Atmadharma magazine - Ank 132
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष अगियारमुं, अंक बारमो, आश्विन २४८० (वार्षिक लवाजम ३–०–०)
दंसण मूलो धम्मो
सत् धर्मनी वृद्धि हो. जैन धर्म जयवंत हो
आत्मधर्म
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शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासीक
१३२
–ः संपादकः–
वकील रामजी माणेकचंद दोशी
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अपूर्व प्रयोग
सत्समागमे चैतन्यनी समजणनो यथार्थ प्रयोग जीवे कदी कर्यो नथी. अरे चैतन्य आत्मा! तने अनंतकाळे
आवो मनुष्य अवतार मळ्‌यो तेमां तें बहारना बीजा प्रयोगो कर्या पण अंतरमां पोतानो ज्ञानानंद स्वरूप आत्मा
शुं चीज छे ते समजवानो प्रयोग तें तारा ज्ञानमां कदी एक क्षण पण न कर्यो, ने मनुष्य अवतार व्यर्थमां गुमावीने
पाछो संसारमां ज रखडयो. माटे हे भाई! हवे जागृत थईने सत्समागमे आत्मानी समजणनो प्रयत्न कर, जेथी
तारा अनादिना भवभ्रमणनो अंत आवे.
तीर्थधाम सोनगढ
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