वभाव छे तेवा ज स्वभाववाळो आत्मा
आ देहमां रहेलो छे; सिद्ध भगवानमां अने आ आत्माना स्वभावमां
परमार्थे कांई फेर नथी, जेटलुं सामर्थ्य सिद्ध भगवानना आत्मामां छे
तेटलुं सामर्थ्य दरेक आत्मामां भर्युं छे. सिद्ध परमात्मा पोताना स्वभाव
सामर्थ्यनी प्रतीत करीने तेमां लीनता वडे पूर्ण ज्ञान–आनंद प्रगट करीने
मुक्त थई गया; अने अज्ञानी जीव पोताना स्वभाव सामर्थ्यने भूलीने,
रागादिमां ज पोतापणुं मानीने संसारमां रखडे छे.